Thursday, December 4, 2025

नोबल पुरस्कार मिलने का श्रेय शिक्षक को दिया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अल्बर्ट कामू वस्तुत: कम्युनिस्ट विचारधारा से ओतप्रोत फ्रांसीसी लेखक, दार्शनिक, पत्रकार और राजनीतिक व्यक्ति थे। कामू का जन्म 7 नवंबर, 1913 को फ्रांस के अल्जी़रिया के मांडोवी नामक नगर में हुआ था। उन दिनों अल्जीरिया फ्रांस का एक उपनिवेश हुआ करता था। 

कामू का बचपन बहुत गरीबी में बीता था। उनकी मां ने लोगों को घरों में झाड़ू पोछा करके भी पढ़ाया लिखाया था। वह शिक्षा का महत्व समझती थीं,यह वजह है कि तमाम परेशानियों के बावजूद कामू की पढ़ाई जारी रखी। कामू की प्रतिभा को पहचान कर प्राइमरी स्कूल के शिक्षक मॉन्सियो अर्जेन ने उनकी बहुत मदद की। अर्जेन ने छुट्टियों में पढ़ाया-लिखाया, स्कूल में भी उनका विशेष ध्यान रखा। 

जरूरत पड़ने पर उन्हें किताबें उपलब्ध करवाईं। अर्जेन की मेहनत और कामू की प्रतिभा आखिरकार रंग लाई और उन्हें छात्रवृत्ति हासिल हुई। जिसने उनकी आगे की पढ़ाई का रास्ता तैयार किया। बाद में उन्होंने अल्जीयर्स विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। 44 साल की उम्र में अल्बर्ट कामू को 1957 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनके कुछ प्रख्यात रचनओं में शामिल हैं दी स्ट्रेंजर, दी प्लेग, दी फाल एवं दी मिथ ओफ सिसिफुस। 

कहते हैं कि जब उन्होंने अपने को नोबल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा सुनी, तो सबसे पहले उन्हें अपनी मां की याद आई जिसने तमाम परेशानियां उठाकर भी पढ़ाई जारी रखी। दूसरे उन्हें याद आए प्राइमरी स्कूल के शिक्षक अर्जेन। बाद में उन्होंने अपने अध्यापक को आभार व्यक्त करते हुए एक पत्र भी लिखा जो आज फ्रांस की एक लाइब्रेरी में वह सुरक्षित रखा हुआ है। उन्होंने नोबल पुरस्कार मिलने का श्रेय अध्यापक को दिया है।

सर्दी में बेघर लोगों को शरण देने में नाकाम हैं रैनबसेरे

 अशोक मिश्र

सर्दियां आ गई हैं। सर्दियों में उन लोगों को ज्यादा परेशानी नहीं होती है जिनके पास पैसे हैं, गर्म कपड़े हैं, मकान हैं। ऐसे लोगों को सर्दियों में बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं होती है। पैसे की गर्मी इन्हें ठंड महसूस होने नहीं देती है। इनका खान-पान अच्छा होने की वजह से सर्दियों में होने वाली बीमारियां भी बहुत कम ही होती हैं। सर्दियों में सबसे ज्यादा परेशानी उन लोगों को होती है जिनके पास रहने को घर नहीं होते हैं। सड़क के किनारे किसी दुकान के गेट, पार्क में किसी पेड़ की आड़ में फटी पुरानी रजाई या कंबल में सर्दी की रात काटने वालों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। ऐसे लोग वे होते हैं जो किसी दूसरे प्रदेश से रोजी रोजगार की तलाश में आए हैं या फिर भीख मांगकर अपना गुजारा करते हैं। 

गर्मियों में किसी भी पार्क या दुकान के सामने अथवा फुटपाथ पर ही पतली सी चादर बिछाकर सोने वाले लोग सर्दी का मौसम अपने पर भी अपने लिए किराए के मकान का बंदोबस्त नहीं करते हैं। हरियाणा के कई जिलों में कुछ रिक्शा चालक गर्मी और बरसात के दिनों में अपने रिक्शे पर ही सोकर गुजारा कर लेते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत इन्हें सर्दियों में होती है। इन लोगों की परेशानियों को समझते हुए राज्य सरकार ने हर जिले में रैनबसेरों का निर्माण कर रखा है ताकि घर से वंचित लोग इन रैन बसेरों में रहकर अपना जीवन गुजार सकें। इन रैनबसेरों में व्यवस्था करने की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों के पास है। 

