अशोक मिश्र
पहले कुछ भी रही हो, लेकिन अब 'हमारा भारत महान' की तर्ज पर 'हमारी पुलिस महान' हो गई है। अब तो देशवासी पुलिसिया शराफत और कर्तव्यनिष्ठा की कसमें तक खाते हैं। दूसरे विभागों में कार्यरत सरकारी कर्मचारियों को नसीहत दी जा रही है कि पुलिस वालों की तरह विनम्र और कर्तव्य पारायण होना सीखो। अब पुलिस वालों की कर्तव्य परायणता देखिए। अधिकारियों ने कहा, जंतर-मंतर पर जितने भी भूतपूर्व सैनिक धरने पर बैठे हैं, उनको तितर-बितर कर दो। आदेश भर की देर थी, पुलिस वाले जुट गए अपने कार्य को पूरी निष्ठा से अंजाम देने में। किसी का सिर फोड़ा, तो किसी की टांग तोड़ी, लेकिन मजाल है कि कोई भूतपूर्व सैनिक उसके सामने टिक पाया हो। अपना काम बेहद ईमानदारी से करके पुलिस लौट गई।
कुछ दिन बाद पुलिस अधिकारियों के मन में अपराध बोध पैदा हुआ कि भूतपूर्व हों या वर्तमान, ये सैनिक हैं तो हमारे ही भाई-बंधु। हमारे ही देश के नागरिक। इनकी ही बदौलत तो हमारी सीमाएं सुरक्षित रही हैं। बस, फिर क्या था? पहुंच गए पुलिस अधिकारी जंतर-मंतर। पूर्व सैनिकों से माफी मांगने। आखिर पुलिस वाले भी तो इंसान ही होते हैं। उनमें भी तो भावनाएं होती हैं। वे किसी इंसान की जब हड्डी पसली एक कर देते हैं, तो उन्हें कोई अच्छा थोड़े न लगता है। उत्तर प्रदेश में जब कांग्रेस के नेता बब्बर साहब की दो-चार पसलियां चटकाई, तो उन्हें सहारा देकर पुलिस वाले ही तो अस्पताल ले गए। अब इससे ज्यादा महानता का क्या सुबूत चाहिए।
बलात्कार चाहे थाने में हो या थाने के बाहर। हमारे देश की पुलिस हमेशा बाप-बड़े भाई की भूमिका में रही है। पीडि़ता को थाने में बिठा लिया, आरोपी को पकड़ मंगाया, पीडि़ता के सामने आरोपी को तीन-चार थप्पड़ लगाए और पीडि़ता से कहा, 'लो जी! सजा दे दी। अब आप भी माफ कर दो। बच्चे हैं गलती हो गई।' चोर-पाकेटमारों को पकड़ा और जिसका सामान चोरी या छीना गया था, उसे उसका सामान वापस दिला दिया, हो गया न्याय। अब इससे ज्यादा...क्या बच्चे की जान लोगे? ऐसा किसी और देश में होता हो, तो बताओ। इतनी महान किसी दूसरे देश की पुलिस हो, तो आलोचना करो, वरना अब अपनी चोंच बंद रखो।
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