Wednesday, July 16, 2025

मौन रहकर साधना का अभ्यास कर रहा हूं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

बुद्ध ने अपने जीवन के अंतिम समय तक लोगों को उपदेश देने का प्रयास किया। महात्मा बुद्ध जब भी प्रवचन देते या अपने शिष्यों को कोई शिक्षा देते थे, तो वह उदाहरण आसपास घटने वाली घटना से ही देते थे ताकि लोगों को बात अच्छी तरह से समझ में आ जाए। उनके बहुत सारे शिष्य थे। 

वह जहां भी ठहरते, लोग उनका सान्निध्य हासिल करने के लिए हाजिर हो जाते। एक बार की बात है। वह अपने शिष्यों के साथ कहीं पर ठहरे हुए थे। उनमें से एक शिष्य जब तक  बुद्ध समझाते, वह समझता और फिर एकांत में जाकर बैठ जाता। वह किसी से बातचीत भी नहीं करता था। जितना पूछा जाता, उतना बोलकर वह चुप्पी साध लेता था। महात्मा बुद्ध के दूसरे शिष्यों को यह बात बड़ी अटपटी लगती। 

एक दिन उन्होंने इस बात की शिकायत महात्मा बुद्ध से की। तथागत ने भी इस बात पर ध्यान दिया, तो उन्हें भी उस शिष्य का आचरण अजीब सा प्रतीत हुआ। एक दिन उन्होंने उस शिष्य को बुलाया और कहा कि तुम्हारी शिकायत दूसरे शिष्यों ने की है। तुम उनके साथ न तो बातचीत करते हो, न ही किसी प्रकार का संबंध रखते हो। इसका कारण क्या है? तब उस शिष्य ने कहा कि जब तक मुझे आपका साथ मिला हुआ है, तब तक मैं मौन और साधना का महत्व सीख रहा हूं। आपके जाने के बाद मुझे कौन समझाएगा। इसलिए मैं मौन रहकर साधना करने का अभ्यास करता रहता हूं। 

महात्मा बुद्ध उसकी बात समझ गए। उन्होंने दूसरे शिष्यों को बुलाकर सारी बात बताई और कहा कि जब तक सभी बातों की जानकारी न हो, तब तक किसी की शिकायत नहीं करनी चाहिए। वह शिष्य मौन रहकर साधना करने का अभ्यास कर रहा है। यह सुनकर सभी शिष्य लज्जित हो गए और उससे क्षमा मांग ली।

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