बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
लालच से किसी का भला नहीं होता है। लालची व्यक्ति सदैव इसी उधेड़बुन में लगा रहता है कि कैसे किसी को ठगा जाए, बेवकूफ बनाकर उसकी चीज को हड़प लिया जाए। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी लालच को बुरी बला बताया गया है, लेकिन कुछ लोग अपने स्वभाव को बदल नहीं पाते हैं जिसकी वजह से उन्हें जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
लालच को लेकर एक पुरानी कथा है। कहते हैं कि किसी गांव में एक वैद्य रहता था। वह लालची बहुत था। उसका स्वभाव भी अच्छा नहीं था। इस वजह से बहुत मजबूरी में ही लोग उसके पास इलाज कराने आते थे। उसके पास जो भी इलाज कराने आता, वह उसको थोड़ी बहुत राहत दिलाकर रोग का पूरी तरह उपचार नहीं करता था ताकि लोग दोबारा उसके पास आने को मजबूर हो जाएं।
इसका नतीजा यह हुआ कि लोगों ने उसके पास आना ही छोड़ दिया। एक समय ऐसा भी आया, जब काफी दिनों तक उसके पास कोई मरीज नहीं आया। वह परेशान हो गया। एक दिन वह एक बाग से होकर गुजर रहा था तो उसने देखा कि एक पुराने वृक्ष के तने के कोटर (तने का खोखला हिस्सा) में एक सांप बैठा हुआ है।
उसने सोचा कि यदि किसी को यह सांप काट ले, तो वह आदमी उसके पास इलाज के लिए जरूर आएगा। बाग में एक लड़का खेल रहा था। उसने लड़के से कहा कि इस कोटर में एक सुंदर गौरेया है। तुम इसे निकाल सकते हो। लड़का बोला कि मैं जरूर सुंदर गौरेया को पकडूंगा और पालूंगा।
बच्चे ने कोटर में हाथ डालकर बाहर निकाला तो वह सांप को हाथ में देखकर डर गया। उसने सांप को फेंका तो वह सांप वैद्य के गले में लिपट गया। सांप ने वैद्य को काट भी लिया, लेकिन वह जहरीला नहीं था। वैद्य के चिल्लाने पर कुछ लोगों ने आकर उसका इलाज किया और उसे पानी पिलाया। उस दिन के बाद वैद्य का व्यवहार बदल गया।
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