Saturday, December 20, 2025

पिता ने पुत्र को दिया यशस्वी होने का आशीर्वाद

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

विख्यात कवि और साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर को बंगाल में सांस्कृतिक नवजागरण का पुरोधा माना जाता है। वह बचपन से ही बैरिस्टर बनना चाहते थे। उनका नाम भी लंदन विश्वविद्यालय में लिखवाया गया था, लेकिन बाद में वह डिग्री लिए बिना ही भारत लौट आए थे। 

टैगोर के पिता काफी समृद्ध थे। टैगोर के भाई बहन सरकारी सेवा, साहित्य आदि क्षेत्रों में अपना नाम कमा रहे थे। उनकी मां का देहांत बचपन में ही हो गया था। रवींद्रनाथ के पिता देवेंद्रनाथ घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे। उनका ज्यादातर समय घूमने-फिरने में ही लगा रहता था। देवेंद्रनाथ अपने बेटों की प्रतिभा के कायल थे। लेकिन उन्हें रवींद्रनाथ के प्रति कुछ ज्यादा ही स्नेह था। सन 1905 में उनके पिता अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे, तो एक दिन शाम को उन्होंने अपने बेटे रवींद्रनाथ से कहा कि तुम कोई भक्ति गीत सुनाओ जिससे मन को शांति का अनुभव हो। 

पुत्र रवींद्रनाथ ने अपने पिता की आज्ञा मानी और एक कविता पेश की। उस कविता में आत्मा का मौन, ईश्वर की शांति और समर्पण जैसे तमाम भावनाएं व्यक्त की गई थीं। रवींद्रनाथ ने कई गीत सुनाए और इतने तन्मय होकर सुनाए कि उनके पिता की आंखों में आंसू आ गए। यह देखकर रवींद्रनाथ की भी आंखें नम हो गईं। वह जान गए कि पिता से उनके विछोह का समय नजदीक है। 

पिता ने अपने पुत्र के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा कि आज तुमने इतना अच्छा गाया कि मन प्रफुल्लित हो गया। मैं तुमको ईनाम देना चाहता हूं। इतना कहकर उन्होंने रवींद्रनाथ को सौ रुपये का पुरस्कार दिया। उस समय सौ रुपये की बहुत बड़ी कीमत हुआ करती थी। पिता ने पुत्र को यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया।

कानूनों का बेजा लाभ उठाने वाली महिलाओं को मिले कठोर सजा

अशोक मिश्र

दुष्कर्म किसी भी महिला के साथ किया गया सबसे जघन्य अपराध है। दुराचार का दंश उसे जीवन भर सालता रहता है। समाज भी उसी को दोषी मान बैठता है। हालांकि यह भी सही है कि समाज के बहुसंख्यक लोग पीड़िता को निर्दोष मानते हैं, लेकिन वह आरोपी के खिलाफ डटकर खड़े होने का साहस नहीं दिखा पाते हैं। यदि ऐसा हो, तो कोई भी किसी भी महिला या बच्ची के साथ छेड़छाड़, दुराचार या उसको ब्लैकमेल करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा। हमारे देश में ऐसे मामलों में पीड़िता को न्याय दिलाने केलिए कई सख्त कानून बनाए गए हैं। न्यायपालिका भी पीड़िता से सहानुभूति रखते हुए भी सबूत और गवाहों के बयान की रोशनी में न्याय करती है। 

लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि महिलाएं सख्त कानून का बेजा फायदा उठाने की कोशिश करती हैं। वह दुराचार का आरोप लगाकर निर्दोष व्यक्ति को भी सलाखों के पीछे भिजवा देती हैं। कई साल मुकदमा चलने और आरोपी के जेल में रहने के बाद पता चलता है कि महिला ने झूठा आरोप लगाया था। आरोपी तो निर्दोष था। इस प्रक्रिया में निर्दोष व्यक्ति कुछ साल तक जेल की सजा भुगतता है और समाज में उसकी बदनामी होती है, वह अलग। 