लेकिन राज्य के गई जिलों में रैन बसेरों की हालत यह है कि सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है। कई जिलों के रैन बसेरों में उजाले के नाम पर कुछ नहीं है। बिजली कनेक्शन है, तो बल्ब या ट्यूबलाइट नहीं लगी है। कुछ जगहों पर तो बिजली कनेक्शन ही नहीं है। रैनबसेरे में घुप्प अंधेरा रहता है। ऐसी स्थिति में अराजक तत्वों के घुस आने और वहां रह रहे लोगों के सामान आदि चोरी हो जाना का खतरा बना रहता है। कई जिलों में स्थित रैनबसेरों में फर्श पर बिछाने के लिए गद्दे तक नहीं हैं। 

गद्दे हैं, तो रजाई या कंबल नदारद हैं। यदि रजाई या कंबल हैं भी, तो इतने फटे और पुराने हैं कि उनको ओढ़कर भीषण ठंड से बचा नहीं जा सकता है। कई बार घर वंचित लोग इन रैन बसेरों की शरण लेने की जगह फुटपाथ या दूसरी जगहों पर फटा पुराना चादर या कंबल ओढ़कर सो जाते हैं। ठंड बढ़ जाने पर कई लोगों की मौत भी हो जाती है। पिछले साल भी राज्य में फुटपाथ पर सोने वाले कुछ भिखारियों की जान भी जा चुकी है। प्रदेश सरकार इन रैनबसेरों में व्यवस्था करने का निर्देश सर्दियों के दिन शुरू होने  से बहुत पहले दे देती है, लेकिन नगर निगम, नगर महापालिका या ग्राम पंचायतों के अधिकारी कर्मचारी लापरवाही करते हैं जिसका खामियाजा बेघर लोगों को भुगतना पड़ता है। अलाव की व्यवस्था भी ढंग से नहीं होती है।

Wednesday, December 3, 2025

कार्त्यायनी अम्मा ने बुढ़ापे में पास की परीक्षा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

यदि कुछ कर गुजरने की आकांक्षा और लगन हो, तो कोई भी काम असंभव नहीं होता है। उम्र भी काम में बाधा नहीं बनती है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया था केरल राज्य के हरिपद जिले के चेपड़ की रहने वाली कार्त्यायनी अम्मा ने। कार्त्यायनी अम्मा का जन्म 1922 को हुआ था। उनका बचपन काफी गरीबी में बीता था। छोटी उम्र में ही उन्हें पढ़ाई-लिखाई करने की जगह सड़कों पर झाडू लगाने और लोगों के घरों में नौकरानी का काम करना पड़ा। बड़ी होने पर उन्होंने विवाह किया और उनके छह बच्चे पैदा हुए। 

इसी तरह उनका जीवन बीतता रहा। लेकिन असली मोड़ तब आया जब उनकी बेटी ने उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। तब तक उनकी उम्र 94-95 साल हो चुकी थी। आमतौर पर इतनी उम्र के बाद लोग कुछ करने की चाहत नहीं रखते हैं। लेकिन जब बेटी ने उन्हें प्रेरित किया, तो उन्होंने भी ठान लिया कि अब पढ़ना-लिखना है। घर पर उनके पौत्र-पोत्रियों ने पढ़ाई में उनकी मदद की। 

उन्होंने 96 साल की उम्र में केरल राज्य साक्षरता मिशन अथारिटी की ओर से संचालित अक्षरलक्ष्यम साक्षरता परीक्षा में भाग लेने का फैसला किया। उन्होंने बड़े जोश के साथ परीक्षा दी। इस परीक्षा में उन्होंने सौ में से 98 अंक हासिल करके रिकार्ड तोड़ दिया। उस साल अक्षरलक्ष्यम परीक्षा में चालीस हजार से ज्यादा लोगों ने परीक्षा दी थी। परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद तो वह पूरे देश में मशहूर हो गईं। 

उनकी जिजीविषा को देखते हुए 2019 में उन्हें कॉमनवेल्थ आफ लर्निंग का गुडविल पुरस्कार दिया गया। अगले साल तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया। वर्ष 2021 में उनकी मृत्यु हो गई।

