Saturday, July 5, 2025

करुणा और दया के सागर थे स्वामी महावीर

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर थे। उनका जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तेरस को हुआ था। वैशाली गणतंत्र में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला इनके माता-पिता थे। कहा जाता है कि महावीर स्वामी का विवाह यशोदा नामक कन्या से हुआ था। इनकी एक पुत्री प्रियदर्शिनी थी जिसका विवाह राजकुमार जमाली से हुआ था। 

स्वामी महावीर ने 12 साल तक तपस्या की थी। जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार, केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद, स्वामी महावीर ने उपदेश दिया। उनके 11 गणधर (मुख्य शिष्य) थे जिनमें प्रथम इंद्रभूति थे। उन्होंने पांच व्रत सत्य, अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य बताए थे जो आज जैन धर्म का प्रमुख आधार है। 

एक बार की बात है। महावीर स्वामी एक वृक्ष के नीचे साधनारत थे। उनके चेहरे पर तेज था। मुखमुद्रा एकदम शांत थी। उधर कुछ उदण्ड लड़कों का समूह गुजरा। उन्होंने स्वामी जी को साधनारत देखा, तो उन्हें परिहास सूझा। एक युवक ने स्वामी जी की ओर धूल उड़ाई। 

दूसरे ने नुकीली लकड़ी उनके शरीर में चुभोई। तीसरे लड़के ने तो शरारत की हद ही पार कर दी। उसने स्वामी महावीर के ऊप थूक दिया। इसके बाद भी स्वामी महावीर की मुखमुद्रा में तनिक भी बदलाव नहीं आया। उनके चेहरे पर आत्मसंतोष और शांति पहले की ही तरह विद्यमान रही। महावीर की यह दशा देखकर युवक आपस में बातचीत करने लगे। 

एक ने कहा कि यह कैसा आदमी है? हमारे इतना कुछ करने पर भी यह शांत बैठा हुआ है। अब युवकों को अपने ऊपर पश्चाताप होने लगा था। उन्हें महसूस हुआ कि उन्होंने जो कुछ भी किया था, वह अच्छा नहीं था। वह युवक स्वामी महावीर के चरणों में गिर पड़े और क्षमा मांगने लगे। युवकों यह दशा देखकर स्वामी जी ने नेत्र खोले। अब भी उनकी मुखमुद्रा में कोई बदलाव नहीं आया था। स्वामी जी ने उन युवकों को क्षमा कर दिया।

No comments:

Post a Comment