ऐसे ही दो मामले फरीदाबाद में सामने आए हैं। फरीदाबाद के जवाहर कालोनी में रहने वाली एक महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराते हुए अपने दोस्त पर चालीस बार विभिन्न होटलों में ले जाकर दुराचार करने का आरोप लगाया। ढाई साल तक चले मुकदमे में आरोपी युवक को जेल में ही रहना पड़ा। अदालत में महिला अपने साथ हुए दुराचार को साबित नहीं कर पाई। अदालत ने भी 14 लोगों की गवाही सुनने के बाद पाया कि पूरा मामला बेबुनियाद और फर्जी है। यहां तक कि लड़की की मां ने कथित पीड़िता के खिलाफ बयान दिया। ऐसा ही एक दूसरा मामला भी सामने आया। 

एक महिला ने एक युवक पर नशीला पदार्थ खिलाकर कई बार दुष्कर्म करने का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। अदालत में जब मामला गया, तो महिला अपने बयान से मुकर गई। अदालत ने युवक को आरोपों से बरी कर दिया। इस तरह की घटनाएं साबित करती हैं कि कानून का फायदा उठाकर कुछ महिलाएं पुुरुषों को बेवजह जेल भिजवा देती हैं। नारियों की सुरक्षा और उनके सम्मान की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का फायदा उठाकर किसी निर्दोष को जेल भिजवाने वाली महिलाओं को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए ताकि कोई ऐसा करने का साहस न करे। 

जो वास्तव में पीड़िताएं हैं, उनको जल्दी से जल्दी न्याय मिले, इसके लिए जरूरी है कि अदालतों में इस तरह के झूठे मामले न पहुंचें। अदालत पर ऐसे झूठे मुकदमे एक बोझ की तरह हैं और वास्तविक पीड़िताओं को न्याय मिलने मे ंदेरी का कारण बनते हैं।

Friday, December 19, 2025

नाच लोक नाट्य कला के जनक भिखारी ठाकुर

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

भिखारी ठाकुर को नाच लोक नाट्य कला का जनक माना जाता था। वह महिला पात्रों की भूमिकाएं पुरुषों से करवाते थे। 18 दिसंबर 1887 को बिहार के छपरा जिले के कुतुबपुर दियारा में जन्मे भिखारी ठाकुर के पूर्वज बाल काटने का पेशा करते थे। कहते हैं कि जब 1914 में अकाल पड़ा तो उन्हें मजबूरन अपना गांव छोड़कर पश्चिम बंगाल के खड़गपुर आना पड़ा। 

पहले से ही खड़गपुर में उनके चाचा और गांव के अन्य लोग रहते थे। थोड़ा घुमक्कड़ प्रवृत्ति का होने की वजह से वह कलकत्ता और पुरी भी गए। वहां उन्होंने सिनेमा, नौटंकी और रामलीला आदि देखने का अवसर मिला। नाट्यकला और काव्य रचना की प्रतिभा तो जैसे उनमें जन्मजात थी ही, बस एक अवसर की तलाश थी। नौटंकी और रामलीला आदि को देखने के बाद वह सोचने लगे कि यदि मैं इसमें अपना भाग्य आजमाऊं, तो शायद कुछ बात बन जाए। 

यही सोचकर वह अपने गांव लौट आए। गांव के लोगों ने जब यह सुना कि वह नौटंकी में काम करेंगे, तो  लोगों ने अपमानजनक शब्द कहे। भिखारी ठाकुर ने उनके अपमान जनक शब्दों को ही अपनी ताकत बना ली। वह गीत रचते, उन्हें लय में गुनगुनाते और जब मंच पर पहुंचते तो उसे एकदम जीवंत कर देते थे। उनके गीतों, नाटकों में दलित जातियों की व्यथा, स्त्री जाति के साथ होने वाले अन्याय का मुखर विरोध होता था। 

कहा जाता है कि गबरघीचोर की तुलना अक्सर बर्टोल्ट ब्रेख्त के नाटक द कॉकेशियन चॉक सर्कल से की जाती है। एक दिन वह भी आया जब भिखारी ठाकुर की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई। बिदेशिया, बेटी बेचवा, गबरघीचोर जैसी रचनाओं ने समाज को जागृत करने का काम किया।

