-अशोक मिश्र
मैं आफिस में बैठा कतरब्योंत कर रहा था कि एक आदमी मेरे पास आया और बोला, ‘भाई जी! मुझे आपसे कुछ सलाह करनी है। सुना है कि आप सलाह बहुत अच्छी देते हैं। आपकी जो भी फीस होगी, मैं भुगतने को तैयार हूं।’ मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और धीरे से उसके कान में फुसफुसाया, ‘आप आफिस के बाहर चाय की दुकान पर पहुंचिए, मैं आता हूं।’ थोड़ी देर बाद मैंने चाय की दुकान पर पहुंचकर उससे कहा, ‘हां..अब बताइए, आपकी क्या प्रॉब्लम है?’ उस आदमी ने चाय सुड़कते हुए कहा, ‘भाई जी..मैं पार्टी बनाना चाहता हूं। राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी..क्या मैं बना सकता हूं?’ मैंने भी चाय जोर से सुड़कते हुए कहा, ‘हिंदुस्तान में चोरों को पार्टी बनाने का हक है, छिछोरों को है, बटमारों और लुटेरों को भी यह हक हासिल है। दागियों को है, बेदागियों को है, तो फिर आपको यह हक क्यों नहीं है। आप तो भले मानुष दिखते हैं। होंगे भी, ऐसा कम से कम मुझे तो विश्वास है। ऐसे में भला आपको कौन रोक सकता है। आप शौक से बनाएं पार्टी, मुझसे भी जो मदद हो सकेगी, मैं करूंगा।’ उस आदमी ने मेरी ओर गौर से देखते हुए कहा, ‘आप शायद मुझे पहचान नहीं पाए हैं। मुझ पर एक नाबालिग से बलात्कार करने का आरोप है। पांच राज्यों की पुलिस मुझे खोज रही है। अब बताइए, मैं राजनीतिक पार्टी बना सकता हूं कि नहीं?’ उसके यह कहते ही इस सर्दी में भी मेरे माथे पर पसीना चुहचुहा आया। मैंने कांपती आवाज में कहा, ‘हां..अब भी आप पार्टी बना सकते हैं, चुनाव लड़ सकते हैं। आप एक काम कीजिए, पहले अदालत में आत्मसमर्पण कीजिए। फिर दो-चार महीने बाद जमानत करवाइए और राजनीतिक पार्टी बनाइए। इसमें कोई रोक नहीं है।’ उस आदमी ने अपने चेहरे को मफलर से ढकते हुए कहा, ‘आपको बता दूं, मेरे पास अकूत संपत्ति है। ज्यादातर कमाया हुआ नहीं, कब्जाया हुआ है। नकली नोटों को छापने का बड़ा लंबा चौड़ा कारखाना है। अफीम से लेकर नशीले ड्रग्स तक बेचने का कारोबार मेरे संरक्षण में चलता है। देशी-विदेशी हथियारों की सप्लाई का उत्तर भारत का टेंडर मेरे ही पास है। सौ-पचास अधिकारी मेरे से हफ्ता पाते हैं। दुनिया भर के काले-गोरे धंधों को करने की मास्टर डिग्री मेरे ही विश्वविद्यालय से दी जाती है। दाउद इब्राहिम और छोटा राजन से लेकर ओसामा बिन लादेन अपनी ही यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट रह चुका है। अपनी फैमिली बैकग्राउंड के बारे में बताऊं, तो आप ताज्जुब रह जाएंगे। मेरे बापू ने तो मेरे से भी महान हैं। उनके बारे में अगर बताने लगूं, तो पूरा पोथन्ना तैयार हो जाए। फिर कभी फुरसत में मिलूंगा, तो बताऊंगा। बस, यह बताओ कि अगर लोकसभा चुनाव में मैं खड़ा हो जाऊं, तो क्या प्रधानमंत्री बन जाऊंगा? मेरे जीवन की बस एक ही तमन्ना है कि किसी तरह प्रधानमंत्री बन जाऊं। भले ही उसके लिए कितना पैसा खर्च करना पड़े। किसी को खरीदना-बेचना पड़े, निबटना-निबटाना पड़े, कोई चिंता नहीं है। बस..किसी तरह प्रधानमंत्री पद का जुगाड़ लग जाए।’ मैंने चाय का खाली कप डस्टबिन में फेंकते हुए कहा, ‘आप चिंता न करें। राजनीति में ऐसे ही लोग आते हैं। चोर-लुचक्के, बटमार, हत्यारे, बलात्कारी, छिछोरे...इनसे तो पूरी की पूरी भारतीय राजनीतिक किसी बंद कमरे में रखे कीटनाशक ‘गमकसीन’ पाउडर (रासायनिक नाम नहीं मालूम) की तरह मह-मह कर महक रही है। संविधान ने सबको चुनाव लड़ने, मंत्री-संत्री, विधायक-सांसद बनने की छूट दी है। अब यह आपकी काबिलियत है कि आप जनता से वोट कैसे हासिल करते हैं, डरा कर, धमकाकर, पुचकार कर, नोट-पानी देकर या किसी और तरीके से। अब अगर आपका कोई खेल बिगाड़ सकता है, तो ‘नोटा’ (नॉन आफ दी एबव) वाला बटन। इस ससुरा बटन न हुआ, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र हो गया। खच्च..