अशोक मिश्र
बचपन में जब भी कहता था कि कल मैं यह करूंगा, वह करूंगा। इतनी पढ़ाई करूंगा, उतनी पढ़ाई करूंगा। तो थंब ग्रेजुएट (अंगूठा टेक) मेरी अम्मा तुरंत डांटती थीं, ‘नासपीटे! अभी से क्यों गा रहा है। कल जितनी पढ़ाई करनी होगी, कर लेना। पहले से ही बनाई गई योजना कभी पूरी नहीं होती। देख लेना, कल ऐन मौके पर कोई न कोई बखेड़ा खड़ा हो जाएगा और तेरा पढ़ना-लिखना धरा का धरा रह जाएगा।’ और सचमुच, कुछ न कुछ ऐसा हो जाता था कि मैं सोचा गया काम नहीं कर पाता था। अम्मा की बातें तब केवल अंधविश्वास लगती थीं, लेकिन अब महसूस होता है कि अम्मा कितना सही कहती थीं। कितना कुछ सोच रखा था? दोस्तों से भी वायदा कर रखा था कि उन्हें भी उसमें से कुछ हिस्सा दूंगा। मेरे यार-दोस्त तो इतना उत्साहित थे कि उन्होंने इसके लिए एक भारी भरकम पार्टी की व्यवस्था कर रखी थी। अगर आप लोग घरैतिन को न बताने का वायदा करें, तो एक महीन बात बताऊं। उस भारी भरकम पार्टी में कुछ डांस-वांस का भी प्रोग्राम था। अब यह मत पूछिएगा कि किसका? जब सपना ही टूट गया, तो कहकर क्या करेंगे। यह बात ढकी-छिपी है, तो अब ढकी ही रहने दीजिए। मुझे तो अब वाकई बहुत गुस्सा आ रहा है। जी चाहता है कि प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया वालों की दाढ़ी नोच लूं। (अगर वे मेरी तरह दाढ़ी रखते हों, तो) कितना सपना दिखाया था इन नासपीटे चैनल वालों ने। वहां इतनी ओबी वैनों को लाकर खड़ा कर दिया था कि लगता था कि ओबी वैन्स का कोई पुराना स्टाक हो और कबाड़ में बेचने के लिए लाया गया हो।
दिन भर चैनलों पर बतकूचन चलती रहती थी। एक चैनल का तो यह भी दावा था कि इतना सोना निकलेगा कि अगर देश की जनता में सबको बांटा गया, तो हर एक व्यक्ति को पसेरी-पसेरी सोना जरूर मिल जाएगा। सोचा था कि आधा पसेरी सोना घरैतिन को देकर हाथ झाड़ लूंगा। वह तो छंटाक भर सोना देखकर ही अपने को धन्य मान लेगी। बाकी सोने के लिए मैंने अपनी कुछ सहेलियों (महिला मित्रों यानी गर्ल फ्रेंड्स) को आश्वासन दे रखा था। अब उन सहेलियों के सामने कौन-सा मुंह लेकर जाऊंगा? पिटवा दी न मेरी भद? कर दिया न कबाड़ा मेरी इज्जत का? मैंने सपने में भी नहीं सोचा कि एक सपना...संत बाबा का सिर्फ एक सपना मेरी इज्जत का फालूदा बनाकर लोगों में बांट देगा खाने के लिए। अब तो मुझे अपने पर गुस्सा आ रहा है कि मैंने उस नामुराद सपने को सच मानकर इतना हसीन और रंगीन सपना क्यों देखा? आपको बताऊंगा, तो आप हंसेंगे। जब आॅर्कियोलाजिकल सर्वे आॅफ इंडिया ने खुदाई शुरू की थी, तो उसके बगल में चल रहे भजन-कीर्तन में मैंने भी पूरे दिन गला फाड़-फाड़कर भजन गाया था, मन्नत मांगी थी। धन की देवी लक्ष्मी जी की मूर्ति को हाजिर नाजिर मानकर मैंने प्रतिज्ञा की थी कि अगर चैनल वालों के कहे मुताबिक पसेरी भर सोना मिला, तो कम से कम तोला-दो तोला आपको भी भेंट करूंगा। यह मनौती मानने के बाद विश्वास था कि आरबीआई के गर्वनर की तरह लक्ष्मी मैया पसेरी भर सोना मिलने की गारंटी तो ले ही लेंगी। कल रात जब लक्ष्मी जी के वाहन उल्लूक राज मेरे सपने में आए, तो मैं खुशी के मारे उछल पड़ा था।
