Sunday, July 6, 2025

दुनिया के सारे मूर्ख मेरे गुरु हैं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अरस्तू को यूनान का सबसे महान दार्शनिक माना जाता है। उनका जन्म ईसा पूर्व  384 में हुआ था। अरस्तू के गुरु प्लेटो थे। यह प्लेटो ही महान दार्शनिक सुकरात के शिष्य थे। दुनिया के पंद्रह से बीस प्रतिशत भाग को जीत लेने वाला सिकंदर अरस्तू का शिष्य था। अरस्तू की ख्याति यूनान में ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों में फैली हुई थी। उनसे मुलाकात करने दूर-दूर से लोग आते थे। 

एक बार की बात है। एक विद्वान उनसे मिलने आया। उसकी बड़ी इच्छा थी कि वह सुकरात के गुरु से मिले। उनसे कुछ प्रेरणा ले। विद्वान ने मुलाकात के बाद अरस्तू से कहा कि मैं आपके गुरु से मिलना चाहता हूं। उनके कुछ वार्तालाप करना चाहता हूं। अरस्तू ने कहा कि मेरे गुरु से कोई नहीं मिल सकता है। उस विद्वान को लगा कि शायद अरस्तू के गुरु इस दुनिया में नहीं रहे। इस वजह से यह ऐसा कह रहे हैं। 

उस विद्वान ने कहा कि क्या वे अब इस दुनिया में नहीं रहे? अरस्तू ने जवाब दिया कि नहीं, उनकी मौत नहीं हो सकती है। लेकिन मेरे गुरु से मिलना संभव नहीं है। उस विद्वान ने कहा कि जब आपके गुरु की मौत नहीं हुई है, तो उनसे मिलने में क्या बाधा है? अरस्तू ने कहा कि इस दुनिया में जितने भी मूर्ख लोग हैं, वह मेरे गुरु हैं। मैं अक्सर यह सोचा करता हूं कि किन अवगुणों या बातों के चलते लोग किसी व्यक्ति को मूर्ख समझते हैं। मैं इन गुणों और बातों को अपने में देखने की कोशिश करता हूं। ऐसा करने से मैं अपने आपको मूर्ख कहलाने से बचा लेता हूं। इस तरह मैं अपना गुरु दुनिया के सभी मूर्खों को मानता हूं। 

अरस्तू की यह बात सुनकर उस व्यक्ति का अभिमान चूर-चूर हो गया क्योंकि जब वह अरस्तू से मिलने आया था, तो वह अभिमान से भरा हुआ था। वह समझ गया कि अरस्तू उसे क्या समझाना चाहते हैं।

2 comments:

  1. उस व्यक्ति का अभिमान चूर-चूर हो गया
    क्योंकि जब वह अरस्तू से मिलने आया था,
    तो वह अभिमान से भरा हुआ था।
    वह समझ गया कि
    अरस्तू उसे क्या समझाना चाहते हैं।
    आलेख का सार
    आभार
    वंदन

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