औद्योगिक कचरे का बहाव, बिना ट्रीट किया हुआ सीवेज, प्लास्टिक कचरा और खेती से निकलने वाला गंदा पानी जैसे कारणों से ही यमुना नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित हुई है। मिशन यमुना क्लीन-अप जैसे उपाय से यमुना नदी के बहुत ज्यादा प्रदूषित हिस्सों को फिर से जीवंत करने की कोशिश की जा चुकी है। लेकिन इसमें भी अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है। कई उपाय करने के बावजूद यमुना साफ नहीं हो सकी है।
राज्य सरकार ने अब यमुना को हरियाणा में साफ रखने के लिए नई पहल करने का फैसला किया है। यदि यह योजना सफल रही, तो दूसरे राज्य भी इसका उपयोग कर सकते हैं। राज्य सरकार शहरों के बीच से गुजरने वाले गंदे नालों को साफ करके यमुना नदी में डालने का फैसला किया है। इसके लिए यमुनानगर, करनाल, पानीपत, सोनीपत और फरीदाबाद से होकर गुजरने वाली यमुना नदी से मिलने वाले नालों के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त करने का फैसला किया है।
उम्मीद है कि एक महीने के भीतर ही अलग-अलग शहरों में ड्रेनों के लिए नोडल एजेंसी नियुक्त कर दी जाएगी। नोडल एजेंसी तय करने के बाद उनके दायित्व तय किए जाएंगे। उनको यह जिम्मेदारी दी जाएगी कि उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले नालों का पानी साफ होकर ही यमुना नदी में मिले। दिल्ली और हरियाणा में भाजपा की ही सरकार होने की वजह से उम्मीद है कि दोनों प्रदेशों की सरकारें आपसी तालमेल से काम करेंगी और यमुना नदी को साफ और प्रदूषणरहित बनाकर छोड़ेंगी।
यमुना नदी के प्रदूषण को देखते हुए मुख्यमंत्री नायब सैनी ने सख्त रुख अपनाया है। यमुना मॉनीटरिंग कमेटी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसके मुताबिक प्रदेश के दस जिलों में प्रतिदिन 1164 एमएलडी सीवर का पानी निकलता है। एसटीपी के सही तरीके से काम न करने की वजह से केवल 521 एमएलडी पानी बिना ट्रीट किए यमुना में मिला दिए जाते हैं। इसकी वजह से यमुना का पानी पीने लायक तो क्या छूने लायक भी नहीं बचा है। हरियाणा स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक, यमुना प्रमुख रूप से प्रदेश के छह जिलों से होकर गुजरती है। हर जिले के गंदे नालों से निकलने वाला पानी बिना शोधित किए यमुना में डाला जाता है। राज्य सरकार की नई पहल से यमुना के साफ होने की उम्मीद जगी है।

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