अपनी गरिमा के अनुरूप आचरण नहीं करते शिक्षक


अशोक मिश्र

अध्यापक को भगवान से भी बड़ा दर्जा हमारे समाज में दिया गया है।  अध्यापक ही बच्चों को पढ़ा-लिखाकर एक सभ्य नागरिक बनाता है। सदियों से हमारे देश में अध्यापक ही समाज के प्रेरणास्रोत रहे हैं। हमारे देश के हजारों महापुरुषों और अवतारों ने गुरु की महिमा का बखानी है। जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन्होंने अपने जीवन को सुधारने और महान बनाने में शिक्षक की भूमिका का बड़े गर्व के साथ उल्लेख किया है। वैसे भी दुनिया के हर समाज में शिक्षक को उच्च स्थान दिया गया है। लेकिन जब यही शिक्षक अपनी गरिमा के अनुरूप आचरण नहीं करते हैं, तो काफी दुख होता है। 

फरीदाबाद की जवाहर कॉलोनी स्थित सारण गांव के सरकारी स्कूल में गणित विषय के अध्यापक ने स्कूल बंक करने पर एक छात्र की बुरी तरह पिटाई की। मामले का खुलासा तब हुआ जब एक बच्चे द्वारा बनाया गया वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इसमें शिक्षक दो बच्चों की सहायता से बंक करने वाले छात्र के तलवों पर डंडों से बुरी तरह पिटाई कर रहा है। वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने मामले को स्वत:संज्ञान में लिया है। यही नहीं, प्रदेश में आए दिन कोई न कोई ऐसी घटना जरूर प्रकाश में आ जाती है जिससे वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो जाते हैं। इसी साल 22 अगस्त की बात है। 

पानीपत के जाटल स्थित एक निजी स्कूल में सात वर्षीय बच्चा होमवर्क करने नहीं लाया, तो प्रिंसिपल ने पहले उस बच्चे को खुद सजा दी। बाद में उस बच्चे को बस ड्राइवर को सौंप दिया। ड्राइवर ने बच्चे को ऊपर ले जाकर उल्टा लटका दिया और बुरी तरह पिटाई की। मामला खुला, तो काफी हो हल्ला मचा। अभिभावक सहित लोगों ने प्रिंसिपल और आरोपी ड्राइवर के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए प्रदर्शन किया। 

दिसंबर के पहले हफ्ते में फतेहाबाद की भूना ब्लाक में स्थित एक निजी स्कूल में मोबाइल लाने पर प्रिंसिपल ने दो छात्राओं की बुरी तरह पिटाई कर दी। सत्रह से उन्नीस साल की छात्राओं को प्रिंसिपल ने ताल घूंसों से पिटाई की। इस घटना का वीडियो वायरल होने पर स्कूल के खिलाफ कार्रवाई की गई। 

प्रदेश में अक्सर होने वाली ऐसी घटनाएं बताती हैं कि शिक्षक अपनी मर्यादा की सीमा लांघ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि आज से  दो-तीन दशक पहले तक स्कूलों में छात्र-छात्राओं को मार नहीं पड़ती थी। मार पड़ती थी और फटकार भी लगाई जाती थी, लेकिन तब मार और फटकार का  उद्देश्य सुधारात्मक था। चरित्र और व्यक्तित्व विकास के लिए शिक्षक शारीरिक दंड दिया करते थे। उनके शारीरिक दंड का उद्देश्य व्यक्तिगत कुंठा, द्वेष या खीझ निकालना नहीं होता था। बच्चों की भलाई के लिए अध्यापक हर तरीका अपनाते थे, लेकिन अगर सजा भी देनी पड़ती थी, तो वह मानवीय होती थी।

Thursday, December 18, 2025

जनसाधारण की धरोहर है संगीत


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महात्मा गांधी की सभाओं और भजन संध्याओं में रामधुन गाकर उसे अमर कर देने वाले विष्णु दिगंबर पलुस्कर का जन्म 19 अगस्त 1872 में हुआ था। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत तो उच्चतम शिखर तक पहुंचाने में पलुस्कर का बहुत बड़ा योगदान रहा है। पलुस्कर में संगीत के मामले में अपार प्रतिभा थी। वह संगीत साधना को सबसे पवित्र मानते थे। 

वह मानते थे कि संगीत राज दरबारों और महफिलों की गुलाम बनने के लिए नहीं है। इसे जन साधारण के बीच लाना चाहिए। वह लोगों के बीच संगीत को प्रसिद्ध करना चाहते थे। यही वजह है कि जब भी महात्मा गांधी की सभा होती थी या दूसरे सामाजिक आयोजन होते थे, वह जरूर वहां जाते थे और अपने संगीत को प्रस्तुत करते थे। रघुपति राघव राजा राम जैसे भजन को पूरे भारत में लोकप्रिय बनाने का श्रेय पलुस्कर को ही है। 

