Sunday, November 9, 2025

वायलिन के मधुर संगीत में खो गए श्रोता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

निकोलो पगनिनी इटली के महान वायलिन वादक थे। इनका जन्म 27 अक्टूबर 1782 को इटली के जेनोआ में हुआ था। पगनिनी के पिता ने इन्हें बचपन से ही वायलिन बजाना सिखा दिया था। कहते हैं कि 12 साल की उम्र में इन्होंने सार्वजनिक मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन किया था। 

उन्होंने हार्मोनिक्स, डबल और ट्रिपल स्टॉप्स और अन्य तकनीकों का उपयोग करके वायलिन की तकनीकी सीमाओं का विस्तार किया। उनकी रचनाएं इतनी जटिल थीं कि शुरू में केवल वे ही उन्हें बजा सकते थे। एक बार की बात है। उन्हें एक महत्वपूर्ण स्थान पर वायलिन बजाने का आमंत्रण मिला। वह इस आयोजन को लेकर बहुत उत्साहित थे। 

आखिरकार, वह दिन आ ही गया, जिस दिन उन्हें अपनी कला का प्रदर्शन करना था। इस आयोजन के लिए पगनिनी ने काफी तैयारी भी की थी। कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने पर उनका भव्य स्वागत किया गया। यह देखकर पगनिनी की आंखों में आंसू आ गए। वह अपनी आंखें बंदकर वायलिन बजाने लगे। वहां मौजूद लोग उस वायलिन की धुन में खो गए। 

वायलिन बजाने में पगनिनी इतना खो गए थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि वायलिन का एक तार टूट गया है। कुछ देर बाद उन्हें और श्रोताओं को लगा कि मधुर संगीत में बदलाव आ गया है। इसके बाद भी वह रुके नहीं। थोड़ी देर बाद वायलिन का दूसरा तार भी टूट गया। पगनिनी ने वायलिन बजाना बंद कर दिया, तभी एक श्रोता ने कहा कि बजाइए, अभी एक तार बाकी है। पगनिनी ने आंखें बंद की और एक तार पर ही वायलिन बजाने लगे। संगीत सुनते ही श्रोता मंत्रमुग्ध होकर सुनने लगे। बाद में पगनिनी ने कहा कि आत्मविश्वास और कार्य के प्रति सच्ची भावना के कारण ही यह संभव हुआ।

आपरेशन ट्रैकडाउन के जरिये अपराधियों पर अंकुश की कोशिश

अशोक मिश्र

हर प्रदेश का नागरिक और सरकार यही चाहती है कि उसके यहां अपराध कतई न हो। हर नागरिक सुकून के साथ जीवन गुजारना चाहता है। लेकिन उसकी इस मंशा पर अपराधी, गैंगस्टर और साइबर ठग पानी फेर देते हैं। वैसे तो अपराधियों पर लगाम लगाना उस राज्य की सरकार और प्रशासनिक व्यवस्था का काम है। जिस प्रदेश में अपराधी, माफिया और गैंगस्टर जैसे लोग नहीं रहते हैं या बिल्कुल कम रहते हैं, वह प्रदेश उन्नति के मार्ग पर सतत आगे बढ़ता रहता है क्योंकि अपराधरहित वातावरण में ही पूंजीपति अपना पूंजी निवेश करना चाहता है। 

वह चाहता है कि प्रदेश में शांति व्यवस्था कायम रहे, ताकि उसको अपने उत्पादन कार्य के लिए किसी तरह के भय का सामना न करना पड़े। हरियाणा की सैनी सरकार ने प्रदेश से अपराध और अपराधियों को काबू पाने के लिए विशेष प्रयास करने शुरू कर दिए हैं। हरियाणा पुलिस ने पांच नवंबर से 20 नवंबर तक आपरेशन ट्रैक डाउन अभियान चलाया है। पहले ही दिन हरियाणा पुलिस को जो सफलता मिली है, उससे यह विश्वास हो चला है कि जो अपराधी पिछले काफी दिनों से फरार हैं, जिन पर विभिन्न मामलों में मुकदमे दर्ज हैं, उनको पकड़कर सलाखों के पीछे डाल सके। 