आ गया धुंध और कोहरे का मौसम सावधानी से वाहन चलाएं चालक

अशोक मिश्र

आमतौर पर उत्तर भारत में नवंबर से लेकर जनवरी या फरवरी के पहले सप्ताह तक खूब सड़क हादसे होते हैं। हरियाणा में भी इन तीन महीनों में हादसे चरम पर होते हैं। पिछले साल नवंबर से जनवरी के बीच पूरे प्रदेश में 963 सड़क हादसे हुए थे। अब दिसंबर की शुरुआत हो चुकी है। नवंबर महीने में थोड़ी राहत इसलिए महसूस की गई क्योंकि इस बार नवंबर में कोहरा या स्मॉग छिटपुट स्थानों को छोड़कर कहीं नहीं देखने को मिला। लेकिन दिसंबर में कोहरा या धुंध पड़ना अनिवार्य है।

फिलहाल दो महीने तक वाहन चालकों को सावधानी बरतनी होगी। इन दो महीनों में होता यह है कि धुंध और कोहरे के चलते सड़क किनारे बिना रिफ्लेक्टर के खड़े वाहनों से सामने से आ रहे वाहन टकरा जाते हैं। सड़क पर बनी सफेद पट्टियां न होने की वजह से कई बार वाहन सड़क से नीचे चले जाते हैं। असल में इन महीनों में कोहरे या धुंध छाने की वजह से दृश्यता लगभग शून्य हो जाती है जिसकी वजह से दो-चार मीटर की दूरी के बाद कुछ भी दिखाई नहीं देता है। 

ऐसे में सड़क किनारे खड़े वाहन हादसे का कारण बन जाते हैं। इन दिनों सड़कों पर घूमने वाले लावारिस पशु भी सड़क हादसों का एक प्रमुख कारण होते हैं। धुंध की वजह से जब तक सड़क पर खड़े लावारिस पशु दिखाई देते हैं, तब तक हादसा हो चुका होता है। प्रदेश में एक जनवरी से लेकर अक्टूबर 2025 तक लगभग चार हजार लोगों को यह सड़क निगल चुकी है। इस बीच सड़क हादसों का शिकार होकर  31 हजार लोग घायल हुए हैं। इनमें कुछ ऐसे भी हैं जो सड़क हादसों के बाद दिव्यांग हो चुके हैं। अगर हम राष्ट्रीय रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ो के आधार पर बात करें, तो साल 2023 में 5533 लोगों की सड़क हादसों में जान चली गई थी। इनमें 4501 पुरुष और 832 महिलाएं थीं। यदि सीधे सपाट लहजे में बात कही जाए तो दो साल पहले 15 लोग ऐसे थे, जो घर से तो जीवित निकले थे, लेकिन बाद में उनकी लाश ही घर आई थी। 

उस वर्ष देश भर में हुए सड़क हादसों में हरियाणा की भागीदारी 3.4 प्रतिशत रही थी। हालांकि इस वर्ष ऐसी हालत न आए, इसके लिए प्रदेश सरकार ने पहले से ही सड़कों की दशा सुधारने का प्रयास करना शुरू कर दिया था। लोक निर्माण विभाग के मंत्री रणबीर गंगवा ने अधिकारियों के साथ बैठक करके सुरक्षा के सभी उपाय अपनाने का आदेश दे दिया था। फिलहाल पूरे राज्य की सड़कों पर सफेट पट्टियां बनाने से लेकर सड़क सुरक्षा के लिए साइन बोर्ड लगाए जा रहे हैं। अन्य उपाय भी अपनाए जा रहे हैं ताकि किसी को सड़क हादसों के चलते अपनी जान न गंवानी पड़े। इसके लिए जरूरी है कि वाहन चालक भी धुंध के समय अपना वाहन चलाते समय सावधानी बरतें। वाहन की गति उतनी ही रखें जितनी कि आपदा के समय वाहन को संभाल सकें।

Monday, December 1, 2025

दूसरों के सहारे जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हर व्यक्ति को अपनी प्रतिभा और ज्ञान पर भरोसा करना चाहिए। किसी दूसरे की सहायता से जीवन का थोड़ा बहुत मार्ग तो तय किया जा सकता है, लेकिन यदि व्यक्ति में खुद कुछ करने की क्षमता नहीं है, तो दूसरों की मदद से हासिल की गई सफलता टिकाऊ नहीं होती है। 

