Tuesday, April 8, 2025

प्रकृति ने इंसान को दो ही रंग दिए

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र
आधुनिक भारत का सपना देखने वाले राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 में बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बंगाली समाज में पुनर्जागरण का सबसे ज्यादा श्रेय राजा राम मोहन राय को दिया जाता है। वह रंगभेद के खिलाफ थे और जीवन भर रंगभेद के खिलाफ संघर्ष करते रहे। कहते हैं कि पंद्रह साल की उम्र में ही इन्होंने बंगाली, फारसी, संस्कृत और अरबी का अच्छा खासा ज्ञान हासिल कर लिया था। 

विधवा विवाह के लिए काफी संघर्ष किया था। वह बाल विवाह, सती प्रथा, जाति-पाति, छुआछूत, कर्मकांड और पर्दा प्रथा के घोर विरोधी थे। राजा राम मोहन राय ने पांच साल तक ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी भी की और उसके बाद नौकरी छोड़कर ब्रह्म समाज की स्थापना की। कहा जाता है कि उनका एक अनुयायी था नंद किशोर बोस। बोस को विवाह के लिए गोरी लड़की को दिखाया गया, लेकिन उसकी शादी एक सांवली लड़की से करा दी गई। 

इससे वह अपने ससुर से काफी नाराज था और अपने ससुर को सबक सिखाना चाहता था। उसने यह बाद राजा राम मोहन राय को बताई तो मोहन राय ने बोस से पूछा कि तुम्हारी पत्नी के सांवली होने के अलावा उसमें कोई और दोष है क्या। बोस ने कहा कि नहीं, वह सुशील है। घर के कामों में काफी निपुण है। वह परिवार का पूरा ख्याल भी रखती है। घर में किसी को उससे कोई शिकायत भी नहीं है। 

तब मोहन राय ने कहा कि प्रकृति ने इंसान को दो ही रंग दिए हैं। गोरा या काला। अब अपने ससुर द्वारा किए गए कुकृत्य के लिए अपनी निर्दोष पत्नी को सजा देना चाहते हो। क्या यह उचित है? यह सुनकर नंद किशोर बोस को अपनी गलती समझ में आ गई। इसके बाद उसने अपनी पत्नी को त्यागने का विचार छोड़ दिया।


मानवता की सेवा करने वाले लुई पाश्चर

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

लुई पाश्चर फ्रांस के महान रसायनज्ञ और सूक्ष्मजीव विज्ञानी थे। उनका जन्म 27 दिसंबर 1822 को फ्रांस के डोल में हुआ था। रैबीज टीके की खोज का श्रेय लुई पाश्चर को ही जाता है। उन्होंने एक बार देखा कि पागल कुत्ते के मुंह से निकलने वाले झाग जानलेवा होता है जो सबसे पहले दिमाग पर असर डालता है। 

उन्होंने पागल कुत्ते के मुंह से निकलने वाले झाग को इकट्ठा किया और उससे एक सीरम तैयार किया। इसका परीक्षण बाद में उन्होंने चमगादड़, बिल्ली, बंदर, नेवला और भेड़िया आदि पर किया। परिणाम काफी उत्साहजनक रहे। उनके इस काम में उनके बचपन के मित्र  रूक्स ने काफी मदद की। पागल कुत्ते के काटने का इलाज खोजने के पीछे एक कारण यह था कि जब वह छोटे थे, तो उनके एक मित्र निकोल को एक पागल कुत्ते ने काट लिया था। निकोल की मृत्यु को वह भूल नहीं पाए थे। 

वह अपने मित्र को खो देने के बाद इसके इलाज के बारे में ही सोचते रहते थे। रैबीज का टीका तैयार कर लेने के बाद सबसे पहले एक बच्चे पर उन्होंने प्रयोग किया। एक महिला के बेटे को दो दिन पहले पागल कुत्ते ने काट लिया था। उस लड़के की हालत प्रतिपल खराब होती जा रही थी। वह अपने बेटे को पाश्चर के पास इलाज के लिए लेकर आई थी। 

उन्होंने वह टीका उस बच्चे को लगाया, तो नतीजे सकारात्मक निकले। बच्चा कुछ दिन बाद पूरी तरह ठीक हो गया। इसके बाद उन्होंने कई तरह के टीकों की इजाद की। कहा जाता है कि वह स्टासबर्ग यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे, तो वह वहां के एक अधिकारी की बेटी से विवाह करना चाहते थे। बाद में जब तय हो गया, तो वह विवाह के दिन चर्च नहीं पहुंचे क्योंकि टीके की खोज में जुटे हुए थे। 

