-अशोक मिश्र
काफी धुआंधार प्रेस कान्फ्रेंस चल रही थी। राष्ट्रीय मूर्खता विकास पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता चतुरानंद कह रहे थे, ‘आप सोचिए, आज अगस्त क्रांति दुर्घटना ग्रस्त हुई है, कल शताब्दी या राजधानी का नंबर हो सकता है। यह किसकी गलती है? प्रधानमंत्री की। प्रधानमंत्री न ठीक से देश चला पा रहे हैं, न उनके शासन में रेलगाड़ियां सही चल रही हैं। जैसी मनमानी प्रधानमंत्री कर रहे हैं, वैसी ही मनमानी पर रेलगाड़ियां, बसें और हवाई जहाज उतारू हैं। आज ही हिमाचल प्रदेश में बस खाई में गिरने से पांच आदमियों की असमय मौत हो गई।
इसमें किसका दोष है? साफ तौर पर प्रधानमंत्री का। अगर सड़कें ठीक तरह से बनी होतीं, तो यह हादसा नहीं होता। मैंने पता किया है, हिमाचल की वह सड़क प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क विकास परियोजना के तहत बनी थी। प्रधानमंत्री को इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए या तो अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए अथवा पूरे राष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए। अगर दो-चार दिन में प्रधानमंत्री ने माफी नहीं मांगी या इस्तीफा नहीं दिया, तो राष्ट्रीय मूर्खता विकास पार्टी के कार्यकर्ता सड़कों पर उतरेंगे, राष्ट्रव्यापी आंदोलन करेंगे। हमारे कार्यकर्ता प्रधानमंत्री को मजबूर कर देंगे कि वे अपने पद से इस्तीफा दें।’
तभी दैनिक झमामझ टाइम्स के संवाददाता ने उनसे पूछा, ‘चतुरानंद जी! पिछले दिनों उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में आए ‘फेलिन’ के बारे में आपकी पार्टी क्या सोचती है?’ चतुरानंद जी पहले तो मुस्कुराए और बोले, ‘इसके लिए भी केंद्र सरकार दोषी है। दोषी इस मायने में है कि प्रधानमंत्री को फेलिन से बात करनी चाहिए थी, उसको मनाना चाहिए था। अगर वह आने पर इतना ही उतारू था, तो उसको राष्ट्रीय मेहमान का दर्जा दिया जा सकता था, तब शायद वह नहीं होता, जो हुआ था। पूरी दुनिया के सामने इतनी जगहंसाई नहीं होती? प्रधानमंत्री को पूरे राष्ट्र से खासकर हमारी राष्ट्रीय मूर्खता विकास पार्टी के अध्यक्ष से माफी मांगनी चाहिए।’ राष्ट्रीय मासिक ‘मुंह-पेट’ के संवाददाता ने बीच में अवरोध पैदा किया, ‘लेकिन फेलिन तो तूफान का नाम है। प्रधानमंत्री उस तूफान से कैसे बात कर सकते थे? उसको कैसे रोक सकते थे? उस तूफान पर प्रधानमंत्री का क्या वश चल सकता था?’ पल भर के लिए प्रवक्ता चतुरानंद अकबकाए और फिर धूर्ततापूर्वक बोले, ‘चलो माना कि तूफान को वे रोक नहीं सकते थे। लेकिन इस्तीफा तो दे सकते थे? देश की जनता से माफी तो मांग सकते थे? आपको याद है, लाल बहादुर शास्त्री जी जब रेल मंत्री थे, तो रेल हादसा होने पर उन्होंने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दिया था कि नहीं? नैतिकता भी तो कोई चीज होती है कि नहीं। क्या लाल बहादुर शास्त्री जी कोई उस रेलगाड़ी के ड्राइवर थे? नहीं न! लेकिन उनकी नैतिकता देखिए, उन्होंने इस्तीफा देने में एक भी पल नहीं लगाया था। फेलिन जब आया, तो अपने प्रधानमंत्री क्या कर रहे थे? विदेश यात्रा पर गए हुए थे। जब आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, बिहार, झारखंड जैसे प्रदेश तूफान का बड़ी बहादुरी से सामना कर रहे थे, तब हमारे माननीय प्रधानमंत्री विदेश में सो रहे थे क्योंकि उस समय रात के ढाई बजे थे। जब देश पर संकट आया हो, तो कोई भी प्रधानमंत्री सो कैसे सकता है? अब कई प्रदेशवासियों के संकट के समय सोने के मामले में प्रधानमंत्री का इस्तीफा तो बनता है न!’