व्यक्ति को अपने जीवन में आने वाली मुसीबतों का सामना खुद ही करना पड़ता है। किसी राज्य में एक गुरु ने आश्रम खोल रखा था। उस आश्रम में गुरुजी के बहुत सारे शिष्य अध्ययन करते थे। गुरु जी तमाम विषयों की शिक्षा देने के साथ-साथ जीवन के व्यावहारिक पक्ष की भी शिक्षा दिया करते थे। शिष्य भी मन लगाकर गुरु जी की बताई बातों पर ध्यान दिया करते थे। 

एक दिन ऐसा हुआ कि एक शिष्य को अपने गुरु जी से मंत्रणा करते देर हो गई। गुरु और शिष्य छत पर विचारविमर्श कर रहे थे। शिष्य जब नीचे उतरने के लिए सीढ़ियों के पास आया, तो उसने देखा कि यह तो बहुत अधिक अंधेरा है। उसने अपने गुरु जी के पास जाकर कहा कि सीढ़ियों पर तो बहुत अंधेरा है। मैं कैसे नीचे उतरूं। यदि अंधेरे में उतरने का प्रयास किया
, तो गिर जाऊंगा। गुरुजी ने तत्काल एक दीपक जला दिया। जैसे ही शिष्य ने पहली सीढ़ी पर कदम रखा, गुरु जी ने तत्क्षण दीपक बुझा दिया। 

अब फिर पहले की तरह अंधेरा हो गया था। शिष्य ने कहा कि गुरु जी, यह आपने क्या किया? अभी तो मैंने पहली ही सीढ़ी पर पैर रखा था। गुरुजी ने कहा कि तुम कब तक दूसरों के सहारे जीवन व्यतीत करोगे। तुम पहले तो अपने भीतर अंधकार से जूझने की शक्ति पैदा करो या फिर अंधेरे से लड़ने के लिए अपना दीपक तलाशो। दूसरों के सहारे जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता है।

निस्वार्थ सेवा करने वालों की भी कमी नहीं है हमारे समाज में

अशोक मिश्र

छह सात महीने पहले की बात है। मिलेनियम सिटी गुरुग्राम में फैली गंदगी को लेकर जब पूरे देश में चर्चा हो रही थी। फ्रांसीसी महिला मैथिलडे आर ने जब गुरुग्राम को सुअरों के रहने लायक बताते हुए पोस्ट डाली थी, तब भी कुछ लोग ऐसे थे जो गुरुग्राम को साफ-सुथरा बनाने की लगातार कोशिश कर रहे थे। उन्हें अपने काम के लिए न किसी से ईनाम की अपेक्षा थी और न ही किसी तरह के प्रचार की। वह अपना नैतिक दायित्व समझ कर अपने काम को अंजाम दे रहे थे। उन्हें इस बात की भी चिंता नहीं थी कि लोग क्या कहेंगे? 

परिचित लोग उन्हें सड़कों की सफाई करते हुए या नालियां साफ करते हुए देखेंगे, तो किस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे। उन्हें तो बस अपने काम से मतलब था। ऐसे ही लोगों में सर्बिया का  नागरिक 32 वर्षीय लेजर जेनकोविक भी था जो अपने काम में लगा हुआ था। दरअसल, ऐसे लोग पूरी दुनिया में पाए जाते हैं। हरियाणा में भी बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जो अपनी गली या मोहल्ले में बिना किसी खास प्रयोजन के भी सड़कों को साफ सुथरा रखने लगे हुए हैं। यह काम करने के लिए किसी ने उनसे अनुरोध
नहीं किया है, उन्हें इस काम के बदले में पैसा भी नहीं मिलना है, लेकिन वह प्रदेश का नागरिक होने का दायित्व चुपचाप निभा रहे हैं। 

कभी शिक्षक रहे सीनियर सिटीजन सेवानिवृत्ति के बाद भी निजी तौर पर कमजोर छात्रों को बिना को शुल्क लिए पढ़ा रहे हैं। यदि किसी को आपात स्थिति में किसी भी ब्लड ग्रुप का रक्त चाहिए, तो प्रदेश के लगभग सभी जिलों में ऐसे लोग मिल जाएंगे जो बड़ी तत्परता से जरूरतमंद तक मांगे गए ग्रुप का ब्लड उपलब्ध करा देते हैं। इसके लिए उन्हें पारिश्रमिक भी नहीं चाहिए। सर्दी के दिनों में गरीब बस्तियों में कंबल, रजाई और पहनने के लायक गर्म कपड़े बांटने के लिए बहुत सारे लोग आगे आ जाते हैं। यह लोग चुपचाप गरीब बस्तियों में जाकर उनकी दुख-तकलीफों की जानकारी लेते हैं और उन्हें उन परेशानियों से निजात दिलाते हैं। बहुत सारी संस्थाएं और काफी संख्या में लोग निजी स्तर पर जरूरतमंदों की मदद करते हैं। वह अपने खर्चों में कभी कभी कटौती भी कर लेते हैं, लेकिन जरूरतमंद की मदद जरूर करते हैं। 