बाद में उनकी शादी धूमधाम से हुई। मानवता की इतनी बड़ी सेवा करने वाले लुई पाश्चर को बाद में फ्रांस की सरकार ने सम्मानित किया।



Monday, April 7, 2025

मेहनत की कमाई खाने वाला अच्छा इंसान

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अरब देश में पैदा हुए हातिम ताई एक किंवदंती बनकर रह गए हैं। इनका जन्म कब हुआ था, यह तो पता नहीं, लेकिन माना जाता है कि इनकी मृत्यु  578 ईस्वी में अरब देश के ताइल में हुई थी। अरबी साहित्य में इनका पूरा नाम हातिम बिन अब्दुल्लाह बिन साद अल ताई बताया गया है। 

कहा तो यह भी जाता है कि इनके पुत्र अदी बिन हातिम ताई थे, जो इस्लामिक पैगंबर मुहम्मद के साथी थे। हातिमताई एक ऐसे पुरुष के रूप में मशहूर हैं जो हर जरूरतमंद की मदद करता था। हातिमताई के बारे में बहुत सारे किस्से मशहूर हैं। सामान्य पाठक के लिए यह तय कर पाना, नामुमकिन है कि कौन सा किस्सा सच्चा है, कौन सा झूठा। एक बार की बात है। 

हातिमताई अपने घर में दोस्तों के साथ बैठे थे। लोग हातिम ताई की प्रशंसा करते हुए थक नहीं रहे थे। उनके एक मित्र ने पूछा कि क्या आपसे बढ़कर भी कोई है। तब हातिमताई ने कहा कि हां, मुझसे बढ़कर भी लोग हैं। मित्र ने पूछा कि कौन है? तब उन्होंने बताया कि एक बार मैंने अपने घर पर एक दावत का प्रबंध किया। इस दावत में कोई भी आ सकता था। दिन भर लोग आते रहे और भोजन करके जाते रहे। 

शाम को मैं अपने घर से घूमने के लिए निकला तो देखा कि एक लकड़हारा लकड़ियां काट रहा है। मैंने कहा कि आपको लकड़ी काटने की जगह हातिमताई के यहां जाकर खा लेना चाहिए। तब उस लकड़हारे ने कहा कि मैं अपने परिश्रम का ही खाता हूं। मैं रोज मेहनत करता हूं और उसी कमाई को परिवार पर खर्च करता हूं। जो लोग हातिमताई के यहां भोजन की आस में बैठे रहते हैं, वह मेहनत करके भी खा सकते हैं।

यह कहानी सुनाकर हातिम ताई ने कहा कि अपनी मेहनत की कमाई से खाने वाला लकड़हारा मुझ से भी बढ़कर अच्छा इंसान है।



