बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
जिस तरह किसी जीव का पैदा होना सत्य है, उसी तरह उस जीव की मृत्यु भी अटल सत्य है। जन्म और मृत्यु के बीच मनुष्य बहुत कुछ करता है, लेकिन जैसे ही मौत होती है, सब शून्य हो जाता है। एक बार की बात है। दो राजाओं की सेनाएं एक दूसरे से युद्धरत थीं। दोनों ओर के सैनिक मर रहे थे। हर ओर मृत्यु का तांडव था। घायल सैनिकों की चीख पुकार चारों ओर गूंज रही थी।उसी दौरान एक राजा ने देखा कि उस युद्ध क्षेत्र से एक फकीर बहुत निश्चिंत भाव से बिना डरे जा रहा है। उसके चेहरे पर शांति छाई हुई थी। राजा को बहुत आश्चर्य हो रहा था। उसने फकीर को अपने पास बुलाया और पूछा कि यहां इतना भीषण युद्ध चल रहा है और आपको कोई फर्कनहीं पड़ रहा है। आपको क्या मौत का भय नहीं है?
फकीर राजा की बात सुनकर मुस्कुराया और बोला, महाराज! क्या आप मेरे कुछ सवालों का जवाब देंगे? राजा ने हामी भर दी। फकीर ने पूछा कि महाराज! जब कोई सैनिक मर जाता है, तो क्या आपके पास कोई ऐसी शक्ति है कि आप उसे जिंदा कर दें। शरीर से आत्मा के निकलने के बाद क्या वह वापस आ सकती है? राजा ने तत्काल जवाब दिया कि नहीं, मेरे पास कोई शक्ति नहीं है। मरा हुआ सैनिक जिंदा नहीं हो सकता है।
राजा का जवाब सुनकर फकीर ने कहा कि आपके सवालों का यही जवाब है। जब किसी की मृत्यु होने के बाद उसे जिंदा नहीं किया जा सकता है। जब हर किसी की मौत एक दिन होनी तय है, तो फिर मौत से कैसा भय। मौत होनी तय है, यह हम सब जानते हैं। तो फिर इस मौत से डरकर भागने का कोई मतलब नहीं है। मौत पर नियंत्रण न होने की वजह से ही मैं निश्चिंत हूं कि मौत जब होनी है, तो होगी ही। फिर डरना कैसा?

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