यह भी सही है कि पलुस्कर ने धर्नाजन के लिए भी सार्वजनिक कार्यक्र किए। एक बार की बात है। उनका एक कार्यक्रम धर्नाजन के लिए आयोजित किया गया। आयोजकों की लापरवाही रही या उदासीनता, केवल पांच श्रोता ही संगीत कार्यक्रम में आए। आयोजक ने पलुस्कर को सुझाव दिया कि कार्यक्रम को स्थगित कर देना चाहिए। पलुस्कर ने कार्यक्रम स्थगित करने से इनकार कर दिया। 

उन्होंने कहा कि जिन पांच लोगों ने टिकट खरीदा है, उनको संगीत न सुनने देना, अपराध है। उन्होंने समय जाया किया है। उन्होंने उस कार्यक्रम बड़ी श्रद्धा और तन्मयता से गायन शुरू किया कि पांचों लोग भावविभोर हो उठे। कार्यक्रम के बाद उनके गायन की पूरे शहर में इतनी चर्चा हुई कि अगली बार जब उनका कार्यक्रम हुआ, तो भारी भीड़ जुटी। टिकटों के लिए लंबी कतारें लगी थीं।

हरियाणा विधानसभा सत्र हंगामेदार होने की संभावना

अशोक मिश्र

आज यानी 18 दिसंबर से हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू होने जा रहा है। कल ही बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक होगी जिसमें तय किया जाएगा कि विधानसभा सत्र कितने दिन चलेगा। वैसे उम्मीद जताई जा रही है कि हरियाणा विधानसभा का सत्र 22 दिसंबर तक चलेगा। इस बीत दो दिन अवकाश रहेगा। यदि 22 दिसंबर तक ही सत्र चलने की अवधि मानी जाए, तो केवल तीन दिन ही विधानसभा का सत्र चलेगा। इस बार विधानसभा सत्र में बड़े पैमाने पर हंगामेदार होने की उम्मीद जताई जा रही है। 

16 दिसंबर को ही कांग्रेस ने विधायक दल की बैठक बुलाकर सरकार को घेरने की सारी तैयारियां कर ली हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस इस बार सत्र के दौरान अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। विधानसभा सत्र के दौरान वोट चोरी के मुद्दे पर घमासान होना तय माना जा रहा है। वैसे भी संसद और संसद से बाहर कांग्रेस पार्टी वोट चोरी के मुद्दे पर बहुत ज्यादा मुखर है। 

कांग्रेस नेता तो अब हर बात में वोट चोरी का मुद्दा उठाने से नहीं चूक रहे हैं। ऐसी हालत में वह विधानसभा सत्र के दौरान वोट चोरी के मुद्दा जरूर उठेगा।  इतना ही नहीं, सदन के भीतर खेल परिसरों में खेल सुविधाओं, सामग्री के अभाव, बदहाली जैसे मुद्दों पर काम रोको प्रस्ताव लाया जा सकता है। सदन में अरावली को बचाने, जलभराव मुआवजा, बढ़ते प्रदूषण, धान घोटाला, कानून व्यवस्था, मनरेगा, बढ़ते नशे, भ्रष्टाचार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को ध्यानाकर्षण और अल्प चर्चा प्रस्तावों के माध्यम से उठाया जाएगा, ऐसी संभावना है। वैसे सरकार ने भी विपक्ष को जवाब देने की पूरी तैयारी कर ली है। 

राज्य सरकार ने उन सभी मुद्दों पर पहले से ही काम पूरा कर लिया है जिसके सदन में उठने की संभावना है। जहां तक रोहतक के गांव लाखनमाजरा के बास्केट बाल खिलाड़ी हार्दिक की मौत का मामला है, राज्य सरकार पहले ही जिला खेल अधिकारी को निलंबित कर चुकी है। विभिन्न जिलों में खेल परिसरों का बड़े पैमाने पर सुधार करा रही है। कानून व्यवस्था को भी चुस्त-दुरुस्त बनाने और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा चुका है। करीब नौ हजार से अधिक अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजा जा चुका है। किसानों को भी कर्ज के ब्याज पर माफी देकर सरकार ने विपक्ष के सवालों को तर्कहीन करने की व्यवस्था कर ली है। 

