बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
शी कुआंग के बारे में कहा जाता है कि जब तक वह जिन शासक के मुख्यमंत्री रहे, तब तक शासन बहुत अच्छी तरह से चलता रहा। संगीतकार शी कुआंग के ही समकालीन थे महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस। उस समय दर्शन में कन्फ्यूशियस की पूरे चीन में धूम मची हुई थी। लोग कन्फ्यूशियस का बड़ा आदर करते थे।
एक बार की बात है। एक व्यक्ति ने कन्फ्यूशियस से कहा कि मैं आपको शी कुआंग से मिलवाना चाहता हूं। वह चीन के बहुत बड़े संगीतकार हैं। उनका नाम दूर-दूर तक फैला हुआ है। उस व्यक्ति की बात सुनकर कन्फ्यूशियस हंसे और बोले, मैं उनसे मिलकर क्या करूंगा। मैं तो एक घुमक्कड़ प्रवृत्ति का आदमी हूं। मैं एक जगह पर टिकता ही नहीं हूं और वैसे भी मेरी संगीत में कोई रुचि भी नहीं है।
लेकिन कन्फ्यूशियस उस व्यक्ति की बात टाल नहीं पाए। वह शी कुआंग से मिलने को तैयार हो गए। अपने-अपने क्षेत्र में महान शख्सियतों की मुलाकात हुई तो दोनों एक दूसरे से बहुत प्रभावित हुए। शी कुआंग ने उन्हें चीन का पवित्र संगीत शाओ सिखाया। अब तो कन्फ्यूशियस की दिनचर्या ही बदल गए। वह हर समय संगीत में ही रमे रहते थे। अब तो संगीत उनके सिर चढ़कर बोलने लगा। एक दिन वह अपने अनुयायी से बोले, मुझे नहीं मालूम था कि संगीत में इतनी शक्ति होती है।

No comments:
Post a Comment