अशोक मिश्र
देश की सबसे प्राचीन पर्वत शृंखला है अरावली। सुप्रीमकोर्ट के हालिया फैसले ने पर्यावरणविदों और आम जनता को चिंता में डाल दिया है। सुप्रीमकोर्ट ने कुछ समय पहले लिए गए फैसले में कहा है कि अरावली पर्वतमाला के सौ मीटर से कम ऊंचाई वाले हिस्से को वन के रूप में पारिभाषित नहीं किया जा सकता है। लोगों का मानना है कि कोर्ट के इस फैसले से वन और खनन माफिया को अरावली के वन क्षेत्र को बर्बाद करने का मौका मिल जाएगा।अगर सौ मीटर वाले फैसले के आधार पर देखा जाए तो हरियाणा में अरावली की पहाड़ियां दो ही जगहों पर सौ मीटर से ज्यादा ऊंची हैं। पहली भिवानी जिले में तोसाम और दूसरी महेंद्रगढ़ जिले में मधेपुरा। इसका मतलब यही है कि हरियाणा का बाकी क्षेत्र संरक्षण से बाहर हो जाएगा। लोगों का मानना है कि अगर इस फैसले को वापस नहीं लिया गया, तो निकट भविष्य में पूरे प्रदेश की जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। सौ मीटर से ज्यादा ऊंचे इन दोनों जगहों की चोटियों को छोड़कर बाकी हिस्सा असंरक्षित हो जाएगा जिसका फायदा खनन और वन माफियाओं को होगा।
यही वजह है कि गुरुग्राम में कल अरावली पर्वतमाला के अस्तित्व पर मंडरा रहे संभावित खतरे को देखते हुए ‘अरावली बचाओ सिटिजन मूवमेंट’ के आह्वान पर डेढ़ सौ से अधिक लोगों ने कई घंटों तक प्रदर्शन किया। इन लोगों ने दूसरे लोगों को भी इस मूवमेंट से जुड़ने की अपील की ताकि राज्य सरकार और सुप्रीमकोर्ट तक इस बात को पहुंचाई जा सके। अरावली को बचाने के लिए प्रयासरत लोगों का कहना था कि यदि सुप्रीमकोर्ट ने अपना फैसला वापस नहीं लिया, तो पूरे उत्तर भारत के लोगों को सांस लेने के लिए आक्सीजन प्रदान करने वाली अरावली पहाड़ियां बरबाद होकर रह जाएंगी। अरावली उत्तर-पश्चिम भारत का प्राकृतिक सुरक्षा कवच है।
अरावली पर्वत शृंखलाएं वाटर रिचार्ज, बायो डायवर्सिटी और लाखों लोगों की आजीविका का महत्वपूर्ण साधन हैं। लोगों ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि पूरे अरावली क्षेत्र को संरक्षित घोषित किया जाए। वैसे भी पर्यावरणविद बहुत पहले से कहते आ रहे हैं कि यदि अरावली का संरक्षण नहीं किया गया, तो पूरे उत्तर भारत में गर्मी पड़ेगी। भूजल रिचार्ज नहीं हो पाएगा जिसकी वजह से लोगों का पलायन बढ़ेगा।
जब पानी ही नहीं होगा, तो खेती से लेकर व्यावसायिक गतिविधियों पर बुरा प्रभाव पडेÞगा। ऐसी स्थिति में उनके पास पलायन के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं बचेगा। इससे उद्योगपतियों को तो फायदा होगा क्योंकि खनन होने से भवन निर्माण आदि की सामग्री आसानी से उपलब्ध होगी और वे उसे बेचकर अपना मुनाफा बढ़ा सकेंगे। लेकिन लोकहित में यही है कि अरावली पर्वत शृंखलाओं का संरक्षण किया जाए।

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