मैंने उल्लूक राज के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा था, ‘उल्लूक महाराज! दीपावली से चार दिन पहले ही दर्शन दे दिए? लक्ष्मी जी कहां हैं? दिखाई नहीं दे रही हैं? सब खैरियत तो है न! विष्णुधाम से लक्ष्मी मैया ने मेरे लिए कोई मैसेज वगैरह तो नहीं भेजा है? आपको क्यों तकलीफ दी मैया ने? एक एसएमएस कर देंती या फिर फोन ही कर देंती। लक्ष्मी मैया के पास मोबाइल सुविधा तो है न कि पुराने जमाने की तरह अभी भी मोबाइल, इंटरनेट वगैरह का अभाव है। ओह समझा, पानी में तार बिछाने में दिक्कत आ रही होगी।’ मेरी बात सुनकर उल्लूक राज जी मुस्कुराये थे। वे कुछ देर तक मुझे घूरते रहे और फिर उड़ गए। मैं सपने में चिल्लाया, ‘अरे लक्ष्मी जी का संदेश तो बताते जाओ, उल्लू महाराज!’ सपने में शायद जोर से चिल्लाया था। मेरी आवाज सुनकर घरैतिन की नींद टूट गई थी। वे बड़बड़ाने लगीं, ‘दिन भर तो छत पर बैठकर घूरने से पेट नहीं भरा, तो अब सपना भी देखने लगे।’ दरअसल, बात यह है कि लक्ष्मी दो घर छोड़कर मेरे मोहल्ले में रहती है। अब सोचता हूं, तो लगता है कि उल्लू महाराज मुझे सपने में आकर चेताने आए थे, बेटा सपने के चक्कर में उल्लू मत बन। जिसने भी सपने पर विश्वास किया, उसकी नैया बीच मझधार में डूबती है। विश्वास न हो, तो कांग्रेस के मंत्री से पूछ लो जिन्होंने सपने पर विश्वास करके खुदाई का फरमान जारी करवाया था। हाय..हाय..डौंडिया खेड़ा...हाय राजा राव राम बक्स सिंह..और उनका अकूत खजाना।
बचपन में जब भी कहता था कि कल मैं यह करूंगा, वह करूंगा। इतनी पढ़ाई करूंगा, उतनी पढ़ाई करूंगा। तो थंब ग्रेजुएट (अंगूठा टेक) मेरी अम्मा तुरंत डांटती थीं, ‘नासपीटे! अभी से क्यों गा रहा है। कल जितनी पढ़ाई करनी होगी, कर लेना। पहले से ही बनाई गई योजना कभी पूरी नहीं होती। देख लेना, कल ऐन मौके पर कोई न कोई बखेड़ा खड़ा हो जाएगा और तेरा पढ़ना-लिखना धरा का धरा रह जाएगा।’ और सचमुच, कुछ न कुछ ऐसा हो जाता था कि मैं सोचा गया काम नहीं कर पाता था। अम्मा की बातें तब केवल अंधविश्वास लगती थीं, लेकिन अब महसूस होता है कि अम्मा कितना सही कहती थीं। कितना कुछ सोच रखा था? दोस्तों से भी वायदा कर रखा था कि उन्हें भी उसमें से कुछ हिस्सा दूंगा। मेरे यार-दोस्त तो इतना उत्साहित थे कि उन्होंने इसके लिए एक भारी भरकम पार्टी की व्यवस्था कर रखी थी। अगर आप लोग घरैतिन को न बताने का वायदा करें, तो एक महीन बात बताऊं। उस भारी भरकम पार्टी में कुछ डांस-वांस का भी प्रोग्राम था। अब यह मत पूछिएगा कि किसका? जब सपना ही टूट गया, तो कहकर क्या करेंगे। यह बात ढकी-छिपी है, तो अब ढकी ही रहने दीजिए। मुझे तो अब वाकई बहुत गुस्सा आ रहा है। जी चाहता है कि प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया वालों की दाढ़ी नोच लूं। (अगर वे मेरी तरह दाढ़ी रखते हों, तो) कितना सपना दिखाया था इन नासपीटे चैनल वालों ने। वहां इतनी ओबी वैनों को लाकर खड़ा कर दिया था कि लगता था कि ओबी वैन्स का कोई पुराना स्टाक हो और कबाड़ में बेचने के लिए लाया गया हो।