‘चतुरानंद जी! जब आपकी पार्टी सत्ता में थी, तो आपकी पार्टी के प्रधानमंत्री ने कभी इस्तीफा नहीं दिया? जबकि उनके शासनकाल में भी हत्याएं हुर्इं, बच्चियों और महिलाओं से बलात्कार हुए, कई बड़े-बड़े घोटालों का पर्दाफाश हुआ। आपकी पार्टी के कई सांसद कैमरे के सामने रिश्वत लेते पकड़े गए। तब कहां चली गई थी आपकी नैतिकता?’ एक संवाददाता ने सवाल पूछा। चतुरानंद ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा, ‘तब विपक्षियों ने साजिश रची थी। वे हमारी पार्टी की सरकार को बदनाम करना चाहते थे। हमारी पार्टी की नीतियां तब भी सही थीं और आज भी सही हैं। खोट विपक्ष में बैठे लोगों में थी। वे जानबूझकर हमारी पार्टी के सांसदों को पैसा पकड़ाते थे और बाद में हो-हल्ला मचाते थे। इसमें मीडिया के भी कुछ लोग शामिल थे। जब तक हमारी पार्टी की सरकार रही, हमने किसी को भी देश का पैसा लूटने नहीं दिया। आज हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं, अगर अगले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी की सरकार बनी, तो सबको लूटने का मौका समान रूप से दिया जाएगा। इस मामले में हमारी पार्टी की नीतियां सबसे अलग हैं। अगर हमसे कुछ बचेगा, तो सबको मिलेगा न! देश में जितने भी बनिया-बक्काल और पूंजीपति हैं, पहले उन्हें लूटने-खसोटने का मौका दिया जाएगा। उनसे अगर कहीं कुछ बच गया, तो उसके बाद नौकरशाही का नंबर लगेगा। हां, देश के लोग यह विश्वास रखें, पांच साल बीतते-बीतते लगुओं-भगुओं का नंबर आ ही जाएगा। आखिर कोई कितना लूटेगा? साल-दो साल में लूटने वाला थक ही जाएगा और कहेगा, ‘बस अब मुझसे नहीं लूटा जाता।’ इतना कहकर राष्ट्रीय मूर्खता विकास पार्टी के प्रवक्ता उठे और बोले, ‘अब प्रेस कान्फ्रेंस खत्म। बाकी सवाल अगली बार के लिए। हां, आप लोग स्वल्पाहार जरूर करके जाएं। यदि मन हो, तो अपने बाल-बच्चों के लिए भी ले जा सकते हैं।’ इसके बाद चतुरानंद चलते बने।
काफी धुआंधार प्रेस कान्फ्रेंस चल रही थी। राष्ट्रीय मूर्खता विकास पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता चतुरानंद कह रहे थे, ‘आप सोचिए, आज अगस्त क्रांति दुर्घटना ग्रस्त हुई है, कल शताब्दी या राजधानी का नंबर हो सकता है। यह किसकी गलती है? प्रधानमंत्री की। प्रधानमंत्री न ठीक से देश चला पा रहे हैं, न उनके शासन में रेलगाड़ियां सही चल रही हैं। जैसी मनमानी प्रधानमंत्री कर रहे हैं, वैसी ही मनमानी पर रेलगाड़ियां, बसें और हवाई जहाज उतारू हैं। आज ही हिमाचल प्रदेश में बस खाई में गिरने से पांच आदमियों की असमय मौत हो गई।
इसमें किसका दोष है? साफ तौर पर प्रधानमंत्री का। अगर सड़कें ठीक तरह से बनी होतीं, तो यह हादसा नहीं होता। मैंने पता किया है, हिमाचल की वह सड़क प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क विकास परियोजना के तहत बनी थी। प्रधानमंत्री को इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए या तो अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए अथवा पूरे राष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए। अगर दो-चार दिन में प्रधानमंत्री ने माफी नहीं मांगी या इस्तीफा नहीं दिया, तो राष्ट्रीय मूर्खता विकास पार्टी के कार्यकर्ता सड़कों पर उतरेंगे, राष्ट्रव्यापी आंदोलन करेंगे। हमारे कार्यकर्ता प्रधानमंत्री को मजबूर कर देंगे कि वे अपने पद से इस्तीफा दें।’
