बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
वाल्टेयर को फ्रांसीसी साहित्य में दार्शनिक, इतिहासकार और व्यंग्यकार के रूप में प्रतिष्ठा हासिल हुई थी। वह अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के लिए प्रसिद्ध थे। वैसे वाल्टेयर उनका उपनाम था। उनका असली नाम फ्रांस्वां-मारी अरुए था। वाल्टेयर अभिव्यक्ति और धार्मिक स्वतंत्रता के पक्षधर थे। वाल्टेयर की रचनाओं में व्यंग्य का पुट ज्यादा होता था जिससे शासक तिलमिला जाते थे।वह कई बार रोमन कैथोलिक चर्च की भी समीक्षा कर चुके थे। इसका नतीजा यह हुआ कि वह कई बार सार्वजनिक जगहों पर पीटे गए। शासकों ने उन्हें जेल में डाल दिया। वैसे बचपन में उनके पिता फ्रांकोइस अरौएट चाहते थे कि उनका बेटा वकील बने क्योंकि वह खुद एक वकील थे और एक मामूली कोषागार के अधिकारी थे। लेकिन वाल्टेयर की रुचि साहित्य में थी।
वह लेखक बनना चाहते थे। जब वाल्टेयर को यह लगने लगा कि फ्रांस में रहकर अपनी बात कह पाना मुमकिन नहीं है, तो उन्होंने देश छोड़ने का फैसला किया। वह देश छोड़कर लंदन आ गए। लंदन में अभिव्यक्ति पर उन दिनों कोई प्रतिबंध नहीं था। जिन बातों को वह लिखना चाहते थे, उन बातों को लंदन में रहकर लिख सकते थे। लंदन में रहने के दौरान अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन करने के बाद ही उनकी समझ में आया कि धार्मिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या महत्व है।
इसके बाद वह फिर फ्रांस लौट गए और इंग्लैंड में लिखी पुस्तक लेटर्स आॅन द इंग्लिश प्रकाशित कराई। इस बार भी फ्रांस की सत्ता तिलमिला उठी। पुस्तक की प्रतियां जला दी गईं और प्रकाशक को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद वह अज्ञातवास में चले गए। सन 1778 में उनकी मौत हो गई।






