आखिर कब तक पिता के नाम की हुंडी भुनाएंगे अजित सिंह?
-अशोक मिश्रइसे कहते हैं ‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे’ और इस कहावत को किसानों के मसीहा कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह के पुत्र और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह पूरी तरह से चरितार्थ कर रहे हैं। राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजित सिंह दिल्ली स्थित उस सरकारी बंगले को खाली करने से इनकार कर रहे हैं, जो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दौरान उन्हें रहने को दिया गया था। अजित सिंह और उनके समर्थकों की मांग है कि 12 तुगलक रोड जो सरकारी बंगला उनसे खाली करने को कहा जा रहा है, वहां चौधरी चरण सिंह स्मारक बनना चाहिए। इस बंगले को चौधरी चरण सिंह स्मारक बनाने की बेतुकी मांग के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को जब देश के प्रधानमंत्री बने थे, तो तब भी उन्होंने यह बंगला खाली नहीं किया था। इस बंगले के साथ उनका (अजित सिंह) का भावनात्मक रिश्ता है।
चौधरी अजित सिंह और उनके समर्थक इस भावनात्मक रिश्ते की आड़ में सरकारी बंगला खाली नहीं करना चाहते हैं, यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ही नहीं, देश की जनता भी समझ रही है। अगर चौधरी अजित सिंह को उस बंगले से इतना ही लगाव था, तो उन्होंने उस समय यह बात क्यों नहीं उठाई जब वे पूर्ववर्ती केंद्र सरकार में मंत्री थे। पिछले दस सालों में अपने पिता का स्मारक बनाने का ख्याल क्यों नहीं आया? इस बात को मानने से कोई गुरेज नहीं है कि स्व. चौधरी चरण सिंह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए काफी कुछ किया। वे जीवन भर किसानों और मजदूरों की समस्याओं के लिए संघर्ष करते रहे। सन् 1979 में केंद्रीय वित्त मंत्री और उप प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना करके किसानों की वित्तीय मदद करने का एक आधार तैयार किया। इसके बावजूद सच यह है कि चौधरी अजित सिंह जीवन भर अपने पिता स्व. चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत को कंधे पर उठाए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों और किसानों का दोहन करते रहे हैं। यही काम अब उनके सुपुत्र चौधरी जयंत सिंह कर रहे हैं।
चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा यों ही नहीं कहा जाता है। गाजियाबाद जिले की तहसील हापुड़ के एक गांव नूरपुर में 23 दिसंबर 1902 को जन्मे चौधरी चरण सिंह ने बचपन से ही किसानों की गरीबी, उनकी बेकारी, उनका हो रहा शोषण, दोहन और उत्पीड़न देखा था। वे इसके लिए जिम्मेदार कारकों को जानते और समझते भी थे। सन् 1930 को जब मोहनदास करमचंद गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत दांडी मार्च निकालकर नमक बनाकर कानून को तोड़ा, तो गाजियाबाद के निकट से बहने वाली हिंडन नदी के किनारे नमक बनाकर कानून तोड़ने वालों में चौधरी चरण सिंह का नाम सबसे प्रमुख था। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि देश के सर्वांगीण विकास में चौधरी चरण सिंह के कार्यों को कमतर नहीं आंका जा सकता है, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं है कि उनके पुत्र और पौत्र को अराजक हो जाने की इजाजत मिल गई है। अजित सिंह जी! चौधरी चरण सिंह का पुत्र होने की हुंडी को आप कब तक भुनाते रहेंगे? आप अपने पिता की विरासत को भी तो ठीक से नहीं संभाल पाए। कभी इस दल से, तो कभी उस दल से अपने पिता की पार्टी ‘लोकदल’ का विलय कराते रहे, मोह भंग होने पर दोबारा कभी लोकदल अजित, तो कभी राष्ट्रीय लोकदल का निर्माण करते रहे। अजित सिंह कई बार सांसद रहे, कभी जीतकर संसद में पहुंचे, तो भी राज्यसभा के जरिये। लेकिन अजित सिंह ने अपने संसदीय क्षेत्र में जाना और वहां का विकास करना जरूरी नहीं समझा। यदि ऐसा नहीं था, तो फिर पिछले लोकसभा चुनाव में बागपत लोकसभा सीट से उनकी इतनी बुरी तरह पराजय क्यों हुई? 1998 में भी वे भाजपा प्रत्याशी सोमपाल से चुनाव हार चुके थे।
वही अजित सिंह आज चौधरी चरण सिंह के नाम पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जंग का मैदान बना देना चाहते हैं। उनके समर्थकों ने दिल्ली का बिजली-पानी बंद करने की धमकी देने से लेकर मुरादनगर और उसके आस-पास के इलाकों में हंगामा खड़ा कर रखा है। सैकड़ों पुलिस कर्मी और बेकसूर आम नागरिक घायल हो चुके हैं। इसके बावजूद रालोद (राष्ट्रीय लोकदल) के कार्यकर्ता शांत नहीं हुए हैं, वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सड़कों पर आतंक मचाते हुए घूम रहे हैं।
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