Thursday, October 17, 2013

दाउद भैया के चैनल में नौकरी

अशोक मिश्र
आफिस से निकलते-निकलते रात के दो बज गए थे। मूंगफली के दानों को टूंगता पैदल ही घर की ओर चला जा रहा था कि चौराहे पर चार आदमियों ने रास्ता रोक लिया, ‘ओए..तेरा नाम क्या है चिरकुट!’ रास्ता रोकने वालों को बड़ी गौर से देखा। साढ़े छह-सात फुटे के दैत्याकार शरीर वाले आतंकवादी सरीखे हथियार बंद लोगों ने मुझे चारों ओर से घेर रखा था। उन्हें देखकर मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। मैंने दीन स्वर में कहा, ‘आप लोग सर्वज्ञ हैं क्या? मेरा वही नाम है जो आपने अभी उचारा है। घनानंद पिलपिलानंद चिरकुट...!’ मेरी बात सुनकर एक आदमी मुझे सबक सिखाने को आगे बढ़ा कि तभी पीछे वाले ने उसे रोकते हुए कहा, ‘नहीं..छोटे भाई...नहीं...भाई ने अपुन को इसे बड़े सम्मान के साथ लाने को कहा है। इसलिए मारपीट नक्को..सिर्फ पूछताछ सक्को (सकते हो)...।’जैसे ही मेरी समझ में यह आया कि वे अपने किसी भाई के आदेश के चलते मुझसे मारपीट नहीं करेंगे, मैं शेर हो गया। मैंने गुस्से में उन्हें फटकारते हुए कहा, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे रोकने की। तुम मुझे जानते नहीं हो। एक मिनट में अंदर हो जाओगे और कोई जमानत लेने वाला नहीं मिलेगा।’
इतना कहते ही सामने वाले ने मेरे सिर पर मुष्टिका प्रहार करते हुए कहा, ‘जिसे पूरी दुनिया की पुलिस खोज नहीं पाई, उसे तुम धमकी दे रहे हो।’ उसके मुष्टिका प्रहार करते ही मैं अपने होशोहवास खो बैठा। होश आया, तो मैं दाउद इब्राहिम के सामने था। वह सामने बैठा वाइन पी रहा था। मैंने सनसना रहे माथे को सहलाते हुए कहा, ‘यार! अकेले पी रहे हो? मुझे भी पिलाओ, उस मूड़ीकाटे ने इतनी जोर से सिर पर मारा था कि सिर अभी तक भन्ना रहा है।’ दाउद इब्राहिम ने मेरे पीछे खड़े शख्स को वाइन देने का इशारा करते हुए कहा, ‘जानते हो! जिसने तुम्हारे सिर को ठोका था, उसका नाम क्या है? शकील....छोटा शकील। उसके सम्मान करने का यही तरीका है।’दाउद की बात सुनते ही मैं कांप गया, अगर सम्मान ऐसा है, तो अपमान कैसा होगा? दाउद ने वाइन सिप करते हुए कहा, ‘सुन...मेरी बात सुन... जिसके लिए तुझे हिंदुस्तान से पाकिस्तान आयात करना पड़ा। तेरा ही नाम घनानंद पिलपिलानंद चिरकुट है न! मैंने तेरा एक आर्टिकलनुमा व्यंग्य या व्यंग्यनुमा आर्टिकल दैनिक ‘रो मत सुंदरी’ में पढ़ा था जिसकी थीम तूने पाकिस्तान के सबसे बडेÞ अखबार ‘डॉन’ के प्रसिद्ध कॉलमिस्ट सल्लू भाई घल्लू जी के लेख से चुराई थी। पात्रों की चोरी तूने अमेरिका के प्रसिद्ध अखबार ‘न्यूयार्क टाइम्स’ से की थी। तेरी काबिलियत यह थी कि तूने चुराई गई सामग्री और पात्रों को इतनी खूबसूरती से फेंटा था कि कोई भी मां का लाल तुझ पर चोरी का इल्जाम नहीं लगा सकता था। अगर तू मुंबइया फिल्मों का स्टोरी राइटर होता, तो अब तक तलहका मचा चुका होता।’ दाउद की बात सुनकर मैं अवाक रह गया। मैंने कतई नहीं सोचा था कि अंडरवर्ल्ड का डॉन भी इतना पढ़ा-लिखा है। कि वह हम जैसे टुटपुंजिया व्यंग्यकारों को भी पढ़ता और उनकी चोरी-चकारी को इंडीकेट भी करता है।