Sunday, April 6, 2025

टैरिफ युद्ध और वैश्विक मंदी की सुगबुगाहट

अशोक मिश्र

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को झकझोरने की बात जैसे ठान रखी है। इसकी वजह से निकट भविष्य में वैश्विक मंदी की आहट सुनाई देने लगी है। ट्रंप के फैसले से जहां अमेरिकी शेयर बाजार में घबराहट है, भारत सहित अन्य देशों के शेयर बाजार डावांडोल हो रहे हैं। किसी दिन एकाएक शेयर बाजार धराशायी हो रहे हैं, तो अगले दिन कुछ ऊपर उठ जाते हैं। शेयर बाजार का यह उतार-चढ़ाव कब संभलेगा, इसके बारे में कुछ भी निश्चित नहीं कहा जा सकता है। पिछले दिनों जब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने सौ देशों की सूची जारी करते हुए रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा की थी, तब यह लगने लगा था कि पूरी दुनिया में एक वॉर ट्रेड की शुरुआत होने जा रही है। आशियान देशों और यूरोपियन यूनियन के बाद अब चीन ने भी जवाबी टैरिफ की घोषणा कर दी है।
अमेरिका के चीन पर 34 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने के बाद चीन पर कुल टैरिफ 34 प्रतिशत हो गया है। एक तरह से देखा जाए तो यह अमेरिका का चीन पर बहुत बड़ा ट्रेड हमला है। चीन ने भी अब अमेरिका पर 34 प्रतिशत जवाबी टैरिफ लगाकर एक नए व्यापार युद्ध की मानो घोषणा कर दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अपने पिछले कार्यकाल में भी टैरिफ-टैरिफ की रट लगाते रहे। उन्होंने पिछले कार्यकाल में भी चीन पर व्यापार घाटे का आरोप लगाते हुए टैरिफ लगाने की बात कही थी।
ट्रंप ने सन 2017 में 479 अरब डॉलर के अमेरिकी व्यापार घाटे की बात कही थी। पूरे चार साल तक ट्रंप हर बात पर टैरिफ-टैरिफ जपते रहे। लेकिन नतीजे उनके पक्ष में कतई नहीं आए। लाख कोशिशों के बाद भी वह अमेरिकी व्यापार घाटे को कम नहीं कर पाए। जब उनका कार्यकाल पूरा हुआ, तो अमेरिका का व्यापार घाटा 643 अरब डॉलर तक पहुंच चुका था। राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद ही ट्रंप ने कहा था कि चीन के साथ 200 अरब डॉलर व्यापार घाटा कम किया जाएगा। चीन के खिलाफ उन्होंने हर तरह का पैंतरा आजमाया। लेकिन हर तरह की कवायद के बाद भी व्यापार घाटा कम होने की जगह 643 अरब डॉलर पर जाकर रुका था। चीन ने सन 2020 में अमेरिका से 200 अरब डॉलर के उत्पादों को खरीदने का वायदा किया, लेकिन बाद में यह वायदा झूठा निकल गया।
वर्तमान परिस्थितियों में माना जा रहा है कि निकट भविष्य में कुछ और भी देश जवाबी टैरिफ की घोषणा कर सकते हैं। हालांकि इनमें भारत शामिल नहीं होगा। भारत अभी अपने हितों की पड़ताल में लगा हुआ है। वह इस मामले में पहले अमेरिकी पक्ष से बातचीत करके समस्या को सुलझाने की कोशिश करेगा, उसके बाद ही कोई फैसला लेगा।
निकट भविष्य में वैश्विक मंदी की बात इसलिए नहीं कही जा रही है कि टैरिफ की घोषणा के बाद डॉलर टूट गया। डाऊ जोंस करीब चार प्रतिशत गिर गया जो सन 2020 के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है। दुनिया भर के देशों के शेयर बाजार गिर रहे हैं। असल में जिन देशों में जिस क्षेत्र में अमेरिकी टैरिफ ज्यादा होगा, उन देशों में जितने भी छोटे कारोबारी है, मध्यम दर्जे के कारोबारी हैं, वह टैरिफ बढ़ने की वजह से धीरे-धीरे बाजार की प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाएंगे।

नतीजा यह होगा कि एक समय बाद यह कारोबारी अपना कारोबार बंद करने के लिए मजबूर होंगे। इन क्षेत्रों में काम करने वाले लाखों लोग बेरोजगार होंगे। कमाई न होने की वजह से इनकी क्रयशक्ति में ह्रास होगा। क्रय शक्ति कम होने से बाजार में मांग निश्चित रूप से घट जाएगी। पूंजी का प्रवाह बाधित होगा। बाजार में मांग घटने का मतलब है कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी का छा जाना। आज जब दुनिया के अस्सी-नब्बे फीसदी देश अपने यहां महंगाई और बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हों, उनकी अर्थव्यवस्था पर ट्रंप का टैरिफ एक मुसीबत बनकर टूटेगा।

आने वाली पीढ़ियां तो लाभ उठाएंगी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

बगदाद में एक बादशाह अपनी प्रजा के बारे में जानकारी लेने के लिए वेष बदलकर घूमता रहता था। वैसे दुनिया के कई देशों में राजाओं ने ऐसा किया है। भारत में भी कई राजा हुए हैं जो अपनी प्रजा के कष्टों और अपने बारे में उनके विचार आदि जानने के लिए वेष बदलकर उनके बीच रहा करते थे। इससे राजकीय कर्मचारियों के बारे में भी पता चलता था कि वह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। 

यदि कोई कर्मचारी गलत करता हुआ पाया जाता था, तो उसे दंडित किया जाता था। तो बात बगदाद के बादशाह की हो रही थी। वह अक्सर वेष बदलकर घूमता रहता था। अपने महल से कुछ दूरी पर वह देखता था कि एक बुजुर्ग जगह-जगह पर पौधे रोप रहे हैं। पौधे भी ऐसे जिनको वयस्क आयु प्राप्त करने में सौ-पचास साल लगते हों। वह मौसमी फूलों के पौधे कहीं नहीं रोप रहे थे। 

