अशोक मिश्र
हरियाणा का मिजाज दूसरे राज्यों से कुछ अलग है। वैसे यहां की दोस्ती की भावना प्रसिद्ध है। दोस्ती के लिए यहां के लोग कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन राजनीतिक दलों का मिजाज जुदा है। हरियाणा में राजनीतिक दलों की एक दूसरे से दोस्ती यानी गठबंधन तो हुआ, लेकिन वह टिकाऊ नहीं रहे। पिछले विधानसभा चुनाव की ही बात की जाए, तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आप कहने के लिए भले ही इंडिया गठबंधन में रहे हों, लेकिन हकीकत में दोनों ने एक दूसरे का साथ नहीं दिया। विधानसभा चुनाव के दौरान भी यही नाटक हुआ।कांग्रेस बेमन से आम आदमी पार्टी से बातचीत और सीटों के बंटवारे को लेकर नाटक करती रही। कभी आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल तुनक जाते, तो कभी राहुल गांधी का मन बातचीत को आगे बढ़ाने का नहीं होता था। अंतत: दोनों ने अपने-अपने कैंडिडेट खड़े किए और जो नतीजा आया, सबको मालूम है। वैसे राज्य में कांग्रेस हमेशा से अकेले चलने की आदी रही है।
वह चाहे जीते, चाहे हारे, वह अकेले ही चुनाव लड़ना पसंद करती है। वहीं भाजपा, बसपा, इनेलो, आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल जैसी पार्टियां एक दूसरे के सहारे ही आगे बढ़ी हैं। शायद यह पहला मौका है, जब भाजपा ने अकेले सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की है। इससे पहले उसकी सरकार बैसाखियों पर ही टिकती रही है। कई दल और उसके नेता चुनावों के दौरान एक दूसरे के साथ आए, लेकिन अपना हित और अपना ईगो साथ लेकर आए। एक दूसरे से जुड़े, लेकिन मन से नहीं जुड़े। प्रदेश में जब भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव हुए, भाजपा ने हविपा, इनेलो और जजपा से गठबंधन किया, लेकिन चुनाव बाद ही या एकाध साल तक ही यह गठबंधन चला।
बाद में भाजपा ने अपना अलग रास्ता अख्तियार किया, तो हविपा, इनेलो और जजपा ने दूसरी राह पकड़ ली। कई बार तो इधर चुनाव खत्म, उधर दोस्ती यानी गठबंधन खत्म। इनेलो और बसपा के बीच अब तक तीन बार गठबंधन हुआ, लेकिन जल्दी ही खत्म हो गया। आज भले ही भाजपा के पास सबसे ज्यादा विधायक और सबसे ज्यादा संगठित विधायक हों, लेकिन सन 2014 से पहले भाजपा गठबंधन के ही सहारे आगे बढ़ती रही। पीएम नरेंद्र मोदी की देश में सुनामी आने के बाद ही भाजपा की किस्मत चमकी और लगातार तीन बार सत्ता पर काबिज होने में सफल रही है।
लेकिन कांग्रेस एकला चलो रे की राह पर ही चलती रही। पिछले एक साल से कांग्रेस ने भी अपने संगठन की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया है। उसके कार्यकर्ता थोड़े बहुत सक्रिय हुए हैं, लेकिन अभी इस मामले में उन्हें भाजपा से बहुत कुछ सीखना होगा। भाजपा की ही तरह कांग्रेस को भी हमेशा चुनावी मोड में ही रहना होगा, तभी फायदा होगा।

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