बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
दहेज आज भी गरीब और मध्यम आय वाले परिवारों के लिए सबसे बड़ी समस्या है। आजादी से पहले और आज भी दहेज की वजह से बहुत सारी लड़कियां अविवाहित रह जाती हैं। इस समस्या से मुक्ति के लिए अब कुछ संस्थाओं ने सामूहिक विवाह का आयोजन करना शुरू कर दिया है, ताकि गरीब परिवार की लड़कियों का भी विवाह कराया जा सके।ऐसे वैवाहिक आयोजनों में कुछ अमीर लोग और संस्थाएं आर्थिक मदद करती हैं ताकि आयोजन संपन्न हो सके। कुछ लोग तो भारी भरकम रकम कर्ज लेकर भी अपनी कन्या क विवाह करते हैं। ऐसी ही पीड़ा देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भी झेलना पड़ा था।
बात तब की है, जब उनके पिता का निधन हो गया था। कुछ समय बाद उनकी मां भी चल बसीं। डॉ. राजेंद्र प्रसाद जिन्हें लोग बड़े प्यार से राजेंद्र बाबू भी कहते थे, दो भाई थे। बड़े भाई महेंद्र प्रसाद की बेटी विवाह योग्य हो चुकी थी। उन दिनों आमतौर पर लोग अपनी बेटियों का विवाह 14-15 साल की आयु में कर दिया करते थे। बड़े भाई महेंद्र प्रसाद को तीन महीने पहले ही अध्यापक की नौकरी मिली थी।जमींदारी थी, लेकिन उससे केवल इतनी आय होती थी कि रहने खाने की व्यवस्था हो जाए। नतीजा यह हुआ कि दोनों भाइयों को कर्ज लेकर बेटी की शादी करनी पड़ी। कर्ज लेकर भतीजी की शादी करने की पीड़ा राजेंद्र बाबू को आजीवन सालती रही। उन्होंने आगे चलकर दहेज प्रथा के खिलाफ सक्रिय अभियान चलाया। उन्होंने युवकों से यह शपथ पत्र भरवाया कि वह दहेज लेकर विवाह नहीं करेंगे। यदि लेना भी पड़ा, तो 51 रुपये से अधिक दहेज नहीं लेंगे। दहेज का दानव आज भी न जाने कितनी महिलाओं की बलि ले रहा है।










