बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
अहंकार व्यक्ति की गरिमा और व्यक्तित्व का विनाश करता है। अहंकारी व्यक्ति को कोई पसंद नहीं करता है। अगर राजा या कोई वरिष्ठ पदाधिकारी भी अहंकारी हो जाए, तो लोग भले ही उसके सामने कुछ न कहें, लेकिन पीठ पीछे उसकी बुराई ही करते हैं। किसी राज्य का राजा बहुत अहंकारी था। वह अपने आगे किसी को गिनता नहीं था। एक बार उसके राज्य में एक संत आया।उस संत की ख्याति बहुत दूर-दूर तक फैली हुई थी। जो भी एक बार संत से मिलता वह प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता था। राजा तक उसकी ख्याति पहुंची, तो राजा ने संत को प्रभावित करने के लिए एक कीमती तलवार उपहार के रूप में लिया और संत से मिलने पहुंच गया। संत के पास पहुंचने पर राजा ने कहा कि यह भेंट मैं आपके लिए लेकर आया हूं।
संत ने राजा का उपहार देखकर कहा कि राजन! मैं इस उपहार को लेकर क्या करूंगा? यह मेरे किसी काम की नहीं है। मैं तो संत हूं। मेरे लिए इस उपहार की कोई उपयोगिता नहीं है। पलभर सांस लेने के बाद संत ने आगे कहा कि यदि राजन, मुझे कुछ देना ही चाहते हैं, तो मुझे सुई के साथ विनम्रता दे दें। राजा आश्चर्यचकितहोकर बोला कि भला सुई और विनम्रता तलवार का मुकाबला कैसे कर सकते हैं।
संत ने कहा कि सुई जोड़ने का काम करती है। विनम्रता से व्यक्ति अजेय व्यक्ति को भी जीत सकता है। तलवार का काम तो काटना या जीवन लेना है, लेकिन सुई हो या विनम्रता सबको एक साथ जोड़ने का काम करती हैं। राजा समझदार था। उसने संत से कहा कि मैं समझ गया। अब से मैं अहंकार का त्याग करता हूं। इसके बाद उसने प्रजा की भलाई के लिए बहुत सारे कार्य किए और प्रजा में लोकप्रिय हो गया।

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