अशोक मिश्र
उन्नीसवीं सदी में बंगाल में पैदा हुए ईश्वरचंद विद्यासागर नवजागरण काल के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। वैसे तो इनका नाम ईश्वर चंद बन्द्योपाध्याय था, लेकिन संस्कृत भाषा और दर्शन में पांडित्य हासिल कर लेने की वजह से इन्हें विद्यासागर की उपाधि प्रदान की गई थी। नारी शिक्षा और विधवा विवाह के घोर समर्थक विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर 1820 में बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गांव में हुआ था।
विद्यासागर ने जीवन भर बाल विवाह के विरोध किया जिससे शुरुआत में बंगाली समाज ने उनका विरोध भी किया, लेकिन बाद में लोगों की समझ में बाल विवाह के दुष्परिणाम आ गए। एक बार की बात है। वह अपने एक साथी विद्यारत्न के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक मजदूर सड़क के किनारे पड़ा कराह रहा है। उसे हैजा हो गया था।
सड़क पर आते जाते लोग उसे पल भर देखते और आगे बढ़ जाते। मजदूर को देखते ही विद्यासागर ने कहा कि आज हमारा सौभाग्य है। उनके मित्र विद्यारत्न ने पूछा-कैसे? तब विद्यासागर ने उस मजदूर की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस व्यक्ति को हमारी मदद की जरूरत है। हम इसकी मदद करने लायक हैं, यह हमारा सौभाग्य ही तो है। इसके बाद विद्यासागर ने उस मजदूर को अपनी पीठ पर लादा। साथ में ने उस मजदूर की गठरी सिर पर रख ली और विद्यासागर के साथ हो लिए।
दोनों मित्र एक ठिकाने पर पहुंचे। विद्यारत्न पास में रहने वाले एक वैद्य को बुलाने चले गए। इस बीच विद्यासागर ने उस मजदूर का शरीर पोंछा, उसे साफ सुथरे कपड़े पहनाए। वैद्य ने आकर उसे दवा दी। दोनों मित्रों ने तीन-चार दिन तक उस बीमार मजदूर की सेवा की। जब वह ठीक हो गया, तो विद्यासागर ने कुछ पैसे देकर उसे विदा कर दिया। मजदूर दोनों का आभार व्यक्त करके चला गया। आसपास रहने वालों ने विद्यासागर के इस कृत्य की सराहना की।
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