 के तहत गोलीबारी, फिरौती, अपहरण और हत्या जैसे गंभीर मामलों में लिप्त भगौड़े अपराधियों को गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे डालने की फिराक में है। कानूनी दायरे में लाकर अपराधियों को सजा दिलवाना ही आपरेशन ट्रैकडाउन का लक्ष्य है। हरियाणा पुलिस ने पांच नवंबर को पहले ही दिन 32 अपराधियों को पकड़कर सराहनीय शुरुआत की है। अभियान का नेतृत्व आईजी क्राइम ब्रांच कर रहे हैं और उन्होंने अपना मोबाइल नंबर भी जारी किया है, ताकि कोई भी नागरिक किसी अपराधी के बारे में गुप्त रूप से सूचना दे सके। 

बीस नवंबर तक चलने वाले आपरेशन ट्रैकडाउन कितना सफल होगा, यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन यह एक अच्छी शुरुआत है, इसमें कोई दो राय नहीं है। यह बात सही है कि पछले वर्षों की तुलना में अपराध दर में काफी गिरावट आई है। हरियाणा राज्य क्राइम ब्यूरो रिकार्ड के मुताबिक वर्ष 2014 से 2025 के बीच चेन स्नैचिंग को छोड़कर अधिकतर मामलों में अपराध काफी कम हुए हैं। हरियाणा में पिछले कई वर्षों की तुलना में वर्तमान समय में अपराध की दर घटी है। 

इससे आम नागरिकों में सुरक्षा की भावना पैदा हुई है। लोग अब अपने को सुरक्षित महसूस करने लगे हैं। प्रत्येक थाना और जिला स्तर पर निगरानी व्यवस्था को मजबूत किया गया है। सरकार का दावा है कि वर्ष 2023 से अब तक प्रदेश में 233 मोस्टवांटेड अपराधियों को गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे डाला गया है। यही नहीं, प्रदेश में सक्रिय 248 गैंगस्टरों और उनके कारिंदों के साथ-साथ 792 आपराधिक मामलों में शामिल अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है।



Saturday, November 8, 2025

चतुराई और हिम्मत से बचा गधा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे सामने समस्या चाहे कितनी भी बड़ी हो, लेकिन उस समस्या का समाधान जरूर होता है। कुछ लोग समस्या को देखते ही हार मान लेते हैं, लेकिन कुछ लोग उसका सामना करते हैं। जो समस्या का सामना करते हैं, वही समस्या से छुटकारा पाते हैं। समस्याएं हमारे सामने आकर यही समझाने की कोशिश करती हैं, लेकिन हम समझ नहीं पाते हैं। एक बार की बात है। 

एक आदमी अपने गधे के साथ कहीं जा रहा था। रास्ते में काफी बड़े बड़े गड्ढे थे। आदमी और गधा इन गड्ढों में गिरने से बचने का हर संभव प्रयास कर रहे थे, लेकिन शायद उस आदमी की किस्मत खराब थी। उसका गधा एक बड़े से गड्ढे में गिर गया। उस आदमी ने अपने गधे को बाहर निकालने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। गड्ढे में गिरा गधा तड़प रहा था। 

उससे गधे का तड़पना देखा नहीं जा रहा था। उस आदमी ने सोचा कि जब मैं इस गधे को बाहर नहीं निकाल सकता, तो क्यों न, इस गड्ढे को भर दिया जाए ताकि गधा बिना किसी तकलीफ के मर जाए ताकि इसे दर्द से छुटकारा मिल जाए और ज्यादा दिनों तक तकलीफ को झेलना न पड़े। उसने उस रास्ते से जा रहे कुछ लोगों की मदद ली। लोगों ने उस गड्ढे को पाटना शुरू कर दिया।

जब एक डलिया मिट्टी गड्ढे में पड़ती, तो गधा उसे बराबर बिछा देता। यह करते समय काफी समय बीत गया। लोग मिट्टी डालते रहे और गधा उस पर चढ़कर ऊंचा उठता गया। धीरे-धीरे गधा इतना ऊपर आ गया कि वह आसानी से गड्ढे से बाहर निकल सके। इस तरह अपनी हिम्मत और चतुराई से गधा बाहर आ गया। यह देखकर वह आदमी बहुत प्रसन्न हुआ। वह गधे को लेकर अपने घर चला गया।