से गला काट देगा आप जैसे लोगों का। वैसे तो हमारे देश के राजनीतिक गलियारे दागियों से हमेशा आबाद रहे हैं। आप क्या...आपके बाप तक देश और प्रदेश की सत्ता हथिया चुके हैं।’ मैंने देखा कि बाप कहने पर उसकी भौंहें तनने लगी थीं। सो, मैंने व्याख्या करते हुए कहा, ‘आपके बाप से मेरा मतलब है कि अपराध की दुनिया में आपसे चार जूता आगे रहने वाले लोग तक सत्ता हासिल करके मौज मार चुके हैं। इधर जब से माननीय अदालत दागियों को लेकर सख्त हुई है, तब से थोड़ा दिक्कत पैदा होने लगी है। जब तक आपको सजा नहीं सुनाई जाती और आप जेल में नहीं हैं, तब तक तो चांस कहीं गया नहीं है।’मेरी बात सुनते ही उस आदमी ने कहा, ‘बस..बस..आपकी बात मेरी समझ में आ गई। जनता को भरमाने, डराने-धमकाने का जिम्मा मेरा रहा। वैसे अब तक अपने आश्रम में मैं अपने भक्तों को भरमाता ही तो रहा हूं। मेरा इतना प्रभाव है कि लोग सौ-पांच सौ करोड़ रुपये पानी की तरह बहाने को तैयार हैं। बस, उन्हें यह लगना चाहिए कि मेरी पार्टी बहुमत में आ सकती है और मैं प्रधानमंत्री बन सकता हूं। इसके बाद तो वे जितना खर्च करेंगे, उससे पचास गुना ज्यादा वे कमा ही लेंगे।’ इतना कहकर वह आदमी उठा, जेब से उसने रिवाल्वर निकाला और मुझे गोली मारते हुए कहा, ‘सॉरी दोस्त! मैं पकड़ा इसलिए नहीं गया, क्योंकि सुबूत नहीं छोड़ता।’ उसके और अपने हिसाब से तो मैं मर ही गया था, लेकिन चाय वाले ने अस्पताल पहुंचाकर मुझे बचा लिया।
मैं आफिस में बैठा कतरब्योंत कर रहा था कि एक आदमी मेरे पास आया और बोला, ‘भाई जी! मुझे आपसे कुछ सलाह करनी है। सुना है कि आप सलाह बहुत अच्छी देते हैं। आपकी जो भी फीस होगी, मैं भुगतने को तैयार हूं।’ मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और धीरे से उसके कान में फुसफुसाया, ‘आप आफिस के बाहर चाय की दुकान पर पहुंचिए, मैं आता हूं।’ थोड़ी देर बाद मैंने चाय की दुकान पर पहुंचकर उससे कहा, ‘हां..अब बताइए, आपकी क्या प्रॉब्लम है?’ उस आदमी ने चाय सुड़कते हुए कहा, ‘भाई जी..मैं पार्टी बनाना चाहता हूं। राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी..क्या मैं बना सकता हूं?’ मैंने भी चाय जोर से सुड़कते हुए कहा, ‘हिंदुस्तान में चोरों को पार्टी बनाने का हक है, छिछोरों को है, बटमारों और लुटेरों को भी यह हक हासिल है। दागियों को है, बेदागियों को है, तो फिर आपको यह हक क्यों नहीं है। आप तो भले मानुष दिखते हैं। होंगे भी, ऐसा कम से कम मुझे तो विश्वास है। ऐसे में भला आपको कौन रोक सकता है। आप शौक से बनाएं पार्टी, मुझसे भी जो मदद हो सकेगी, मैं करूंगा।’ उस आदमी ने मेरी ओर गौर से देखते हुए कहा, ‘आप शायद मुझे पहचान नहीं पाए हैं। मुझ पर एक नाबालिग से बलात्कार करने का आरोप है। पांच राज्यों की पुलिस मुझे खोज रही है। अब बताइए, मैं राजनीतिक पार्टी बना सकता हूं कि नहीं?’ उसके यह कहते ही इस सर्दी में भी मेरे माथे पर पसीना चुहचुहा आया। मैंने कांपती आवाज में कहा, ‘हां..अब भी आप पार्टी बना सकते हैं, चुनाव लड़ सकते हैं। आप एक काम कीजिए, पहले अदालत में आत्मसमर्पण कीजिए। फिर दो-चार महीने बाद जमानत करवाइए और राजनीतिक पार्टी बनाइए। इसमें कोई रोक नहीं है।’ उस आदमी ने अपने चेहरे को मफलर से ढकते हुए कहा, ‘आपको बता दूं, मेरे पास अकूत संपत्ति है। ज्यादातर कमाया हुआ नहीं, कब्जाया हुआ है। नकली नोटों को छापने का बड़ा लंबा चौड़ा कारखाना है। अफीम से लेकर नशीले ड्रग्स तक बेचने का कारोबार मेरे संरक्षण में चलता है। देशी-विदेशी हथियारों की सप्लाई का उत्तर भारत का टेंडर मेरे ही पास है। सौ-पचास अधिकारी मेरे से हफ्ता पाते हैं। दुनिया भर के काले-गोरे धंधों को करने की मास्टर डिग्री मेरे ही विश्वविद्यालय से दी जाती है। दाउद इब्राहिम और छोटा राजन से लेकर ओसामा बिन लादेन अपनी ही यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट रह चुका है। अपनी फैमिली बैकग्राउंड के बारे में बताऊं, तो आप ताज्जुब रह जाएंगे। मेरे बापू ने तो मेरे से भी महान हैं। उनके बारे में अगर बताने लगूं, तो पूरा पोथन्ना तैयार हो जाए। फिर कभी फुरसत में मिलूंगा, तो बताऊंगा। बस, यह बताओ कि अगर लोकसभा चुनाव में मैं खड़ा हो जाऊं, तो क्या प्रधानमंत्री बन जाऊंगा? मेरे जीवन की बस एक ही तमन्ना है कि किसी तरह प्रधानमंत्री बन जाऊं। भले ही उसके लिए कितना पैसा खर्च करना पड़े। किसी को खरीदना-बेचना पड़े, निबटना-निबटाना पड़े, कोई चिंता नहीं है। बस..किसी तरह प्रधानमंत्री पद का जुगाड़ लग जाए।’ मैंने चाय का खाली कप डस्टबिन में फेंकते हुए कहा, ‘आप चिंता न करें। राजनीति में ऐसे ही लोग आते हैं। चोर-लुचक्के, बटमार, हत्यारे, बलात्कारी, छिछोरे...इनसे तो पूरी की पूरी भारतीय राजनीतिक किसी बंद कमरे में रखे कीटनाशक ‘गमकसीन’ पाउडर (रासायनिक नाम नहीं मालूम) की तरह मह-मह कर महक रही है। संविधान ने सबको चुनाव लड़ने, मंत्री-संत्री, विधायक-सांसद बनने की छूट दी है। अब यह आपकी काबिलियत है कि आप जनता से वोट कैसे हासिल करते हैं, डरा कर, धमकाकर, पुचकार कर, नोट-पानी देकर या किसी और तरीके से। अब अगर आपका कोई खेल बिगाड़ सकता है, तो ‘नोटा’ (नॉन आफ दी एबव) वाला बटन। इस ससुरा बटन न हुआ, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र हो गया। खच्च..से गला काट देगा आप जैसे लोगों का। वैसे तो हमारे देश के राजनीतिक गलियारे दागियों से हमेशा आबाद रहे हैं। आप क्या...आपके बाप तक देश और प्रदेश की सत्ता हथिया चुके हैं।’ मैंने देखा कि बाप कहने पर उसकी भौंहें तनने लगी थीं। सो, मैंने व्याख्या करते हुए कहा, ‘आपके बाप से मेरा मतलब है कि अपराध की दुनिया में आपसे चार जूता आगे रहने वाले लोग तक सत्ता हासिल करके मौज मार चुके हैं। इधर जब से माननीय अदालत दागियों को लेकर सख्त हुई है, तब से थोड़ा दिक्कत पैदा होने लगी है। जब तक आपको सजा नहीं सुनाई जाती और आप जेल में नहीं हैं, तब तक तो चांस कहीं गया नहीं है।’मेरी बात सुनते ही उस आदमी ने कहा, ‘बस..बस..आपकी बात मेरी समझ में आ गई। जनता को भरमाने, डराने-धमकाने का जिम्मा मेरा रहा। वैसे अब तक अपने आश्रम में मैं अपने भक्तों को भरमाता ही तो रहा हूं। मेरा इतना प्रभाव है कि लोग सौ-पांच सौ करोड़ रुपये पानी की तरह बहाने को तैयार हैं। बस, उन्हें यह लगना चाहिए कि मेरी पार्टी बहुमत में आ सकती है और मैं प्रधानमंत्री बन सकता हूं। इसके बाद तो वे जितना खर्च करेंगे, उससे पचास गुना ज्यादा वे कमा ही लेंगे।’ इतना कहकर वह आदमी उठा, जेब से उसने रिवाल्वर निकाला और मुझे गोली मारते हुए कहा, ‘सॉरी दोस्त! मैं पकड़ा इसलिए नहीं गया, क्योंकि सुबूत नहीं छोड़ता।’ उसके और अपने हिसाब से तो मैं मर ही गया था, लेकिन चाय वाले ने अस्पताल पहुंचाकर मुझे बचा लिया।
bahut sundar !! share karne ki aagyaa chahta hoon !! saabhaar !!
ReplyDelete" आकर्षक - समाचार ,लुभावने समाचार " आप भी पढ़िए और मित्रों को भी पढ़ाइये .....!!!
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पीताम्बर दत्त शर्मा,
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जिला-श्री गंगानगर।
Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)