अकसर देखने में आता है कि यदि कहीं जाम लगा हुआ है, एंबुलेंस फंसी हुई है, एकाएक एक आदमी सामने आता है। वह ट्रैफिक कंट्रोल करता है, लोगों को जाम से मुक्ति दिलाता है और जैसे ही सड़क सुचारु रूप से चलने लगती है, वह व्यक्ति गायब हो जाता है। लोग समझ नहीं पाते हैं कि वह व्यक्ति कहां से आया था और कहां चला गया। लोगों की मदद करने का जज्बा आज भी इन विपरीत परिस्थितियों में भी जाग्रत है। यह सही है कि समाज में लूट-खसोट, भ्रष्टाचार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन यह भी सच है कि समाज में आज भी अच्छे और सच्चे लोग मौजूद हैं।

Sunday, November 30, 2025

इससे अच्छा है कि मैं मर जाऊं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

प्रकृति ने किसी को अमर नहीं बनाया है। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मौत निश्चित है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड भी परिवर्तनशील है। आज है, करोड़ों-अरबों साल बाद इसी रूप में नहीं रहेगा। विनाश और विकास की प्रक्रिया सतत चलती रहती है। जब किसी वस्तु का विनाश होता है, तो उसके स्थान पर नई वस्तु सामने आती है। सिकंदर के बारे में एक कथा कही जाती है। यह कथा सच नहीं है, लेकिन कुछ लोगों ने गढ़ ली है। 

कहते हैं कि विश्व विजेता कहे जाने वाले सिकंदर के मन एक बार अमर होने की लालसा पैदा हुई। लोगों की अमरता की कहानियां उसने सुनी थी। उसे किसी ने बताया था कि पृथ्वी पर कहीं ऐसा जल पाया जाता है जिसको पीने से व्यक्ति अमर हो जाता है। कथा बताती है कि उसने अपने जीते हुए राज्यों में उस अमृत जल की बहुत तलाश की। आखिरकार उसने एक गुफा में उस अमृत जल को खोज निकाला। 

वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उस गुफा में प्रवेश किया, तो देखा कि अमृत जल कल-कल की ध्वनि करता हुआ बह रहा था। उसने चुल्लू में पानी भरा और पीने लगा। तभी वहां मौजूद एक कौआ बोला, रुको। जल पीने की गलती मत करना। सिकंदर को बहुत गुस्सा आया। उसे अपने विश्व विजेता होने पर बहुत अभिमान था। उसने रोषपूर्वक उस कौए से कहा, तू मुझे जल पीने से रोकने वाला कौन है? 

उस कौए ने जवाब दिया। मेरी कहानी सुन लो, फिर तुम्हारी जो मर्जी हो, वह करना। एक दिन मैंने भी यह जल खोज निकाला था। जल पीकर मैं अमर हो गया। लेकिन मेरे पंख झड़ गए हैं, अंधा हो गया हूं। शरीर गल गया है। मैं मौत मांग रहा हूं, लेकिन मेरी मौत नहीं हो रही है। मेरी हालत देख लो, फिर तुम तय करना कि तुम्हें अमर होना है या नहीं। सिकंदर ने सोचा कि ऐसी अमरता को लेकर मैं क्या करूंगा? असहाय होकर जीने से अच्छा है कि मैं मर जाऊं। इसके बाद सिकंदर ने जल पीने का विचार त्याग दिया।

पीरियड के दौरान नारी की निजता भंग करने वालों पर हो कार्रवाई

 अशोक मिश्र

हरियाणा के एक विश्वविद्यालय में चार महिला कर्मचारियों के साथ जो व्यवहार किया गया, वह सचमुच महिलाओं की गरिमा और गोपनीयता के साथ किया गया खिलवाड़ था। यह महिला जाति के साथ किया गया अभद्र व्यवहार था। जिस अधिकारी ने महिलाओं से पीरियड मांगे थे, उसने इन महिलाओं का ही नहीं, एक तरह से अपनी मां, बहन, बीवी और बेटी का भी अपमान किया था। 

