बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
उनके गुरु महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत ज्ञानेश्वर थे। उन्होंने बह्मविद्या को लोक सुलभ बनाकर उसका महाराष्ट्र में प्रचार किया तो संत नामदेव जी ने महाराष्ट्र से लेकर पंजाब तक उत्तर भारत में 'हरिनाम' की वर्षा की। नामदेव का उल्लेख गुरुग्रंथ साहिब और कबीरदास के पदों में मिलता है।
एक बार की बात है। नामदेव बाहर से आए, तो उनकी धोती में खून लगा हुआ था। उनकी मां गोणाई देवी उस खून को देखते ही घबरा उठीं। उन्होंने तत्काल नामदेव से पूछा, नामू, तेरी धोती में यह खून कहां से लग गया? क्या तू कहीं गिर गया था? क्या तुझे कोई चोट लगी है? यह सुनकर नामदेव ने कहा कि मां, मैं कहीं गिरा नहीं था। मैंने अपनी जांघ की खाल खुद उतारी है। तब मां ने कहा कि तू निरा बेवकूफ है। कोई अपनी खाल उतारता है। तेरा यह घाव पक सकता है।
तब नामदेव ने कहा कि मां कल तूने पेड़ की छाल और टहनियां काटकर लाने को कहा था। मैंने सोचा कि इन पेड़ों में भी जान होती है। इनकी टहनी काटने या छाल छीलने पर इन्हें भी दर्द होता होगा। तो मैंने अपनी जांघ की चमड़ी छीलकर देखा कि कितना दर्द होता है। तब गोणाई देवी ने कहा कि तू तो बात एकदम सही कहता है। आज के बाद तुझे ऐसा काम नहीं सौंपूंगी। तू एक दिन बहुत बड़ा संत बनेगा। मां का कथन बाद में एकदम साबित हुआ। नामदेव महाराष्ट्र के बहुत बड़े संत बने।









