Tuesday, March 11, 2025

कोई अहंकार करके ऊपर नहीं उठ सकता

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती का वास्तविक नाम मुंशीराम विज था। उनका जन्म  22 फरवरी 1856 को जालंधर जिले के एक खत्री परिवार में हुआ था। अंग्रेजी शासन के दौरान उनके पिता नानक चंद विज संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में एक पुलिस अधिकारी थे। कहते हैं कि युवावस्था तक स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ईश्वर पर विश्वास नहीं करते थे। पिता के बार-बार ट्रांसफर होने के चलते वह ज्यादा पढ़ाई तो नहीं कर पाए, लेकिन प्रतिभा के वह धनी थे। एक बार बरेली में अपने पिता के साथ स्वामी दयानंद सरस्वती का प्रवचन सुनने गए, तो उनके तर्कों और बातों का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह आर्य समाजी होकर संन्यासी हो गए। अंग्रेजी शिक्षा का बहिष्कार करने के लिए स्वामी श्रद्धानंद ने 1901 में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना की। स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती का एक शिष्य था सदानंद। स्वामी जी आर्य समाज का प्रचार प्रसार करने के लिए देश भर में भ्रमण करते रहते थे। वह जहां भी जाते, अछूतों का उद्धार करने का प्रयास करते। सदानंद को एक बार यह अहंकार हो गया कि वह सबसे गुणी है, ज्ञानी है। उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता है। यही सोचकर उसने अपने साथियों से दूर-दूर रहने लगा। उसने सबसे बातचीत करना भी कम कर दिया। यह बात स्वामी श्रद्धानंद समझ गए। एक दिन जब वह उसके सामने से जा रहे थे, तो उसने स्वामी जी को अभिवादन भी नहीं किया। स्वामी ने उससे कहा कि कल तुम मेरे साथ भ्रमण पर चलना। वह उसे लेकर एक झरने के पास गए और बोले, तुम्हें क्या दिख रहा है। सदानंद बोला-झरना। तब स्वामी जी ने कहा कि जिसे ऊपर जाना होता है, उसे इस झरने की तरह झुकना आना चाहिए। अहंकार से कोई ऊपर नहीं पहुंच सकता है। यह सुनकर सदानंद को अपनी गलती का एहसास हुआ और क्षमा स्वामी जी से मांगी।



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