बादशाह बुजुर्ग को अक्सर अपने काम में लगा हुआ पाता। कई बार तो वह अपने काम से थककर बैठ जाता और थोड़ा सुस्ताने के बाद फिर अपने काम में लग जाता। बादशाह से एक दिन रहा नहीं गया। वह उस बुजुर्ग के पास पहुंचा और उससे दुआ सलाम करने के बाद पूछ लिया कि महाशय! आप इन पौधों को क्यों रोप रहे हैं। आपकी अच्छी खासी उम्र हो चुकी है। यह पौधे जब तक बड़े होंगे, तब तक शायद आप इस दुनिया में नहीं होंगे। तो फिर आप इतनी मेहनत क्यों कर रहे हैं।

 बादशाह की बात सुनकर बुजुर्ग मुस्कुराया और बोला, यदि हमारे पूर्वजों ने भी ऐसा ही सोचा होता, तो हम अपने आसपास के इन पुराने पेड़ों को नहीं देख पाते। तरह-तरह के इन पेड़ों की छाया और उनके फल से हम वंचित रह जाते। ठीक है, आज रोपे गए पेड़ों से मिलने वाले लाभ से मैं वंचित रहूंगा, लेकिन आने वाली पीढ़ियां तो लाभ उठाएंगी।



Saturday, April 5, 2025

गुलामी से मुक्त हुए हकीम लुकमान

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र
हकीम लुकमान का जन्म अरब में हुआ था। वह देश कौन सा था, इसके बारे में इतिहासकारों में मतभेद है। नूबिया, सूडान या इथोपिया में से किसी एक देश में पैदा हुए थे हकीम लुकमान, ऐसा भी मानने वाले इतिहासकार हैं। बहरहाल, यूनानी चिकित्सा में लुकमान का काफी नाम था। 
लुकमान का जिक्र कुरान में भी किया गया है। एक कथा के अनुसार, बचपन में वह किसी उमराव के वह गुलाम थे। उन दिनों अरब में गुलाम रखने की प्रथा थी। बाद में उमराव ने लुकमान को गुलामी से मुक्त कर दिया था। इसके बारे में भी एक कहानी कही जाती है। कहते हैं कि एक दिन उमराव ककड़ी खा रहा था जो काफी कड़वी थी। उसने आधी ककड़ी लुकमान को खाने को दी, तो उन्होंने खा ली। 
उमराव ने पूछा कि तुमने बताया नहीं कि ककड़ी कड़वी थी। लुकमान ने कहा कि जब आप रोज स्वादिष्ट भोजन खाने को देते हैं, तो क्या एक दिन में कड़वी ककड़ी नहीं खा सकता? यह सुनकर उमराव प्रसन्न हुआ और उसने लुकमान को गुलामी से मुक्त कर दिया। 
कहते हैं कि इसके बाद उन्होंने चिकित्सा विज्ञान की खूब मन लगाकर पढ़ाई की और उन्होंने सभी तरह के रोगों का उपचार खोज लिया। यह भी कहा जाता है कि वह भारतीय आयुर्वेद के जनक चरक के समकालीन थे। लुकमान ने अपने एक दूत को चरक के पास संदेश भेजते हुए कहा कि रास्ते में तुम इमली के पेड़ के नीचे ही रात्रि विश्राम करना। 
जब वह दूत चरक के पास पहुंचा, तो उसके शरीर पर फफोले पड़े हुए थे। चरक ने संदेश का कागज देखा, उस पर कुछ नहीं लिखा हुआ था। चरक ने भी एक कागज देते हुए कहा कि तुम रात में नीम के नीचे रुकना। जब दूत लुकमान के पास पहुंचा, तो उसके फफोले ठीक हो गए थे। चरक ने जो कागज भेजा था, वह भी सादा था।


लोगों की मदद करने वाला ही सच्चा इंसान

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

इस दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो दूसरों का दुख-दर्द समझते हैं और उसकी मदद करने को तैयार होते हैं। ज्यादातर लोग दूसरों को दुखी देखकर भले ही मुंह से कुछ न कहें, लेकिन मन ही मन आनंदित होते हैं। दूसरों का दुख समझने और उसकी सहायता करने वाला ही महान कहलाता है। 

जापान में एक कवि हैं नोबारू इगुची। वह जापान में अत्यंत लोकप्रिय हैं। लोग उन्हें बुद्धिजीवी और दार्शनिक मानते हैं। वह स्वभाव से अत्यंत फक्कड़ और मनमौजी आदमी हैं। वह हमेशा प्रसन्न रहने में ही विश्वास करते हैं। कहा जाता है कि वह लोगों की मदद करने में भी बहुत आगे रहते हैं। एक बार की बात है। एक व्यक्ति आत्महत्या करने जा रहा था। वह अपनी परेशानियों से काफी तंग आ चुका था। 