तभी दैनिक झमामझ टाइम्स के संवाददाता ने उनसे पूछा, ‘चतुरानंद जी! पिछले दिनों उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में आए ‘फेलिन’ के बारे में आपकी पार्टी क्या सोचती है?’ चतुरानंद जी पहले तो मुस्कुराए और बोले, ‘इसके लिए भी केंद्र सरकार दोषी है। दोषी इस मायने में है कि प्रधानमंत्री को फेलिन से बात करनी चाहिए थी, उसको मनाना चाहिए था। अगर वह आने पर इतना ही उतारू था, तो उसको राष्ट्रीय मेहमान का दर्जा दिया जा सकता था, तब शायद वह नहीं होता, जो हुआ था। पूरी दुनिया के सामने इतनी जगहंसाई नहीं होती? प्रधानमंत्री को पूरे राष्ट्र से खासकर हमारी राष्ट्रीय मूर्खता विकास पार्टी के अध्यक्ष से माफी मांगनी चाहिए।’ राष्ट्रीय मासिक ‘मुंह-पेट’ के संवाददाता ने बीच में अवरोध पैदा किया, ‘लेकिन फेलिन तो तूफान का नाम है। प्रधानमंत्री उस तूफान से कैसे बात कर सकते थे? उसको कैसे रोक सकते थे? उस तूफान पर प्रधानमंत्री का क्या वश चल सकता था?’ पल भर के लिए प्रवक्ता चतुरानंद अकबकाए और फिर धूर्ततापूर्वक बोले, ‘चलो माना कि तूफान को वे रोक नहीं सकते थे। लेकिन इस्तीफा तो दे सकते थे? देश की जनता से माफी तो मांग सकते थे? आपको याद है, लाल बहादुर शास्त्री जी जब रेल मंत्री थे, तो रेल हादसा होने पर उन्होंने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दिया था कि नहीं? नैतिकता भी तो कोई चीज होती है कि नहीं। क्या लाल बहादुर शास्त्री जी कोई उस रेलगाड़ी के ड्राइवर थे? नहीं न! लेकिन उनकी नैतिकता देखिए, उन्होंने इस्तीफा देने में एक भी पल नहीं लगाया था। फेलिन जब आया, तो अपने प्रधानमंत्री क्या कर रहे थे? विदेश यात्रा पर गए हुए थे। जब आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, बिहार, झारखंड जैसे प्रदेश तूफान का बड़ी बहादुरी से सामना कर रहे थे, तब हमारे माननीय प्रधानमंत्री विदेश में सो रहे थे क्योंकि उस समय रात के ढाई बजे थे। जब देश पर संकट आया हो, तो कोई भी प्रधानमंत्री सो कैसे सकता है? अब कई प्रदेशवासियों के संकट के समय सोने के मामले में प्रधानमंत्री का इस्तीफा तो बनता है न!’
‘चतुरानंद जी! जब आपकी पार्टी सत्ता में थी, तो आपकी पार्टी के प्रधानमंत्री ने कभी इस्तीफा नहीं दिया? जबकि उनके शासनकाल में भी हत्याएं हुर्इं, बच्चियों और महिलाओं से बलात्कार हुए, कई बड़े-बड़े घोटालों का पर्दाफाश हुआ। आपकी पार्टी के कई सांसद कैमरे के सामने रिश्वत लेते पकड़े गए। तब कहां चली गई थी आपकी नैतिकता?’ एक संवाददाता ने सवाल पूछा। चतुरानंद ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा, ‘तब विपक्षियों ने साजिश रची थी। वे हमारी पार्टी की सरकार को बदनाम करना चाहते थे। हमारी पार्टी की नीतियां तब भी सही थीं और आज भी सही हैं। खोट विपक्ष में बैठे लोगों में थी। वे जानबूझकर हमारी पार्टी के सांसदों को पैसा पकड़ाते थे और बाद में हो-हल्ला मचाते थे। इसमें मीडिया के भी कुछ लोग शामिल थे। जब तक हमारी पार्टी की सरकार रही, हमने किसी को भी देश का पैसा लूटने नहीं दिया। आज हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं, अगर अगले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी की सरकार बनी, तो सबको लूटने का मौका समान रूप से दिया जाएगा। इस मामले में हमारी पार्टी की नीतियां सबसे अलग हैं। अगर हमसे कुछ बचेगा, तो सबको मिलेगा न! देश में जितने भी बनिया-बक्काल और पूंजीपति हैं, पहले उन्हें लूटने-खसोटने का मौका दिया जाएगा। उनसे अगर कहीं कुछ बच गया, तो उसके बाद नौकरशाही का नंबर लगेगा। हां, देश के लोग यह विश्वास रखें, पांच साल बीतते-बीतते लगुओं-भगुओं का नंबर आ ही जाएगा। आखिर कोई कितना लूटेगा? साल-दो साल में लूटने वाला थक ही जाएगा और कहेगा, ‘बस अब मुझसे नहीं लूटा जाता।’ इतना कहकर राष्ट्रीय मूर्खता विकास पार्टी के प्रवक्ता उठे और बोले, ‘अब प्रेस कान्फ्रेंस खत्म। बाकी सवाल अगली बार के लिए। हां, आप लोग स्वल्पाहार जरूर करके जाएं। यदि मन हो, तो अपने बाल-बच्चों के लिए भी ले जा सकते हैं।’ इसके बाद चतुरानंद चलते बने।
No comments:
Post a Comment