क्या घर में कोई काम न होने पर उसने अपनी मां, बहन, बीवी और बेटी से पीरियड का सबूत मांगा होगा, कतई नहीं। चूंकि सफाई कर्मी महिलाएं उसके घर की नहीं थी, तभी उसने पीरियड का सबूत मांगने की गुस्ताखी की थी। हर महीने महिलाओं को मासिक धर्म आना, कोई नई बात नहीं है। यह लाखों से साल से महिलाओं को आ रहा है। प्रकृति ने महिलाओं को गर्भधारण करने की जिम्मेदारी दी है। प्रकृति ने हर महीने अंडाणु के बनने और बिगड़ने की व्यवस्था की है। 

मानव समाज पूरी दुनिया की महिलाओं का सबसे ज्यादा ऋणी है। एक महिला गर्भधारण करने के बाद जितनी तकलीफें झेलती है, नौ माह तक गर्भ को धारण करके शारीरिक और मानसिक पीड़ा झेलती है, लेकिन उसके चेहरे पर शिकन तक नहीं आती है। लेकिन जब उसी मातृत्व के कारणों पर कोई आक्षेप करता है, पीरियड का सबूत मांगता है, तो वह नारी जाति के प्रति अक्षम्य अपराध करता है। शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट ने चार महिला सफाईकर्मियों से पीरियड का सबूत मांगने के मामले सुनवाई के दौरान साफ तौर पर कहा कि महिलाओं की गरिमा और गोपनीयता हर हालत में बरकरार रहनी चाहिए। 

इस मामले को लेकर बार एसोसिएशन ने सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका पर सुनवाई के दौरान बार एसोशिएशन ने मांग की कि कर्मस्थलों और शैक्षणिक संस्थानों में महिलाओं के मासिक धर्म या उससे संबंधित मामलों में उनकी गरिमा, गोपनीयता, शारीरिक स्वायत्तता और स्वास्थ्य का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। देश में आए दिन महिलाओं या स्कूली छात्राओं की निजता का उल्लंघन करने वाली घटनाएं देश में सामने आती रहती हैं। 

कहीं स्कूल में मासिक धर्म का खून सीट पर लग जाने से क्लास की सभी छात्राओं की जांच की जाती है, तो कहीं शौचालय में सैनेटरी पैड मिलने पर छात्राओं के कपड़े उतरवाकर जांच की जाती है कि किस बच्ची ने शौचालय में सैनेटरी पैड फेंका है। ऐसी घटनाएं मानव समाज के मुंह पर करारा तमाचा हैं। अफसोस की बात है कि इस तरह की जांच ज्यादातर महिलाएं ही करती हैं, जैसे वे कभी मासि
क धर्म की पीड़ा से नहीं गुजरी हैं। वैसे भी मासिक धर्म के दौरान लड़कियां स्कूल-कालेज जाने से कतराती हैं। यदि वे किसी तरह हिम्मत जुटाकर स्कूल-कालेज जाती भी हैं, तो उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है।

Saturday, November 29, 2025

मां भी ईश्वर का ही दूसरा रूप है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

बंगाल के हुगली जिले के एक गरीब किंतु धर्म परायण ब्राह्मण परिवार में स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था। परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को हुआ था। उनका वास्तविक नाम रामकृष्ण चटोपाध्याय था। वह देवी काली के परम भक्त थे। बीस साल की उम्र में ही वह कलकत्ता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी बन गए थे। परमहंस के ही शिष्य विश्वविख्यात स्वामी विवेकानंद थे। 

स्वामी विवेकानंद में अपने गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा थी। एक बार की बात है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास एक युवक आया। वह बहुत परेशान था। उसने स्वामी जी मिलने के बाद कहा कि मैं संन्यास लेना चाहता हूं। स्वामी जी ने उस युवक से पूछा कि तुम संन्यास क्यों लेना चाहते हो? उस युवक ने कहा कि इस दुनिया की विषमता, अन्याय और लोगों की दुख भरी जिंदगी को देखते हुए मैं काफी परेशान हो गया हूं। 

समाज में फैले ऊंच-नीच की भावना भी मुझे बहुत परेशान
करती है। इसलिए मैं संन्यास लेकर मुक्ति चाहता हूं। स्वामी ने पूछा कि तुम्हारे घर में कौन कौन है? उस युवक ने बताया कि उसके घर में केवल एक बूढ़ी मां है। उसके अलावा कोई नहीं है। स्वामी परमहंस ने कहा कि तुम संन्यास की आड़ लेकर पलायन कर रहे हो। संन्यास लेने पर तुम्हारा जीवन तो किसी न किसी तरह से बीत ही जाएगा। लेकिन तुम्हारी बूढ़ी मां का क्या होगा? 