कुछ दिनों पहले ही प्राकृतिक आपदा के चलते बरबाद हुई फसलों का मुआवजा भी किसानों को दिया जा चुका है। सत्र के दौरान पूछे जाने वाले सवालों के जवाबों की फाइल भी तैयार कर ली गई है। इस तरह शीतकालीन सत्र के दौरान एक दूसरे को शिकस्त देने की तैयारी सत्तापक्ष और विपक्ष ने कर ली है। बस, इंतजार है तो 18 दिसंबर का। सत्र के दौरान जोरदार बहस देखने को मिलेगी।

Wednesday, December 17, 2025

हरियाणा में टिकाऊ नहीं होते राजनीतिक दलों के गठबंधन

अशोक मिश्र

हरियाणा का मिजाज दूसरे राज्यों से कुछ अलग है। वैसे यहां की दोस्ती की भावना प्रसिद्ध है। दोस्ती के लिए यहां के लोग कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन राजनीतिक दलों का मिजाज जुदा है। हरियाणा में राजनीतिक दलों की एक दूसरे से दोस्ती यानी गठबंधन तो हुआ, लेकिन वह टिकाऊ नहीं रहे। पिछले विधानसभा चुनाव की ही बात की जाए, तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आप कहने के लिए भले ही इंडिया गठबंधन में रहे हों, लेकिन हकीकत में दोनों ने एक दूसरे का साथ नहीं दिया। विधानसभा चुनाव के दौरान भी यही नाटक हुआ। 

कांग्रेस बेमन से आम आदमी पार्टी से बातचीत और सीटों के बंटवारे को लेकर नाटक करती रही। कभी आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल तुनक जाते, तो कभी राहुल गांधी का मन बातचीत को आगे बढ़ाने का नहीं होता था। अंतत: दोनों ने अपने-अपने कैंडिडेट खड़े किए और जो नतीजा आया, सबको मालूम है। वैसे राज्य में कांग्रेस हमेशा से अकेले चलने की आदी रही है। 

वह चाहे जीते, चाहे हारे, वह अकेले ही चुनाव लड़ना पसंद करती है। वहीं भाजपा, बसपा, इनेलो, आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल जैसी पार्टियां एक दूसरे के सहारे ही आगे बढ़ी हैं। शायद यह पहला मौका है, जब भाजपा ने अकेले सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की है। इससे पहले उसकी सरकार बैसाखियों पर ही टिकती रही है। कई दल और उसके नेता चुनावों के दौरान एक दूसरे के साथ आए, लेकिन अपना हित और अपना ईगो साथ लेकर आए। एक दूसरे से जुड़े, लेकिन मन से नहीं जुड़े। प्रदेश में जब भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव हुए, भाजपा ने हविपा, इनेलो और जजपा से गठबंधन किया, लेकिन चुनाव बाद ही या एकाध साल तक ही यह गठबंधन चला। 

बाद में भाजपा ने अपना अलग रास्ता अख्तियार किया, तो हविपा, इनेलो और जजपा ने दूसरी राह पकड़ ली। कई बार तो इधर चुनाव खत्म, उधर दोस्ती यानी गठबंधन खत्म। इनेलो और बसपा के बीच अब तक तीन बार गठबंधन हुआ, लेकिन जल्दी ही खत्म हो गया। आज भले ही भाजपा के पास सबसे ज्यादा विधायक और सबसे ज्यादा संगठित विधायक हों, लेकिन सन 2014 से पहले भाजपा गठबंधन के ही सहारे आगे बढ़ती रही। पीएम नरेंद्र मोदी की देश में सुनामी आने के बाद ही भाजपा की किस्मत चमकी और लगातार तीन बार सत्ता पर काबिज होने में सफल रही है। 

लेकिन कांग्रेस एकला चलो रे की राह पर ही चलती रही। पिछले एक साल से कांग्रेस ने भी अपने संगठन की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया है। उसके कार्यकर्ता थोड़े बहुत सक्रिय हुए हैं, लेकिन अभी इस मामले में उन्हें भाजपा से बहुत कुछ सीखना होगा। भाजपा की ही तरह कांग्रेस को भी हमेशा चुनावी मोड में ही रहना होगा, तभी फायदा होगा।

