- अशोक मिश्र
सौ अरब डॉलर का पूंजी
निवेश भारत का दरवाजा खटखटा रहा है। अब यह राज्यों पर निर्भर है कि वे
इसमें से कितना हिस्सा अपने यहां ले जाने में सफल होते हैं। ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहते हुए राज्यों के सामने
एक चुनौती पेश की कि वे आगे बढ़ें और अपने राज्य को समृद्ध करने की दिशा
में सक्रिय हो जाएं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों अपनी विदेश यात्राओं को लेकर काफी उत्साहित हैं। वे बार-बार यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्होंने विदेशी-देशी पूंजी निवेश की रुकी हुई प्रक्रिया को गति
प्रदान कर दी है, उसके मार्ग में आने वाली बाधाओं को खत्म करने में लगभग सफल हो गए हैं। यह सही है कि उन्होंने उद्यमियों के हित
में कई तरह की रियायत देने की घोषणा की है,
लेकिन सिर्फ घोषणा से ही सब कुछ नहीं हो जाता है। इन घोषणाओं को अमलीजामा पहनाना भी उतना ही जरूरी है, जितना कि घोषणा करना। मोदी ने ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में कहा कि चीन,
जापान और अमेरिका से सौ अरब डॉलर पूंजी निवेश आना है। इस अवसर का राज्यों को फायदा
उठाना चाहिए और राज्य और केंद्र सरकार को एक दूसरे का पूरक रहकर काम करना चाहिए। सिद्धांत रूप में इस बात से शायद ही किसी की असहमति हो। सभी इस बात से सहमत होंगे कि राज्य
और कें द्र सरकार को जनपक्षीय योजनाओं और परियोजनाओं को लेकर
राजनीति नहीं करनी चाहिए। लेकिन भारतीय राजनीति में क्या ऐसा होता है या हो सकता है? अमूमन तो अब तक यही देखने में आया है कि केंद्र
में जिस पार्टी की सरकार
होती है, उसी पार्टी के शासन
वाले राज्यों को केंद्र सरकार से मिलने वाली सुविधाएं बड़ी आसानी से मिल जाती हैं, परियोजनाओं में केंद्र का अंश
सुगमता से मिल जाता है, लेकिन विरोधी पार्टी द्वारा शासित राज्यों को अंशदान देने में अनावश्यक विलंब किया जाता है।
इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता है कि पिछले कुछ महीनों में मोदी की विदेश
यात्राओं का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। कई देशों से अरबों डॉलर के समझौते हुए हैं, कुछ परियोजनाओं पर सकारात्मक चर्चा भी हुई है, निकट भविष्य में उनके अमलीजामा पहनने की उम्मीद भी बलवती हुई है। लेकिन क्या सिर्फ इतना ही कर देने से पूंजी निवेश आने लगेगा? क्या दुनिया भर के उद्योगपति सिर्फ प्रधानमंत्री पर भरोसा करके पूंजी निवेश के लिए
भारत चले आएंगे? जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा। जब तक भारत में पूंजी निवेश के लायक माहौल, संगठनात्मक ढांचा नहीं खड़ा होता, तब तक बड़ी पूंजी निवेश की उम्मीद करना बेमानी होगा। पूंजी निवेश करने वाले सबसे पहले बिजली, पानी की उपलब्धता, सड़को की दशा, कानून व्यवस्था और अन्य बातों की ओर
भी ध्यान देंगे। प्रधानमंत्री और राज्य सरकारों को सबसे
पहले इस ओर ध्यान देना होगा कि पूंजी
निवेश के बाद
उत्पादित माल को ग्राहक तक पहुंचाने की व्यवस्था कैसे की जाए?
सड़को का सघन
जाल बिछाए बिना अंतिम आदमी तक उत्पादित माल को पहुंचा पाना, असंभव है। जिन क्षेत्रों में मोदी पूंजी निवेश की बात कर रहे हैं, वहां ये सब बातें काफी महत्व रखती हैं।
इसके बावजूद उम्मीद की जानी चाहिए कि देश की तस्वीर बदलेगी। राज्य और केंद्र सरकारें देश में शांति और सौहार्दपूर्ण वातावरण के निर्माण सक्रिय भूमिका निभाएंगी। कुछ मुद्दों पर केंद्र को सहयोगात्मक रवैया अख्तियार करना होगा, तो कुछ मामलों में राज्यों को भी हठधर्मिता त्यागनी होगी। देश के आर्थिक विकास के लिए पूंजी निवेश के साथ-साथ इन्फ्रास्टक्चर खड़ा होना बहुत जरूरी है। इससे न केवल लोगों को रोजगार, सुविधाएं प्राप्त होंगी, बल्कि प्रति व्यक्ति आय में भी इजाफा होगा। लोगों के रहन-सहन में बदलाव आएगा। उनकी जरूरतें आसानी से पूरी हो सकेंगी। और ऐसा तब होगा, जब राज्य में शांति हो, उद्योग लगाने के लिए आवश्यक वातावरण हो। शासन-प्रशासन का आवश्यक सहयोग भी मिलता रहे।
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