नैतिक पतन की पराकाष्ठा, संबंधों की मर्यादा के साथ हो रहा खिलवाड़

अशोक मिश्र

हमारे देश में रिश्तों की कदर हमेशा की जाती रही है। इन रिश्तों की पवित्रता और मर्यादा बनाए रखने के लिए सामाजिक मानदंड, रीति रिवाजों का निर्माण किया गया और कुछ परंपराएं शुरू की गईं। सामाजिक मानदंड, रीति-रिवाज और परंपराओं का पालन करना कोई कानूनी बाध्यकारी मसला नहीं है। लेकिन इसका पालन समाज का हर व्यक्ति करता है। अगर ऐसा नहीं करता है, तो उसको कानूनी तौर पर कोई सजा नहीं दे सकते हैं, लेकिन ऐसा व्यक्ति सामाजिक निंदा का पात्र जरूर होता है। 

इसे अभिसमय यानी कन्वेंशन भी कहा जाता है। कवि कुल गुरु महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने एक स्थान पर कहा है कि अनुज वधू, भगिनी, सुत नारी, तिनहिं विलोकत पातक भारी। कहने का मतलब यह है कि छोटे भाई की पत्नी, बहन और पुत्र वधू पर जो कुदृष्टि डालता है, वह भारी पाप का भागी होता है। लेकिन आज यह सब सामाजिक मान्यताएं टूट रही हैं। हाल में ही नूंह के पिनगंवा थाना क्षेत्र में एक ऐसी घटना हुई जिसमें इंसानियत और रिश्ते शर्मसार हो गए। एक नाबालिग लड़की का उसके जीजा ने अपने साथियों के साथ अपहरण कर लिया। 

नाबालिग लड़की को उसके जीजा ने फोन करके पानी देने को कहा और जब वह पानी लेकर घर के बाहर आई, तो उसका अपहरण उसके जीजा ने अपने साथियों के साथ कर लिया। उसे अपहरण करके राजस्थान ले जाया गया और तीन दिन तक जीजा और उसके साथियों ने बलात्कार किया। तीन दिन बाद नाबालिग को गांव के पास छोड़कर आरोपी फरार हो गए। घर पहुंचने के बाद नाबालिग ने अपने भाइयों से घटना की जानकारी दी, तब बात पुलिस तक पहुंची। 

भारतीय समाज में जीजा और साली के बीच शिष्ट हास्य की परंपरा रही है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि सारी मर्यादाएं तार-तार कर दी जाएं। जिस समाज में आज हम रह रहे हैं, उस समाज में भाई, बहन, जीजा-साली, देवर-भाभी जैसे शब्दों की मर्यादा ही लगता है कि खत्म हो चुकी है। कई बार तो ऐसी भी खबरें पढ़ने को मिल जाती हैं कि भाई ने ही अपनी बहन का यौन शोषण किया। देवर ने मां के समान समझी जाने वाली भाभी के साथ दुराचार किया। प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या करने की घटनाएं भी अब आम हो चली हैं। 

कहीं पति को मारकर घर में दफना दिया जा रहा है, तो कहीं प्लास्टिक के ड्रम में सीमेंट के साथ भर दिया जा रहा है। कहीं कोई व्यक्ति अपनी होने वाली सास को ही लेकर फरार हो रहा है। होने वाली सास बाद में मीडिया के सामने आकर बयान देती है कि उसने अपने होने वाले दामाद के साथ ही शादी कर ली है। यह सब कुछ आधुनिकता के नाम पर किया जा रहा है। इन घटनाओं को देखकर ऐसा लगता है कि समाज ने अपनी नैतिकता को त्याग करके अनैतिकता को ही अपना आवरण बना लिया है।

Friday, November 7, 2025

साधु वेश का अपमान होता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

रामपुर रियासत की स्थापना राम सिंह ने की थी। 1774 में जब नवाब फैजुल्लाह खान ने सत्ता संभाली, तो इसके नाम में कोई बदलाव नहीं किया। राजा राम सिंह की कई पीढ़ी बाद कोई राजा रणवीर सिंह हुए हैं। कहा जाता है कि वह बहुत दयालु, प्रजावत्सल और कला पारखी थे। उनके दरबार में कलाकारों, साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों का बड़ा सम्मान होता था। वह कला प्रेमी थे। एक दिन की बात है। 

जब वह अपने दरबार में बैठे राज्य की समस्याओं पर विचार-विमर्श कर रहे थे। उसी समय एक बहुरूपिया महादेवी का रूप धर पहुंचा। दरबारियों ने उसे देखा तो वह आश्चर्यचकित हो गए क्योंकि इससे पहले बिना कोई सूचना दिए महारानी दरबार में नहीं आई थीं। लेकिन कुछ देर बाद बहुरूपिया अपने असली वेष में आ गया। उसकी कला से राजा बहुत प्रसन्न हुए। 