Tuesday, December 16, 2025

नासा के अंतरिक्ष अभियानों को दी नई दिशा

बोोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

एक सौ एक साल तक जिंदा रहने वाली क्रेओला कैथरीन जॉनसन की गणनाएं इतनी सटीक होती थीं कि अंतरिक्ष में जाने वाले यात्री तब तक यात्रा के लिए तैयार नहीं होते थे, जब तक उन्हें विश्वास न हो जाए कि कैथरीन ने गणना कर ली है। 26 अगस्त 1918 को वेस्ट वर्जीनिया में जन्मी कैथरीन की गणित में बचपन से ही रुचि थी। वह जब पांचवीं कक्षा में थीं, तब वह हाईस्कूल स्तर के गणित के सवाल हल कर लेती थीं। 

बचपन से ही पढ़ने में तेज कैथरीन ने 14 साल की उम्र में ही हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली थी। उन्हें लोग बड़े आदर के साथ मानव कंप्यूटर कहा करते थे। चार भाई बहनों में सबसे छोटी कैथरीन की मां शिक्षिका थीं और उनके पिता एक लकड़हारा, किसान और कारीगर थे।  अश्वेत परिवार में जन्मी कैथरीन की मां शिक्षा का महत्व समझती थीं। यही वजह है कि तमाम परेशानियों के बावजूद उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाने पर बहुत ध्यान दिया। अमेरिका में उन दिनों रंगभेद की भावना बहुत प्रबल थी। 

अमेरिका के श्वेत नस्ल के लोग अश्वेतों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया करते थे। इसका शिकार कैथरीन भी होती रहीं। उनके साथ भेदभाव किया जाता था, लेकिन वह रंगभेदी व्यवहार का मुकाबला बड़ी हिम्मत और अपनी विलक्षण प्रतिभा से देती रहीं। लैंगिक भेदभाव की भी शिकार हुईं। अपनी प्रतिभा के बल पर 1953 को उन्होंने नासा में ज्वाइन किया और अंतरिक्ष से जुड़े कई महत्वपूर्ण अभियानों में सराहनीय योगदान किया। 

उनकी सेवाओं के लिए 2015 में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जॉनसन को प्रेसिडेंशियल मेडल आॅफ फ्रीडम से सम्मानित किया। 2016 में उन्हें नासा के अंतरिक्ष यात्री लीलैंड डी. मेल्विन द्वारा सिल्वर स्नूपी अवार्ड और नासा ग्रुप अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। 24 फरवरी 2020 में कैथरीन की मृत्यु हो गई।

प्रदूषण हो रहा जानलेवा, फिर भी पाबंदियों का हो रहा उल्लंघन


अशोक मिश्र

दिल्ली एनसीआर में ग्रैप चार की पाबंदियां लागू कर दी गई हैं। दिल्ली के कुछ इलाकों में रविवार को साढ़े चार सौ से ज्यादा वायु गुणवत्ता सूचकांक पहुंच गया था। यह स्थिति इंसानों के लिए काफी खतरनाक मानी जाती है। हवा में मौजूद कण धीरे-धीरे इंसान के लंग्स, हार्ट और ब्रेन पर असर डालते हैं। इसके शुरुआती संकेत अक्सर सामान्य थकान या सर्दी-खांसी जैसे लगते हैं, इसलिए लोग इन्हें इग्नोर कर देते हैं। लेकिन धीरे-धीरे यही प्रदूषक अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक और यहां तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ा देते हैं। 

लोगों को पता भी नहीं चलता है। कई बार तो लोग इसे सामान्य मौसमी बीमारी समझकर टालते रहते हैं, लेकिन जब परेशानी बढ़ जाती है, तब उन्हें पता चलता है कि वह कितनी बड़ी परेशानी से जूझ रहे हैं। यही वजह है कि वायु प्रदूषण को साइलेंट किलर कहा जाता है। दिल्ली एनसीआर सहित पूरे हरियाणा में वायु प्रदूषण काफी गंभीर स्थिति में पहुंच चुका है। ग्रैप चार की पाबंदियां लागू होने के बावजूद राज्य के कई शहरों में उल्लंघन किया जा रहा है। वैसे तो पूरे राज्य में भवन निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। लेकिन कई शहरों में न केवल भवन निर्माण किए जा रहे हैं, बल्कि खुले में ही बालू, मौरंग और भवन निर्माण में काम आने वाली वस्तुएं रखी जा रही हैं। 