तीन दिन से उसके परिवार में खाना नहीं बना था। अपनी गरीबी से तंग आकर उसने आत्महत्या करने की सोची। तभी उसकी मुलाकात इगुची से हो गई। मनमौजी स्वभाव के इगुची ने उसको समझाते हुए कहा कि मानव जीवन आत्महत्या के लिए नहीं मिला है। आत्महत्या तो कायर लोग किया करते हैं। यदि जीवन में कोई परेशानी है, तो उसे दूर करने का प्रयास करो। 

उस व्यक्ति ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से इगुची को बताया कि उसके घर में तीन दिन से खाना नहीं बना है। उसका पूरा परिवार भूख से छटपटा रहा है। ऐसी हालत में मेरे पास आत्महत्या करने के अलावा  कोई विकल्प नहीं है। यह सुनकर कवि इगुची की आंखों में आंसू आ गए। 

उन्होंने रास्ते में एक गुप्तदान की पेटी लगवाकर लिख दिया कि जो भी जरूरतमंद हो, वह यहां से पैसे निकालकर अपना काम चला सकता है। इगुची ने उस व्यक्ति की भी मदद की। जब जापान के लोगों को इगुची के इस काम की चर्चा हुई तो वह बहुत प्रसन्न हुए।





Friday, April 4, 2025

मेहनत कोई करे, आनंद दूसरा उठाए

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

ग्यारहवीं शताब्दी में परमार वंश के राजा हुए हैं भोज। धारा नगरी के राजा सिंधुल के पुत्र भोज थे। जब भोज पांच साल के थे, तब इनके पिता सिंधुल की मौत हो गई थी। भोज के चाचा मुंज पर राज्य और इनके पालन-पोषण का भार आ पड़ा। बाद में मुंज के मन में राज्य का लोभ आ गया और उसने बंगाल के वत्सराज को भोज की हत्या का दायित्व सौंपा। वत्सराज को भोज की हत्या करने का साहस नहीं हुआ। 

बाद में भोज के मारे जाने की बात सुनकर मुंज को बहुत अफसोस हुआ। तब वत्सराज ने सच्ची बात बताई। तब मुंज राजपाट भोज को सौंप कर पत्नी के साथ वन को चले गए। एक बार की बात है। राजा भोज अपने राज कवि पंडित धनराज के साथ कहीं जा रहे थे। काफी देर तक चलने से वह काफी थक गए थे, तो एक बरगद के पेड़ के नीचे रुक गए। 

थोड़ी देर बाद राजा भोज की निगाह ऊपर गई तो उन्होंने देखा कि मधुमक्खियों ने अपना छत्ता लगा रखा है। छत्ता शहद से पूरा भर गया था। वह गिरने ही वाला था। उस पर लगी मधुमक्खियां अपने पैर छत्ते पर रगड़ रही थीं। तब राजा भोज ने राजकवि धनपाल से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि इन मधुमक्खियों को इस बात का अफसोस हो रहा है कि उनके द्वारा बनाया गया छत्ता अभी गिर जाएगा। 

इतनी मेहनत से तैयार किए गए शहद का आनंद कोई दूसरा उठाएगा। इसी दुख में वह अपने पैर रगड़ रही हैं। इस संसार में अकसर देखने को मिलता है कि मेहनत कोई करता है, उस मेहनत के प्रतिफल का आनंद कोई दूसरा उठाता है। ऐसी स्थिति में मेहनत करने वाले के पास पछताने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं होता है। यह बात सुनकर राजा भोज सारी बात समझ गए। उन्होंने थोड़ी देर सुस्ताने के बाद अपनी राह ली।




Thursday, April 3, 2025

किलेंथिस पर लगाया चोरी का आरोप

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

कुछ लोगों को अपनी मेहनत और प्रतिभा पर इतना भरोसा होता है कि वह उसके बलबूते पर बहुत कुछ हासिल कर लेते हैं। उनके जीवन की परिस्थितियां लाख विपरीत हों, लेकिन वह अपना साहस और परिश्रम करना नहीं छोड़ते हैं। दुनिया में बहुत सारे लोग ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपने परिश्रम से दुनिया का हर सुख हासिल किया है। 