संन्यास लेने से अच्छा है कि तुम अपनी मां की अच्छी तरह से सेवा करो। मां की सेवा से बढ़कर दूसरा कोई तप नहीं है। मां भी ईश्वर का ही दूसरा रूप है। यह सुनकर युवक समझ गया कि स्वामी जी उसे क्या समझाना चाह रहे हैं। युवक ने घर लौटकर अपनी मां की खूब सेवा की।

टूटे फूटे खेल उपकरण, खेल परिसरों में अव्यवस्था, कैसे जीतें मेडल?

 अशोक मिश्र

रोहतक और झज्जर में दो खिलाड़ियों की मौत के बाद प्रशासन की नींद खुली है। राज्य भर में स्टेडियम की जांच की जाने लगी है। टूटे-फूटे उपकरणों को बदलने के आदेश जारी किए जा रहे हैं। सरकार ने दो खिलाड़ियों की मौत के बाद जांच कमेटी गठित कर दी है। जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। जिस तरह इन दिनों प्रशासन जागरूकता दिखा रहा है, यदि उसने पहले दिखाई होती, तो देश और प्रदेश अपने दो प्रतिभावान खिलाड़ियों से वंचित नहीं होता। 

इन दोनों खिलाड़ियों से प्रदेश और देश को काफी उम्मीदें थीं। यह भी संभव है कि खेल अधिकारियों की लापरवाही का शिकार बने दोनों खिलाड़ी अपने खेल जीवन में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करते। यदि ऐसा नहीं भी होता तो भी दो परिवारों के चिराग खेल परिसरों की देखरेख करने वाले अधिकारियों की लापरवाही के चलते असमय मौत का शिकार हो गए। यह किसी परिवार की व्यक्तिगत क्षति होने के साथ-साथ प्रदेश की भी क्षति है। दोनों हादसों के बाद स्थानीय प्रशासन की नींद टूटी है। 

सेकेंडरी शिक्षा निदेशक ने राज्य के सभी जिला शिक्षा अधिकारी और जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी को आदेश दिया गया है कि खेल परिसरों में जितने भी जर्जर खेल उपकरण हैं, उन्हें तुरंत वहां से हटाया जाए। उन्हें बदला जाए और अगर कोई उपकरण तत्काल नहीं बदला जा सकता है, तो उस परिसर को ही तत्काल बंद कर दिया जाए। स्कूल-कालेजों के खेल उपकरणों की तत्काल समीक्षा की जाए। 

यदि किसी जिले में किसी तरह की लापरवाही पाई गई, तो जिला शिक्षा अधिकारी, जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी और स्कूल के प्रिंसिपल के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। सच तो यह है कि देश-विदेश से मेडल जीतकर लाने वाले खिलाड़ियों को वैसी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं जिसके वे हकदार हैं। वैसे तो खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के लिए सरकार ने हर जिल में खेल परिसरों की स्थापना कर रखी है, लेकिन देख-रेख का पूरी तरह अभाव है। सरकार के प्रयासों को पलीता लगाने में अधीनस्थ खेल अधिकारी और कर्मचारी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। 

खेल परिसरों में बास्केटबाल ग्राउंड और अन्य खेल से जुड़े स्थलों की स्थिति काफी दयनीय है। कहीं बास्केट बाल के ग्राउंड में लगे पोल जंग खा रहे हैं, तो कहीं जिमनैस्टिक उपकरण इधर उधर बिखरे पड़े हैं। कई जिलों में तो स्टेटिंग रिंक में जगह-जगह दरारें हैं, लेकिन इन्हें ठीक करने की जहमत न स्थानीय प्रशासन ने उठाई और न ही इन खेल परिसरों की देखरेख करने वालों ने। ऐसी स्थिति में खिलाड़ी कैसे प्रैक्टिस कर सकता है। सरकार इन खेल परिसरों के लिए काफी फंड जारी करती है, लेकिन फंड का सही समय पर उपयोग भी नहीं किया जाता है।