वैसे तो डीजल से चलने वाले वाहनों पर रोक लगा दी गई है, लेकिन सड़कों पर डीजल से चलने वाले वाहन धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं। प्रदेश में पराली जलाने को लेकर पूरी तरह रोक है। खुशी की बात यह है कि पराली जलाने के मामले में काफी कमी आई है। वैसे भी अब खेतों में पराली रह भी नहीं गई है क्योंकि पराली का निस्तारण करके अब गेहूं की बुआई हो चुकी है, लेकिन इतना होने के बाद भी कभी-कभार पराली जलाने की घटनाएं प्रकाश में आ ही जाती हैं। सड़कों का कूड़ा जलाना हर मौसम में प्रतिबंधित रहा है, लेकिन वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच जाने के बावजूद कूड़ा जलाया जा रहा है। 

स्थानीय निकाय के कर्मचारी या जिन कंपनियों को कूड़ा उठाने का ठेका दिया गया है, कूड़े को जला देने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं। वे यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि इससे पर्यावरण प्रदूषित होगा और वे भी इसकी चपेट में आएंगे। इसके बावजूद वे लापरवाही करते हैं। विभिन्न शहरों में कबाड़ का काम करने वाले लोग शाम बीत जाने के बाद सड़क किनारे या किसी खाली जगह पर कबाड़ ले जाकर उसे आग के हवाले कर देते हैं। इसके बाद मौके से वह गायब  हो जाते हैं ताकि कानून की गिरफ्त में न आ सकें। प्रदूषण की स्थिति में सड़कों पर पानी के छिड़काव का नियम बनाया गया है, लेकिन कुछ ही शहरों में इस नियम का पालन किया जाता है।

Monday, December 15, 2025

वैशाली के सेनापति का सर्वोच्च बलिदान

 


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

बिहार में स्थित वैशाली को दुनिया के पहले गणतंत्र का जन्मदाता माना जाता है। कहते हैं कि महाभारत काल में इस नगर को विशाल नामक राजा ने बसाया था, जिसे कालांतर में वैशाली के नाम से जाना गया। इस नगर का संबंध जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर स्वामी महावीर और महात्मा बुद्ध से भी है। स्वामी महावीर का यहीं जन्म हुआ था और महात्मा बुद्ध ने यहां अपने जीवन का अंतिम प्रवचन दिया था और अपने निर्वाण की घोषणा की थी। 

एक बार की बात है। प्राचीन काल में वैशाली महानगर में पूरे उत्साह के साथ राज्य महोत्सव मनाया जा रहा था। राजा से लेकर प्रजा तक महोत्सव में भाग ले रही थी। उसी समय पड़ोसी राज्य के सेनापति ने वैशाली पर आक्रमण कर दिया। अचानक हुए हमले की वजह से वैशाली वालों को संभलने का मौका ही नहीं मिला। वह हार गए। शुत्र सेनापति ने वैशाली की प्रजा पर जुल्म करना शुरू कर दिया। 

इसे देखकर वैशाली का सेनापति बहुत विचलित था। वह शत्रु सेनापति के पास जाकर बोला कि आप हमारी प्रजा पर जुल्म करना बंद कर दीजिए। शत्रु सेनापति ने सामने बह रही नदी की ओर संकेत करते हुए कहा कि नदी में जितनी देर तक आपका सिर डूबा रहेगा, तब तक प्रजा पर कोई अत्याचार नहीं होगा। वैशाली का सेनापति नदी में कूद गया। काफी देर हो गई, सेनापति बाहर नहीं आया। 

तब तक प्रजा पर अत्याचार रुका रहा। शत्रु सेनापति ने गोताखोरों को पानी में उतारा। गोताखोरों ने लौटकर बताया कि सेनापति ने नदी तल में एक बड़े से चट्टान को अपनी बाहों से जकड़ रखा है। अपनी प्रजा के प्रति इतना समर्पण देखकर शत्रु सेनापति का हृदय द्रवित हो गया। वह तुरंत अपने राज्य वापस लौट गया।