अशोक मिश्र
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को झकझोरने की बात जैसे ठान रखी है। इसकी वजह से निकट भविष्य में वैश्विक मंदी की आहट सुनाई देने लगी है। ट्रंप के फैसले से जहां अमेरिकी शेयर बाजार में घबराहट है, भारत सहित अन्य देशों के शेयर बाजार डावांडोल हो रहे हैं। किसी दिन एकाएक शेयर बाजार धराशायी हो रहे हैं, तो अगले दिन कुछ ऊपर उठ जाते हैं। शेयर बाजार का यह उतार-चढ़ाव कब संभलेगा, इसके बारे में कुछ भी निश्चित नहीं कहा जा सकता है। पिछले दिनों जब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने सौ देशों की सूची जारी करते हुए रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा की थी, तब यह लगने लगा था कि पूरी दुनिया में एक वॉर ट्रेड की शुरुआत होने जा रही है। आशियान देशों और यूरोपियन यूनियन के बाद अब चीन ने भी जवाबी टैरिफ की घोषणा कर दी है।
अमेरिका के चीन पर 34 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने के बाद चीन पर कुल टैरिफ 34 प्रतिशत हो गया है। एक तरह से देखा जाए तो यह अमेरिका का चीन पर बहुत बड़ा ट्रेड हमला है। चीन ने भी अब अमेरिका पर 34 प्रतिशत जवाबी टैरिफ लगाकर एक नए व्यापार युद्ध की मानो घोषणा कर दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अपने पिछले कार्यकाल में भी टैरिफ-टैरिफ की रट लगाते रहे। उन्होंने पिछले कार्यकाल में भी चीन पर व्यापार घाटे का आरोप लगाते हुए टैरिफ लगाने की बात कही थी।
ट्रंप ने सन 2017 में 479 अरब डॉलर के अमेरिकी व्यापार घाटे की बात कही थी। पूरे चार साल तक ट्रंप हर बात पर टैरिफ-टैरिफ जपते रहे। लेकिन नतीजे उनके पक्ष में कतई नहीं आए। लाख कोशिशों के बाद भी वह अमेरिकी व्यापार घाटे को कम नहीं कर पाए। जब उनका कार्यकाल पूरा हुआ, तो अमेरिका का व्यापार घाटा 643 अरब डॉलर तक पहुंच चुका था। राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद ही ट्रंप ने कहा था कि चीन के साथ 200 अरब डॉलर व्यापार घाटा कम किया जाएगा। चीन के खिलाफ उन्होंने हर तरह का पैंतरा आजमाया। लेकिन हर तरह की कवायद के बाद भी व्यापार घाटा कम होने की जगह 643 अरब डॉलर पर जाकर रुका था। चीन ने सन 2020 में अमेरिका से 200 अरब डॉलर के उत्पादों को खरीदने का वायदा किया, लेकिन बाद में यह वायदा झूठा निकल गया।
वर्तमान परिस्थितियों में माना जा रहा है कि निकट भविष्य में कुछ और भी देश जवाबी टैरिफ की घोषणा कर सकते हैं। हालांकि इनमें भारत शामिल नहीं होगा। भारत अभी अपने हितों की पड़ताल में लगा हुआ है। वह इस मामले में पहले अमेरिकी पक्ष से बातचीत करके समस्या को सुलझाने की कोशिश करेगा, उसके बाद ही कोई फैसला लेगा।
निकट भविष्य में वैश्विक मंदी की बात इसलिए नहीं कही जा रही है कि टैरिफ की घोषणा के बाद डॉलर टूट गया। डाऊ जोंस करीब चार प्रतिशत गिर गया जो सन 2020 के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है। दुनिया भर के देशों के शेयर बाजार गिर रहे हैं। असल में जिन देशों में जिस क्षेत्र में अमेरिकी टैरिफ ज्यादा होगा, उन देशों में जितने भी छोटे कारोबारी है, मध्यम दर्जे के कारोबारी हैं, वह टैरिफ बढ़ने की वजह से धीरे-धीरे बाजार की प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाएंगे।
नतीजा यह होगा कि एक समय बाद यह कारोबारी अपना कारोबार बंद करने के लिए मजबूर होंगे। इन क्षेत्रों में काम करने वाले लाखों लोग बेरोजगार होंगे। कमाई न होने की वजह से इनकी क्रयशक्ति में ह्रास होगा। क्रय शक्ति कम होने से बाजार में मांग निश्चित रूप से घट जाएगी। पूंजी का प्रवाह बाधित होगा। बाजार में मांग घटने का मतलब है कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी का छा जाना। आज जब दुनिया के अस्सी-नब्बे फीसदी देश अपने यहां महंगाई और बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हों, उनकी अर्थव्यवस्था पर ट्रंप का टैरिफ एक मुसीबत बनकर टूटेगा।