बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
महात्मा गांधी की सभाओं और भजन संध्याओं में रामधुन गाकर उसे अमर कर देने वाले विष्णु दिगंबर पलुस्कर का जन्म 19 अगस्त 1872 में हुआ था। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत तो उच्चतम शिखर तक पहुंचाने में पलुस्कर का बहुत बड़ा योगदान रहा है। पलुस्कर में संगीत के मामले में अपार प्रतिभा थी। वह संगीत साधना को सबसे पवित्र मानते थे।वह मानते थे कि संगीत राज दरबारों और महफिलों की गुलाम बनने के लिए नहीं है। इसे जन साधारण के बीच लाना चाहिए। वह लोगों के बीच संगीत को प्रसिद्ध करना चाहते थे। यही वजह है कि जब भी महात्मा गांधी की सभा होती थी या दूसरे सामाजिक आयोजन होते थे, वह जरूर वहां जाते थे और अपने संगीत को प्रस्तुत करते थे। रघुपति राघव राजा राम जैसे भजन को पूरे भारत में लोकप्रिय बनाने का श्रेय पलुस्कर को ही है।
यह भी सही है कि पलुस्कर ने धर्नाजन के लिए भी सार्वजनिक कार्यक्र किए। एक बार की बात है। उनका एक कार्यक्रम धर्नाजन के लिए आयोजित किया गया। आयोजकों की लापरवाही रही या उदासीनता, केवल पांच श्रोता ही संगीत कार्यक्रम में आए। आयोजक ने पलुस्कर को सुझाव दिया कि कार्यक्रम को स्थगित कर देना चाहिए। पलुस्कर ने कार्यक्रम स्थगित करने से इनकार कर दिया।
उन्होंने कहा कि जिन पांच लोगों ने टिकट खरीदा है, उनको संगीत न सुनने देना, अपराध है। उन्होंने समय जाया किया है। उन्होंने उस कार्यक्रम बड़ी श्रद्धा और तन्मयता से गायन शुरू किया कि पांचों लोग भावविभोर हो उठे। कार्यक्रम के बाद उनके गायन की पूरे शहर में इतनी चर्चा हुई कि अगली बार जब उनका कार्यक्रम हुआ, तो भारी भीड़ जुटी। टिकटों के लिए लंबी कतारें लगी थीं।

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