उन्होंने उसे खूब इनाम देते हुए कहा कि तुम साधु का रूप धरो और मैं पहचान पाऊं, तब तुम्हारी कला का लोहा मान लूंगा। बहुरूपिये ने कहा-ठीक है। इस बात को दो महीने बीत गए। एक दिन नगर में चर्चा चली कि एक साधु सेठ की बगिया में ठहरा हुआ है। वह लोगों के भाग्य बताता है, लेकिन लेता कुछ नहीं है। यह चर्चा राजा तक पहुंची। वह ढेरा सारा उपहार लेकर साधु से मिलने पहुंचा। 

राजा ने साधु को ढेर सारा उपहार भेंट किया, लेकिन साधु ने बड़े आदर से लौटा दिया। दूसरे दिन बहुरूपिया राजमहल पहुंचा और कहा कि आप कल मुझे पहचान नहीं पाए। राजा प्रसन्न हुआ। उसने खूब ईनाम दिया और पूछा कि कल तुम्हारे पर खूब स्वर्णाभूषण और पैसे मैं दे रहा था, लेकिन तुमने क्यों नहीं लिया? बहुरूपिये ने कहा कि यह वह मैं स्वीकार कर लेता, तो उस रूप का अपमान होता। साधु के वेश में मैं वह सब कैसे ले सकता था। यह सुनकर राजा और भी खुश हुआ।

क्षय रोग मुक्त भारत का लक्ष्य अभी पूरा होने की उम्मीद नहीं

अशोक मिश्र

जनवरी 2025 में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं जनकल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने सौ दिन में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम चलाकर देश से टीबी को ख्तम करने की बात कही थी। सौ दिन में टीबी उन्मूलन का देशव्यापी अ्भियान तो जरूर चला, लेकिन टीबी उन्मूलन नहीं हो पाया। यह कार्यक्रम अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया। 

वैसे भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशानुसार भारत ने इस साल के अंत तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा है, लेकिन जब एक महीने चौबीस-पच्चीस दिन ही लक्ष्य प्राप्ति के बचे हैं, ऐसी हालत में यह लक्ष्य हासिल होता नहीं दिखाई दे रहा है। टीबी यानी ट्यूबरकुलोसिस अर्थात तपेदिक को चार-पांच दशक पहले जानलेवा रोग माना जाता था। इसका इलाज नहीं था। आज इसका सफल इलाज है, लेकिन यदि समुचित इलाज न किया जाए तो यह आज भी जानलेवा है। 

हरियाणा में टीबी के संबंध में जो आंकड़े अभी हाल में सामने आए हैं, वह चिंताजनक है। प्रदेश में लगातार टीबी के मरीज बढ़ रहे हैं। निक्षय पोर्टल का ताजा आंकड़ा बताता है कि सात दिसंबर 2024 से  19 अक्टूबर 2025 के बीच हरियाणा में क्षय रोग के 43, 879 नए मरीज पाए गए हैं। यह आंकड़ा यह बताने के लिए पर्याप्त है कि दिसंबर तक क्षय रोग से देश को मुक्ति नहीं मिलने वाली है। हरियाणा में पाए गए नए रोगियों में सबसे ज्यादा फरीदाबाद में पाए गए हैं। इसके बाद गुरुग्राम दूसरे, पानीपत तीसरे, रोहतक चौथे और नूंह पांचवें स्थान पर हैं। पिछले साल 7 दिसंबर 2024 से केंद्र सरकार ने सौ दिन में पूरे देश को टीबी मुक्त करने का अभियान चलाया था। 

यह अभियान हरियाणा में भी चला था। बड़े पैमाने पर लोगों की जांच की गई थी। अभी हाल में ही पूरे प्रदेश में 6,39,977 असुरक्षित लोगों की टीबी मानीटिरिंग की गई थी। इन लोगों को ट्यूबरकुलोसिस का खतरा था। इनमें से 43,879 लोग टीबी से संक्रमित पाए गए। इस मामले में सबसे चिंताजनक बात यह है कि कुछ लोग अपने रोग को गंभीरता से नहीं लेते हैं। नतीजा यह होता है कि जब हालात बिगड़ जाते हैं, तो वह डॉक्टर के पास भागते हैं। तब दवा का हाई डोज उन्हें लेना पड़ता है। 