दिन भर चैनलों पर बतकूचन चलती रहती थी। एक चैनल का तो यह भी दावा था कि इतना सोना निकलेगा कि अगर देश की जनता में सबको बांटा गया, तो हर एक व्यक्ति को पसेरी-पसेरी सोना जरूर मिल जाएगा। सोचा था कि आधा पसेरी सोना घरैतिन को देकर हाथ झाड़ लूंगा। वह तो छंटाक भर सोना देखकर ही अपने को धन्य मान लेगी। बाकी सोने के लिए मैंने अपनी कुछ सहेलियों (महिला मित्रों यानी गर्ल फ्रेंड्स) को आश्वासन दे रखा था। अब उन सहेलियों के सामने कौन-सा मुंह लेकर जाऊंगा? पिटवा दी न मेरी भद? कर दिया न कबाड़ा मेरी इज्जत का? मैंने सपने में भी नहीं सोचा कि एक सपना...संत बाबा का सिर्फ एक सपना मेरी इज्जत का फालूदा बनाकर लोगों में बांट देगा खाने के लिए। अब तो मुझे अपने पर गुस्सा आ रहा है कि मैंने उस नामुराद सपने को सच मानकर इतना हसीन और रंगीन सपना क्यों देखा? आपको बताऊंगा, तो आप हंसेंगे। जब आॅर्कियोलाजिकल सर्वे आॅफ इंडिया ने खुदाई शुरू की थी, तो उसके बगल में चल रहे भजन-कीर्तन में मैंने भी पूरे दिन गला फाड़-फाड़कर भजन गाया था, मन्नत मांगी थी। धन की देवी लक्ष्मी जी की मूर्ति को हाजिर नाजिर मानकर मैंने प्रतिज्ञा की थी कि अगर चैनल वालों के कहे मुताबिक पसेरी भर सोना मिला, तो कम से कम तोला-दो तोला आपको भी भेंट करूंगा। यह मनौती मानने के बाद विश्वास था कि आरबीआई के गर्वनर की तरह लक्ष्मी मैया पसेरी भर सोना मिलने की गारंटी तो ले ही लेंगी। कल रात जब लक्ष्मी जी के वाहन उल्लूक राज मेरे सपने में आए, तो मैं खुशी के मारे उछल पड़ा था।
मैंने उल्लूक राज के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा था, ‘उल्लूक महाराज! दीपावली से चार दिन पहले ही दर्शन दे दिए? लक्ष्मी जी कहां हैं? दिखाई नहीं दे रही हैं? सब खैरियत तो है न! विष्णुधाम से लक्ष्मी मैया ने मेरे लिए कोई मैसेज वगैरह तो नहीं भेजा है? आपको क्यों तकलीफ दी मैया ने? एक एसएमएस कर देंती या फिर फोन ही कर देंती। लक्ष्मी मैया के पास मोबाइल सुविधा तो है न कि पुराने जमाने की तरह अभी भी मोबाइल, इंटरनेट वगैरह का अभाव है। ओह समझा, पानी में तार बिछाने में दिक्कत आ रही होगी।’ मेरी बात सुनकर उल्लूक राज जी मुस्कुराये थे। वे कुछ देर तक मुझे घूरते रहे और फिर उड़ गए। मैं सपने में चिल्लाया, ‘अरे लक्ष्मी जी का संदेश तो बताते जाओ, उल्लू महाराज!’ सपने में शायद जोर से चिल्लाया था। मेरी आवाज सुनकर घरैतिन की नींद टूट गई थी। वे बड़बड़ाने लगीं, ‘दिन भर तो छत पर बैठकर घूरने से पेट नहीं भरा, तो अब सपना भी देखने लगे।’ दरअसल, बात यह है कि लक्ष्मी दो घर छोड़कर मेरे मोहल्ले में रहती है। अब सोचता हूं, तो लगता है कि उल्लू महाराज मुझे सपने में आकर चेताने आए थे, बेटा सपने के चक्कर में उल्लू मत बन। जिसने भी सपने पर विश्वास किया, उसकी नैया बीच मझधार में डूबती है। विश्वास न हो, तो कांग्रेस के मंत्री से पूछ लो जिन्होंने सपने पर विश्वास करके खुदाई का फरमान जारी करवाया था। हाय..हाय..डौंडिया खेड़ा...हाय राजा राव राम बक्स सिंह..और उनका अकूत खजाना।
:-)
ReplyDeleteहाय!!!
सपना मेरा टूट गया.....
अनु
निहः संदेह बहुत ही सुन्दर व्यंग लिखते है आप हमने आपके विचारों को पढ़ा अच्छा लगा आगे भी लिखते रहे ।युवाओं के मध्य आप लोक प्रिय अवश्य होगे एक दिन \
ReplyDeleteमस्त
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