-अशोक मिश्र
उन्होंने अपनी साड़ी की चुन्नट को एक बार फिर ठीक किया। बायां हाथ उठाकर बालों को संवारा। विभागीय अधिकारियों ने मुरीद हो जाने वाली नजरों से उन्हें देखा। होते भी क्यों न! वह उनके विभाग की मंत्री जो थीं। मंत्री महोदया सचिव के कान में फुसफुसाईं, यह झाड़ू हाइजेनिक तो है न! इसे छूने में कोई परेशानी तो नहीं होगी? यू नो...मैंने कभी झाड़ू नहीं लगाया, तो जरा कैमरे के सामने संभाल लेना। कहीं ऐसा न हो कि सब कुछ गड़बड़ हो जाए। मीडिया में आने पर प्रधानमंत्री तो पूरी क्लास ही ले लेंगे।
सचिव ने मुस्कराते हुए कहा, अरे नहीं मैडम...कुछ नहीं होगा। मैंने सब कुछ मैनेज कर लिया है। बस आपको झाड़ू पकड़कर दो-तीन बार आगे पीछे करना है, फोटो शूट हो जाए बस। कौन-सा आपको पूरा स्कूल बुहारना है! यह तो एक रस्म है, ताकि देश के लोग भी आपसे झाड़ू लगाने की प्रेरणा लेकर अपने आसपास सफाई रखें।
मंत्री महोदया को सचिव की बात से थोड़ी राहत मिली। उन्होंने गर्दन, चेहरे और माथे पर हलके से हाथ फेरकर देखा कि कहीं मेकअप बिगड़ तो नहीं गया है। उन्होंने एक बार फिर सचिव से पूछा, बहुत धूल तो नहीं उड़ेगी? मुझे डस्ट से एलर्जी है। चुनाव प्रचार के लिए भी जाती थी, तो इस बात का ख्याल रखती थी कि धूल वाली जगहों पर जाने से परहेज करूं। लोग इतनी गंदगी में रह कैसे लेते हैं, यह मेरी समझ में आज तक नहीं आया।
सचिव ने उनकी बात सुनकर शिष्टता से बत्तीसी दिखा दी, मैडम...भारत है ही गंदे लोगों का देश। चांद और मंगल की बात तो करेंगे, पर सफाई नहीं करेंगे। तभी तो अपने प्रधानमंत्री ने पूरे भारत को स्वच्छ बनाने की दिशा में पहल की है। इस स्वच्छ भारत अभियान में आपका भी बहुत बड़ा रोल है।
मंत्री महोदया अपनी प्रशंसा से खिल गईं, अब देर किस बात की है? मुझे कहीं और भी जाना है। एक अधिकारी ने चापलूसी भरे स्वर में कहा, बस मीडिया वालों का इंतजार है। और वह लीजिए, आ गए मीडिया वाले भी। और फिर मंत्री महोदया स्वच्छ भारत अभियान का शुभारंभ करने में तल्लीन हो गईं।
(29 सितम्बर 2014 को दैनिक अमर उजाला में प्रकाशित)
आपकी लिखी रचना मंगलवार 30 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सटीक
ReplyDeleteरस्म निभाने और चमचागिरी में हमसे बढ़कर कोई नहीं दुनिया में ...
waah.. bahut sateek
ReplyDeleteha ha hahaha very nice sir
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