बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
जर्मनी के सेनापति जोहान्स इरविन यूजेन रोमेल को उनके विरोधी रेगिस्तानी लोमड़ी कहकर पुकारते थे। रोमेल का जन्म 15 नवंबर 1891 में हेइडेनहाइम में हुआ था। वह दूसरे विश्वयुद्ध के समय जर्मनी के सेनापति बनाए गए थे। वह अपने दुश्मनों में भी नफरतरहित बातचीत के लिए विख्यात थे। रोमेल 1910 में जर्मन सेना में शामिल हुए और प्रथम विश्वयुद्ध में वीरता के लिए आयरन क्रॉस प्राप्त किया; उन्होंने युद्ध की नई रणनीतियाँ सीखीं और एक कुशल प्रशिक्षक बने।कहा जाता है कि वह जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर के काफी नजदीकी थे। लेकिन उनके नाजीवादी विचारधारा और दुश्मनों की हत्या के विरोधी थे। उन्होंने कई युद्धों में जर्मनी की सेना को विजय दिलाई थी। दूसरे विश्वयुद्ध की बात है। वह उन दिनों जर्मनी की सेना लेकर अफ्रीका में अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ रहे थे। काफी दिनों से युद्ध चलने की वजह से उनके तोपखाने में गोला बारूद खत्म हो गया था।
अंग्रेजी सेना जर्मन की सेना पर हमला करने के लिए आगे बढ़ती चली आ रही थी। तभी उनके पास सेनाधिकारी दौड़ता हुआ आया और सच्चाई बताई। यह भी बताया कि अंग्रेजी सेना नजदीक आती जा रही है। रोमेल ने कहा कि घबड़ाने से काम नहीं चलेगा। तोपों में बारूद की जगह धूल भरकर अंग्रेजों पर फेंको। वायुसेना से कहो कि अंग्रेजों की सेना के ऊपर उड़ान भरते रहें।
तोपों से धूल उड़ने लगी तो अंग्रेजों को लगा कि जर्मनी बहुत बड़ी फौज बढ़ती चली आ रही है। उनके हौसले टूट गए और वह युद्ध क्षेत्र से भाग खड़े हुए। हिटलर की हत्या की साजिश में फंसने के बाद उन्होंने साइनाइड की गोली खाकर 14 अक्टूबर 1944 को आत्महत्या कर ली।
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