ऐसे ही एक बालक की कथा बहुत लोकप्रिय है। उसका नाम किलेंथिस बताया जाता है। किलेंथिस यूनान में रहने वाले प्रसिद्ध तत्वज्ञानी जीनो के विद्यालय में पढ़ता था। पढ़ने में काफी तेज होने की वजह से दूसरे विद्यार्थियों की नाराजगी का वह केंद्र बन गया था। गुरु जीनो भी किलेंथिस को उसकी प्रतिभा और लगन के चलते बहुत मानने लगे थे। इससे दूसरे विद्यार्थी उससे जलते थे। 

चूंकि वह गरीब घर का था, तो उसके कपड़े भी अच्छे नहीं थे। हां, विद्यालय को दी जाने वाली फीस वह नियत समय पर जरूर जमा कर देता था। उससे ईर्ष्या करने वाले विद्यार्थियों को उस पर प्रहार करने का एक अच्छा मौका मिल गया। उन्होंने किलेंथिस पर चोरी करके फीस जमा करने का आरोप लगाकर पकड़वा दिया। इस पर वह डरा कतई नहीं। जब उसका मामला अदालत में गया, तब उसने निर्भीकता से अपने को निर्दोष बताते हुए जज के सामने दो गवाह पेश करने की इजाजत मांगी। 

इजाजत मिलने पर उसने दो लोगों को अदालत में पेश कर दिया। एक गवाह माली था। उसने बताया कि कलेंथिस उसके बाग में आकर पौधों को पानी आदि देता है जिसके बदले कुछ पैसे मैं उसे देता हूं। दूसरी गवाह एक बुढ़िया ने बताया कि वह घर आकर रोज मेरा आटा पीस देता है। मैं भी कुछ पैसे दे देती हूं। इससे वह फीस और अपने खर्चे पूरे करता है। दोनों गवाहों के बयान सुकर जज ने उसे बरी कर दिया। जज ने मदद का प्रस्ताव रखा तो उसने मना कर दिया।





Tuesday, April 1, 2025

धुल गया श्वेतकेतु का अहंकार

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अहंकार कभी कभी व्यक्ति को चैन से बैठने नहीं देता है। व्यक्ति बैराए पशु के समान इधर-उधर भटकता रहता है, लेकिन अहंकार उसका सुख-चैन सब कुछ छीन लेता है। यही अहंकार कभी श्वेतकेतु को हुआ था। श्वेतकेतु के बारे में एक बात बता दें कि उन्होंने विवाह नाम की संस्था को मजबूत करने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की थी। 

पतिव्रता और पत्नीव्रता होने की परंपरा की शुरुआत श्वेतकेतु ने ही की थी, ऐसा माना जाता है। कहते हैं कि उनके पिता आरुणि ने उन्हें समय पर अध्ययन के लिए गुरुकुल भेजा। जिस गुरुकुल में वे पढ़ने के लिए भेजे गए थे, वे अपने समय के सबसे विद्वान और विचारवान गुरु थे। चौबीस साल बाद जब श्वेतकेतु जब गुरुकुल से लौटा, तो उसके पिता ने पाया कि उसकी चाल में मस्ती कम, अहंकार ज्यादा है।

आरुणि ने पूछा कि गुरुकुल से तुम क्या सीखकर आए हो। श्वेतकेतु ने कहा कि सब कुछ। कुछ भी नहीं छोड़ा। वेद, पुराण, उपनिषद, विज्ञान, तर्क और भी सारा कुछ सीख कर आया हूं। 

उसके पिता ने कहा कि तुम उस एक को जानकर आए हो जिसको जानने के बाद सारा ज्ञान-विज्ञान अपने आप ही मालूम हो जाता है। अब वह चकराया कि यह एक क्या है जिससे जानने के बाद कुछ भी जानने की जरूरत नहीं पड़ती है।

उसने अपने पिता से पूछा कि वह एक क्या है? उसके पिता ने कहा कि स्वयं को जाने बिना तुम्हारा सारा ज्ञान अधूरा है। तुम गुरुकुल जाओ और फिर से पढ़कर आओ। गुरुकुल में उसके गुरु ने चार सौ गाएं देकर कहा कि जब एक हजार एक गायें हो जाएं, तब आना मैं तुम्हें ज्ञान दूंगा। 

वन में रहते उसे कई साल बीत गए। अब श्वेतकेतु एक निर्मल बालक की तरह हो गया था। उसका सारा अहंकार धुल गया था। तब उसे गुरु ने कहा कि अब तुम स्वयं को जान चुके हो।