-अशोक मिश्र
मित्रो! मैं आपको अपना परिचय दे दूं। मैं खटमल हूं। मेरा जीवन ही रक्त चूसने से चलता है। मेरा दावा है कि दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति ने, चाहे वह किसी भी देश का राष्ट्रपति हो, प्रधानमंत्री हो या फिर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले आम आदमी, उसने अपने जीवन में एक बार जरूर देखा होगा। मैं कुर्सियों, सोफों, बिस्तर और दीवारों के साथ-साथ कई अन्य जगहों पर भी पाया जाता हूं। आपको बहुत पहले का एक मजेदार किस्सा बताऊं। एक व्यक्ति के कंधे पर चढ़कर उत्तर प्रदेश के किसी गांव-देहात के बाजार में जाने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस मेले में एक खूबसूरत हीरोइन दिख गई। मेले के माहौल की वजह से मैं रोमांटिक हो चला था। मैं रेंगता हुआ, हीरोइन के जमीन पर लटक रहे दुपट्टे पर से होता हुआ चोली में पहुंच गया। चोली में पंहुचते ही पता नहीं क्यों और कैसे, मुझे शरारत सूझ गई। मैंने चुपके से काट लिया। हीरोइन तिलमिलाकर गा उठी, ‘बीच बजरिया खटमल काटे, कैसे निकालूं चोली से।’
तो अब आप इस किस्से से मेरे सब जगह मौजूद रहने की खासियत से परिचित हो ही गए होंगे। अगर मैं आपको अपने सर्वत्र मौजूदगी को इस तरह समझाऊं कि मैं ‘हिग्स फील्ड’ में अदृश्य रूप में मौजूद रहने वाले हिग्स बोसॉन कणों की तरह हूं, जो मौजूद तो हर जगह रहता है, लेकिन वैज्ञानिकों को विशेष भौतिक वस्तु परिस्थितियों यानी प्रयोगशालाओं में ही दिखाई देता है, तो मेरा ख्याल है कि आप बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। एक बात मैं आपको और बता दूं। मेरी इस खास प्रवृत्ति पर अभी तक वैज्ञानिकों की दृष्टि नहीं पड़ी है। मैं जब चाहे, अपना रूपांतरण भी कर सकता हूं। आपको विश्वास नहीं हो रहा है, तो आपने आसपास के वातावरण को गौर से देखिए, आपको मेरी मौजूदगी का एहसास हो जाएगा।
अजी आपको मेरे रूपांतरित स्वरूप को तलाशना चाहें, तो राजनीति में सबसे ज्यादा मिलेंगे। कुछ लोग तो ‘खटमली’ प्रवृत्ति को इस तरह अख्तियार कर बैठे हैं, मानो वे पैदायशी खटमल हों। कुर्सी की चाह में पार्टी और आलाकमान से खटमल की तरह चिपके रहे, जोड़-जुगत करके किसी तरह अगर कुर्सी मिल गई, उससे चिपक गए। एक बार कुर्सी से चिपकने का मौका क्या मिला, लगे अपनी वंश वृद्धि करने। वंश वृद्धि हुई, तो पूरे कुनबे के साथ लगे आम आदमी का खून चूसने। दूसरे खटमल लाख चिल्लाते रहें कि तुम्हारा पेट भर गया हो, तो हमें भी मौका दो, लेकिन ये दूसरों को तब तक मौका नहीं देते, जब तक कुर्सी से ढकेल नहीं दिए जाते। नौकरशाही अर्थात् ब्यूरोक्रेसी का और भी बुरा हाल है। कई ब्यूरोक्रेट्स तो आम आदमी का इतनी बुरी तरह से रक्त शोषण करते हैं कि हम खटमलों को भी शर्मिंदा होना पड़ता है। तब हम वास्तविक खटमलों को लगने लगता है कि निरीह आदमियों के साथ कुछ ज्यादा ही ज्यादती हो रही है। सो, हमने पिछले दिनों ‘वास्तविक और कायांतरित खटमलों’ ने मिलकर एक मीटिंग बुलाई थी। इस मीटिंग का निष्कर्ष यह निकला कि हम लोग जिनका रक्त शोषण करते हैं, उनमें से ज्यादातर एनीमिया (खून कम होने की बीमारी) से पीड़ित हैं। ऐसे रक्त शोषितों में खून बनने की प्रक्रिया फिर से शुरू हो, इसके लिए जरूरी है कि उनकी नशों में थोड़ा-बहुत रक्त हो, इसलिए हम सबने मिलकर रक्त शोषितों के हित में रक्तदान का फैसला लिया है। जिस व्यक्ति को रक्त चाहिए, वह निस्संकोच हमसे संपर्क कर सकता है।
मित्रो! आप जानते ही हैं कि हम खटमल निरपेक्ष भाव से जो भी मिल जाता है, उसका रक्त शोषण करते हैं। इस मामले में हम जाति-धर्म, भाषा-प्रांत, अमीर-गरीब या ब्लड ग्रुप का भेदभाव नहीं करते हैं। हर तरह का ब्लड ग्रुप हमारे लिए सुपाच्य है। हमारी नशों में बहने वाला रक्त पांचवें किस्म का ब्लड ग्रुप बन जाता है जिसमें सभी किस्म के एंटीबॉडी और एंटीजन समान मात्रा में मौजूद रहते हैं। हां, धार्मिक, सीधा-सादा और परोपकारी व्यक्ति अगर हमारा खून चढ़ाए जाने के बाद चोर, कपटी, विश्वासघाती, देशद्रोही या आपराधिक प्रवृत्ति का हो जाए, तो इसके लिए हम किसी भी तरह से दोषी नहीं होंगे। ये सारे गुण आप लोगों के रक्त से होकर ही हम खटमलों तक पहुंचे हैं। खुदा हाफिज!
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