स्वास्थ्य विभाग की टीमों ने टीबी निवारक उपचार के लिए 1,15,996 लोगों से संपर्क किया, तो 57,583 लोग ही इलाज के लिए तैयार हुए। बाकी लोगों ने इलाज कराने से इनकार कर दिया। जिन लोगों ने अपना इलाज कराने से इनकार कर दिया है, वह लोग अपने आसपास रहने वाले लोगों के लिए खतरा हैं। उनके यहां वहां थूकने से उस थूक के संपर्क में आने वाले लोगों के भी टीबी से संक्रमित होने का खतरा है। दूसरे राज्यों के वह रोगी जो अपना इलाज पूरा नहीं करवाते हैं और अपने राज्य लौट जाते हैं, वह भी लोगों के लिए खतरा साबित होते हैं। हरियाणा सरकार को ऐसे रोगियों पर निगाह रखने के लिए संबंधित राज्य से संपर्क करना चाहिए।

Thursday, November 6, 2025

महाराजा रणजीत सिंह की दयालुता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महाराणा रणजीत सिंह को शेर-ए-पंजाब का खिताब दिया गया था। वह अपने समय के सबसे लोकप्रिय महाराजा थे। रणजीत सिंह ने कई रियासतों में बंटे पंजाब को एक करके अंग्रेजों के खिलाफ जीवन भर लड़ाई लड़ी। सन 1780 में रणजीत सिंह का जन्म गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में महाराजा महा सिंह के घर में हुआ था। 

चेचक की वजह से रणजीत सिंह की एक आंख चली गई थी। जब वह बारह साल के थे, तो उनके कंधे पर शासन का कार्यभार आ गया था। एक बार की बात है। महाराजा रणजीत सिंह अपने लश्कर के साथ कहीं जा रहे थे। जब वह एक बाग के नजदीक से गुजर रहे थे, तो उनके सिर पर एक पत्थर आ लगा। उनके सिर से खून बहने लगा। सैनिकों ने तत्काल पत्थर मारने वाले की खोज शुरू की। 

थोड़ी देर बाद सैनिक एक बुजुर्ग महिला को पकड़कर लाए। महिला डर से थर थर कांप रही थी। सैनिकों ने उस महिला से पूछा-तुमने पत्थर क्यों मारा? तब तक महाराजा रणजीत सिंह भी उस बुजुर्ग महिला के पास पहुंच चुके थे। उस महिला ने कांपते हुए कहा कि महाराज! मेरे घर में दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। उन्होंने दो दिन से कुछ नहीं खाया है। मैं भोजन की तलाश में घर से निकली थी। 

किसी के यहां से कुछ खाने को नहीं मिला, तो इस बाग से कुछ फल तोड़ने का प्रयास कर रही थी ताकि बच्चों का पेट भरा जा सके। लेकिन यहां भी मेरे दुर्भाग्य ने आ घेरा। वह पत्थर आपको लग गया। महाराजा रणजीत सिंह उस महिला के पास गए और उसको सांत्वना देते हुए अफसरों से कहा कि माता जी को कुछ अशर्फियां देकर सम्मान के साथ विदा कर दो। लोगों को ताज्जुब हुआ कि यह कैसा न्याय है? एक सैनिक ने कहा कि वह तो सजा की हकदार थी। रणजीत सिंह ने हंसते हुए कहा कि पत्थर मारने पर जब पेड़ भी फल देता है, मैं तो मनुष्य हूं।

हरियाणा के स्टेडियमों और खेल परिसरों पर ध्यान दे सरकार

अशोक मिश्र

हरियाणा में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। देश में सभी तरह के खेलों में हरियाणा का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहता है। चाहे ओलिंपिक हो, कामन वेल्थ गेम्स हों या दूसरी तरह की अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाएं, हरियाणा के खिलाड़ी हमेशा आगे रहते हैं। खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए प्रदेश सरकार पैसा भी बहुत खर्च करती है। जब कोई खिलाड़ी कोई पदक जीतकर आता है, तो सरकार उसका स्वागत भी अच्छी तरह करती है। 

