अशोक मिश्रराजस्थान, दिल्ली और हरियाणा में अरावली को लेकर आंदोलन तेज होता जा रहा है। राजस्थान के सीकर, अलवर और जोधपुर क्षेत्र में लोग अरावली पर्वत शृंखला को बचाने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। लोगों ने अरावली को राजस्थान को प्राणवायु देने वाला बताकर सुप्रीमकोर्ट के फैसले को बदलने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। राजस्थान के कुछ शहरों में अरावली को बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हल्का लाठी चार्ज भी किया। गुरुग्राम में सेव अरावली अभियान चलाया जा रहा है।
लोग यहां भी धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। अरावली को बचाने की मुहिम में लगे लोगों ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के हालिया बयान का विरोध जताते हुए उसे भ्रामक बताया। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने इस मामले में फैले भ्रम को दूर का प्रयास करते हुए कहा था कि कुल 1.47 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में से 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र संरक्षित है। केवल 0.19 प्रतिशत क्षेत्र ही खनन योग्य है। वहीं पर्यावरणविदों का कहना है कि सुप्रीमकोर्ट के आदेश में सौ मीटर पहाड़ को नीचे से मापने का उल्लेख ही नहीं है।
इस मामले में सेव अरावली ट्रस्ट का तर्क है कि केंद्रीय मंत्री कह चुके हैंकि अरावली में मौजूद किले, मंदिर, रिजर्व वन क्षेत्र और संरक्षित क्षेत्र को नुकसान नहीं पहुंचने दिया जाएगा। लेकिन बाकी हिस्सों का क्या होगा? इस बारे में मंत्री के बयान से कुछ भी साफ नहीं होता है। बाकी क्षेत्रों की रक्षा की जिम्मेदारी किसकी है? इस बारे में केंद्रीय मंत्री कुछ साफ नहीं किया है। पर्यावरणविदों ने सरकार से इस मामले में पूरी योजना सार्वजनिक करने की मांग की है। ताकि सच्चाई सामने आ सके।
दरअसल, लोगों की अरावली पर्वत को लेकर चिंता बहुत जायज है। पिछले कई दशकों से सरकारी नीतियों की कमियों का फायदा उठाकर ही खनन और वन माफिया मालामाल होते रहे हैं और उत्तर भारत के पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते रहे हैं। तब लोगों में पर्यावरण को लेकर इतनी जागरूकता भी नहीं थी। पिछले पंद्रह साल में खनन माफिया ने आठ से दस किमी क्षेत्र में पूरी पहाड़ी को ही वीरान कर दिया। 2023 के दौरान राजस्थान में किए एक अध्ययन के मुताबिक 1975 से 2019 के बीच अरावली की करीब आठ फीसदी पहाड़ियां गायब हो गईं।
अगर अवैध खनन और शहरीकरण ऐसे ही बढ़ता रहा तो 2059 तक यह नुकसान 22 फीसदी पर पहुंच जाएगा। अगर अरावली को लेकर अभी सरकारें, अदालतें और लोग जागरूक नहीं हुए तो खनन और वन माफिया इसे वीरान करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। इस मामले में किसी प्रकार की लापरवाही अरावली पर्वतमाला के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती है। अरावली को नुकसान पहुंचने पर लाखों करोड़ों लोगों का पलायन निश्चित है।

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