Saturday, December 13, 2025

प्रदूषण को शिकस्त देने की योजना खरीदी जाएगी पांच सौ इलेक्ट्रिक बसें

अशोक मिश्र

दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण खतरनाक होता जा रहा है। कल ही बल्लभगढ़ देश का चौथा सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया गया था। यहां का वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरनाक स्तर तक पहुंच गया था। धुंध और धुएं की वजह से लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। गुरुग्राम में हालात काफी चिंताजनक हो गए हैं। इन सब स्थितियों से निपटने के लिए प्रदेश सरकार ने चार जिलों गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोनीपत और झज्जर में पांच सौ इलेक्ट्रिक बसें चलाने का फैसला किया है। 

इलेक्ट्रिक बसों के संचालन की वजह से कार्बन का उत्सर्जन पर रोक लगेगी।  इन जिलों की सड़कों पर दौड़ने वाली डीजल संचालित बसें बाहर कर दी जाएंगी। इन बसों की वजह से भी कार्बन उत्सर्जन होता है। पिछले साल नवंबर में सीएम नायब सिंह सैनी ने वर्ल्ड बैंक के प्रतिनिधियों के साथ उच्चस्तरीय बैठक की थी। बैठक के दौरान वर्ल्ड बैंक अधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि हरियाणा स्वच्छ वायु परियोजना के लिए 2498 करोड़ रुपये का ऋण दिया जाएगा। अब वर्ल्ड बैंक ने हरियाणा स्वच्छ वायु परियोजना के लिए 305 मिलियन डॉलर यानी 2753 करोड़ रुपये मंजूर कर दिए हैं। इसी राशि में से 1513 करोड़ रुपये खर्च करके प्रदेश के चार जिलों के लिए पांच सौ बसें खरीदी जाएंगी। 

यही नहीं, विभिन्न कार्यों के लिए 564 करोड़ रुपये हरियाणा प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को दिए जाएंगे ताकि वह राज्य वायु गुणवत्ता प्रयोगशालाओं को अपग्रेड कर सकें और प्रदेश में 12 मिनी लैब की स्थापना कर सकें। हरियाणा प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड इस पैसे का उपयोग वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने वाले कार्योंं में करेगा। हरियाणा स्वच्छ वायु परियोजना से एक उम्मीद पैदा हुई है कि निकट भविष्य में हरियाणा की वायु गुणवत्ता सूचकांक में सुधार होगा। जहां तक वर्तमान हालात की बात है। 

हरियाणा धीरे-धीरे गैस चैंबर में तब्दील होता जा रहा है। इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि अस्पतालों में वायु प्रदूषण के चलते बीमार होने वालों की भरमार होती जा रही है। सरकारी और निजी अस्पतालों में सांस, हृदय, त्वचा और स्लीप एपनिया जैसी समस्याओं से जूझ रहे लोग पहुंच रहे हैं। हरियाणा में पहले से बीमार मरीजों की हालत गंभीर होती जा रही है, वहीं ऐसे रोगों से पीड़ित नए मरीज भी अस्पताल पहुंच रहे हैं। वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव केवल फेफड़ों पर ही नहीं पड़ता है, बल्कि शरीर के दूसरे अंग भी प्रभावित होते हैं। 

ऊपर से इन दिनों सरकारी अस्पतालों में डाक्टर हड़ताल पर हैं। इससे हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। सरकार दावा कर रही है कि ग्रैप नियमों का पालन कराने के लिए स्थानीय निकायों को लगा दिया गया है, लेकिन हकीकत उससे जुदा है। प्रदेश के कई जिलों में धड़ल्ले से निर्माण कार्य हो रहा है। खुलेआम कूड़ा जलाया जा रहा है, लेकिन प्रशासन इन्हें रोक पाने में नाकाम साबित हो रहा है। 

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