इसके बावजूद यह भी सच है कि अभी प्रदेश में बहुत कुछ ऐसा किया जाना बाकी है जिसके चलते ढेर सारी प्रतिभाएं अपना कौशल नहीं दिखा पा रही है। खेल और खिलाड़ियों को निखारने के लिए प्रदेश सरकार बजट में अच्छा खासा पैसा देती है, लेकिन उन पैसों का सदुपयोग नहीं होने से सारा किया धरा बेकार हो रहा है। इस बात का सबसे बढ़िया उदाहरण राजीव गांधी ग्रामीण खेल परिसर हैं। 

प्रदेश के विभिन्न जिलों में कांग्रेस शासनकाल में ग्रामीण इलाकों में खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए राजीव गांधी ग्रामीण खेल परिसरों का निर्माण किया गया था। इन परिसरों के माध्यम में उन ग्रामीण खेल प्रतिभाओं को निखारने की योजना थी जिनकी आर्थिक स्थिति खराब थी। ग्रामीण क्षेत्र के गरीब बच्चों को सरकारी सहायता और सुविधा प्रदान करके उनकी प्रतिभाओं को निखारने के लिए ही ये परिसर बनाए गए थे। इन परिसरों में कांग्रेस शासनकाल तक थोड़ा बहुत काम हुआ, लेकिन भाजपा शासनकाल में भारी भरकम बजट तो जारी होता रहा, लेकिन धरातल पर उतना काम नहीं हुआ जितने की अपेक्षा थी। 

इन खेल परिसरों के निर्माण में करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन एक भी खेल प्रतिभाओं की तलाश इन परिसरों से नहीं हो पाई। दस साल पहले भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में छह जिलों के 27 ग्रामीण खेल परिसरों को खेल के लिए अनफिट करार दिया था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश में खेल परिसरों के नाम पर किस तरह धन का दुरुपयोग किया गया है। कई शहरों में बने स्टेडियम के भी हालत काफी खराब हैं। सोनीपत में स्टेडियम का रखरखाव ठीक से नहीं होने से वहां घास उग आई हैं। कल की ही खबर है कि हाकी खिलाड़ियों को प्रैक्टिस करने के लिए पहले वहां उगी घास काटनी पड़ी। 

उसके खेलने लायक बनाना पड़ा, तब वह प्रैक्टिस कर पाईं। इस स्टेडियम में न पानी की व्यवस्था है, न किसी प्रकार की सुविधाएं मुहैया करवाई जाती हैं। स्टेडियम में चौकीदार और ग्राउंडमैन तक नियुक्त नहीं किए गए हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भी यदि प्रदेश के खिलाड़ी विभिन्न खेलों में पदक जीतकर लाते हैं, तो इन खिलाड़ियों के साहस, लगन और जुझारूपन की प्रशंसा की जानी चाहिए। सरकार को इन खेल परिसरों पर ध्यान देना चाहिए, ताकि ग्रामीण प्रतिभाएं निखर सकें।

Wednesday, November 5, 2025

हर दृष्टिकोण सत्य होते हुए भी अधूरा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

सत्य सापेक्ष होता है। जो व्यक्ति किसी वस्तु या विचार को देखते है, तो वह अपने नजरिये के अनुसार पाता है। जो बात किसी व्यक्ति के लिए सत्य हो सकती है, वह किसी दूसरे व्यक्ति के लिए असत्य हो सकती है। जो आग किसी व्यक्ति को जला सकती है, वही आग ठंड से ठिठुरते व्यक्ति को राहत दे सकती है। जबकि दोनों मामलों में आग एक ही है। इस संबंध में एक रोचक कथा है। किसी शहर में एक हाथी आया। 

उस शहर के लोगों ने पहली बार हाथी देखा था। इसकी खूब चर्चा हुई। यह चर्चा उड़ती हुई अंधे लोगों के एक समूह तक पहुंची। अंधे लोगों ने आपस में विचार किया कि शहर में एक अजीबोगरीब जानवर आया है, जिसे हाथी कहा जाता है। लेकिन उन अंधे लोगों को हाथी का आकार-प्रकार नहीं पता था। वह भिन्न प्रकार के आकार-प्रकार की कल्पना करने लगे। काफी सोच विचार और मंथन के बाद अंधे लोगों के समूह ने फैसला किया कि एक बार हमें हाथी को छूकर देखना चाहिए। 

