Wednesday, July 2, 2025

मेलों-उत्सवों में जनभागीदारी बढ़ाने के लिए सौ करोड़ रुपये का प्रावधान


अशोक मिश्र

हाट और मेले भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पहचान रहे हैं। देश में सदियों से हाट-मेले लगते आए हैं। इन हाट-मेलों में जहां लोगों का मनोरंजन होता था, वहीं लोग अपनी जरूरत की वस्तुएं खरीदते थे। वैसे तो मेले किसी तीज-त्यौहार पर लगते थे। वहीं हाट एक किस्म का लगने वाला बाजार हुआ करता था। प्राचीनकाल में हमारे ज्यादातर तीज-त्यौहार खेती-किसानी से ही जुड़े होते थे। इस वजह से किसान और अन्य लोग अपनी जरूरत की वस्तुएं खरीद लेते थे। किसान अपनी उपज हाट-मेलों में बेचकर अपनी मेहनत को नकदी में बदल लेता था। यह सिलसिला आधुनिक बाजार के विकसित होने से पहले तक चलता रहा। 

मॉल और चमकती-दमकती दुकानों का दौर शुरू होने पर हाट-मेलों की चमक फीकी पड़ती गई। नतीजा यह हुआ कि अब देश के गांवों में भी लगने वाले साप्ताहिक बाजार भी खत्म होते जा रहे हैं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर हरियाणा सरकार ने सूरजकुंड मेला दशहरा और दीपावली के बीच एक बार फिर आयोजित करने का फैसला किया है। सीएम नायब सैनी ने प्रदेश में तीज-त्यौहारों, मेलों और उत्सवों में जनभागीदारी बढ़ाने के लिए सौ करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। 

उन्होंने पर्यटन एवं विरासत विभाग, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के साथ समन्वय करके ऐसे सभी मेलों का आयोजन करने का निर्देश दिया है ताकि प्रदेश के सभी वर्गों के लोग इन मेलों में आकर सामाजिक सौहार्द को मजबूत कर सकें। दरअसल, सूरजकुंड मेले के आयोजन के पीछे प्रदेश सरकार की मंशा यह है कि एक तो इसी बहाने देश और प्रदेश के लोग एक दूसरे के साथ मिलकर उत्साहपूर्ण माहौल का निर्माण करते हैं। वहीं, देश और विदेश के हस्तशिल्प के कारीगर अपने उत्पादों को यहां बेचकर कमाई करते हैं। 

देश के विभिन्न राज्यों के हस्तशिल्प कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। इसका फायदा यह होता है कि देश की विभिन्न संस्कृतियों और रीति रिवाजों से मेले में आने वाले लोगों का परिचय होता है। वह अपनी संस्कृति और परंपराओं का भी प्रदर्शन करते हैं जिससे दूसरे राज्यों के लोग भी परिचित होते हैं। यह अनेकता में एकता का परिचय देने वाला एक बहुत बड़ा आयोजन बन जाता है। वैसे सूरजकुंड मेले का इतिहास 1987 से शुरू होता है, जब हरियाणा पर्यटन विभाग ने भारतीय हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इस मेले की शुरुआत की थी। 

यह मेला हर साल फरवरी में फरीदाबाद में आयोजित किया जाता है। इसका नाम दसवीं शताब्दी में तोमर वंश के राजा सूरजपाल द्वारा बनवाए गए जलाशय के नाम पर रखा गया है। अब इस मेले का आयोजन साल में दो बार होगा।

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