दाउद की बात सुनकर मेरे अवसान ढीले हो गए। मैंने समझा कि अब तो मैं गया। ‘ठांय’ से एक गोली चलेगी और मेरी कहानी खत्म। यहां पाकिस्तान में कौन पूछे कि घनानंद पिलपिलानंद चिरकुट की लाश गिद्ध-कौवे खा गए हैं कि बाकायदा हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार दाह संस्कार भी हुआ है। मेरी मनोभावना समझकर दाउद मुस्कुराया और बोला, ‘डर मत...तेरी फाइल निबटानी होती, तो तुझे पाकिस्तान लाने की जहमत उठाने की कोई जरूरत नहीं थी। तेरे आफिस के पास वाले चौराहे से जिन लोगों ने तुझे उठाया था, वे सिर्फ एक गोली खर्च करते और तू कब का अल्लाह को प्यारा हो गया होता। बात यह है कि मैं तुझे अपने ‘डी’ चैनल का इंडिया हेड बनाना चाहता हूं। पांच लाख सैलरी के साथ-साथ घोड़ा-गाड़ी, खूबसूरत पीए-सीए सब कुछ डी कंपनी की तरफ से। बस..तुझे करना यह है कि भारत के जितने भी नामी-गिरामी, कुख्यात-सुख्यात पत्रकार और पत्रकारिनियां हैं, उनको अपने चैनल में भर्ती करवाना। एक तेरे को छोड़कर कोई भी साफ सुथरा आदमी नक्को रखना मांगता। स्ट्रिंगर से लेकर डिप्टी चैनल हेड तक धूर्त, मक्कार, पेशेवर मुजरिम, हत्यारे होने चाहिए। जिसने दस कत्ल किए, पांच बार जेल गया, तीन बार रंगदारी वसूलते पकड़ा गया, उसको तू रिपोर्टर बना, चीफ रिपोर्टर बना, मेरे को कोई मतलब नहीं। बस, वसूली टंच होनी चाहिए। मौका लगे, तो भी दस-बीस करोड़ की आसामी पकड़ और वसूली कर। खुद कमा और चैनल को भी कमवा।’ मैंने दाउद की बात बीच में काटते हुए कहा, ‘बड़े भाई! मैं एक बहुत सीधा-सादा, गली-कूंचे का मामूली व्यंग्यकार हूं। थोड़ा-थोड़ा पत्रकार भी हूं, लेकिन मैं आपका चैनल चलाने लायक नहीं हूं।’ मेरी बात सुनकर दाउद इब्राहिम मुस्कुराया और बोला, ‘देख! मेरे चैनल में भर्ती होने के लिए आवेदन नहीं करना पड़ता है। किसे रखना है, किसे नहीं रखना है, इसका चुनाव मैं करता हूं। मेरे यहं सिर्फ एप्वाइटमेंट होता है या फिर ‘ठांय’ की एक आवाज होती है और आदमी इस दुनिया से टर्मिनेट हो जाता है। इसलिए मेरी बात सुन..इंडिया जा, चैनल का हेड बनकर भर्तियां कर और चैनल आॅन एयर कर।’ इतना कहकर दाउद उठा और चला गया। उसके जाते ही पता नहीं किसने मेरे सिर   पर फिर मुष्टिका प्रहार किया और मैं बेहोश हो गया। जब होश में आया, तो अपने घर के बरामदे में पड़ा हुआ था। तो भाइयो! जिसको भी ‘डी’ चैनल में नौकरी चाहिए वह अपने आपराधिक रिकार्ड के साथ मुझे या सीधे दाउद जी को अपना सीवी भेज सकता है।

1 comment:

  1. jabardast.............mai jald hi apni cv post karta hu.....

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