बेकार की कल्पना करने से बेहतर है कि हम उसे छूकर उसकी सच्चाई का पता लगाएं। इसलिए उन्होंने हाथी के मालिक से मिलने का फैसला किया। आखिर में उन्हें मालिक से हाथी को छूने की इजाजत मिल गई। पहले व्यक्ति का हाथ सूंड पर पड़ा। उसने कहा, हाथी एक मोटे साँप जैसा है। दूसरे व्यक्ति का हाथ उसके कान तक पहुँचा, उसे वह एक पंखे जैसा लगा। एक और व्यक्ति का हाथ पैर पर था। 

उसने कहा, हाथी पेड़ के तने जैसा है। इस तरह सभी अंधों ने हाथी के विभिन्न अंगों को छुआ और उसके मुताबिक ही हाथी का आकार बताया। वैसे जिसने हाथी देखा है, वह जानता है कि हाथी कैसा होता है, लेकिन अंधों ने जैसा महसूस किया था, उनके लिए वही सत्य था।

लावारिस पशुओं से मुक्ति की बाट जोह रही हरियाणा की जनता

अशोक मिश्र

मई महीने में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने डेयरी संचालकों और पशु पालकों को चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि सड़कों पर लावारिस पशु दिखाई दिए, तो डेयरी संचालकों और पशु पालकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। इस चेतावनी को डेयरी संचालकों और पशु पालकों ने कितनी गंभीरता से लिया, इसका पता इस बात से चलता है कि आज भी सड़कों पर लावारिस पशु अच्छी खासी संख्या में दिखाई दे जाते हैं। प्रदेश का शायद  ही कोई ऐसा जिला हो, जहां सड़कों और गलियों में लावारिस पशु न दिखाई देते हों। 

सड़कों पर घूमते लावारिस पशु लोगों के लिए भारी मुसीबत का कारण बन रहे हैं। कुछ पशु तो इतने आक्रामक होते हैं कि वह साइकिल या स्कूटी, मोटरसाइकिल सवार को देखते ही मारने दौड़ पड़ते हैं। लावारिस पशु से बचने के प्रयास में कई बार सवार हादसे का शिकार हो जाते हैं। कुछ लोग हादसों में अपनी जान भी गंवा बैठते हैं। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो ऐसे हादसों में जीवन भर के लिए अपंग हो जाते हैं। 

सरकार के बार-बार चेतावनी देने के बाद भी लोग अपने पशुओं को खुले में छोड़ देने की आदत से बाज नहीं आते हैं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने अगस्त में एक राज्यव्यापी अभियान चलाया था जिसमें हरियाणा की सड़कों को पशु मुक्त करने की बात कही गई थी। प्रदेश सरकार ने स्थानीय निकायों को यह स्पष्ट आदेश दिया था कि वह अपने-अपने इलाकों में घूम रहे लावारिस पशुओं को पकड़कर गौशालाओं में ले जाएं। इनको वहां रखें। इसके लिए राज्य सरकार ने गौशालाओं को आर्थिक सहायता देने का भी प्रावधान किया था। प्रति बछड़े के लिए तीन सौ रुपये, प्रति गाय के लिए छह सौ रुपये और प्रति बैल आठ सौ रुपये देने की व्यवस्था की थी। यह अभियान पूरे एक महीने तक चला था। 

इस अभियान में स्थानीय शहरी निकाय, हरियाणा गौशाला आयोग और पशुपालन विभाग ने हिस्सा लिया था। लेकिन यह अभियान कितना सफल हुआ, इसकी पुष्टि सड़कों पर घूमते लावारिस पशु करते हैं। अभियान के दौरान पाए गए लावारिस पशुओं की टैगिंग की व्यवस्था की गई थी। उनका एक रिकार्ड तैयार करने की भी बात कही गई थी। आज सड़कों पर घूमते कई लावारिस पशुओं में टैग वाले पशु भी देखे गए हैं। सड़कों पर विचरण करने वाले लावारिस पशुओं की वजह से सबसे ज्यादा बच्चे और बुजुर्ग परेशान होते हैं। 

जब दो पशुओं में लड़ाई होती है या पशु ही आक्रामक हो तो इनकी चपेट में आने से बच्चे और बुजुर्ग कम ही बच पाते हैं। ऐसी स्थिति में उनको गंभीर चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है। कई जगहों पर तो लावारिस पशु यातायात व्यवस्था के लिए भी एक संकट साबित होते हैं। लावारिस पशु सड़कों, गलियों में गदंगी भी फैलाते हैं। भोजन की तलाश में यह कूड़ा-करकट भी बिखेर देते हैं।