अशोक मिश्र
महान गणितज्ञ और दार्शनिक पाइथागोरस कहा करते थे कि संख्या ही विचारों और रूपों का शासक है और देवताओं और राक्षसों का कारण है। पाइथागोरस को प्रमेय के लिए याद किया जाता है। पाइथागोरस का जन्म ग्रीक में ईसा पूर्व 580 से 570 के बीच हुआ था। वैसे तो पाइथागोरस के बारे में विस्तार से और क्रमबद्ध कुछ भी नहीं मिलता है। कहते हैं कि पाइथागोरस के विचारों का सुकरात के शिष्य प्लेटो पर बहुत प्रभाव पड़ा था।
यही वजह थी कि प्लेटो कुछ हद तक दर्शन में तार्किकता की बात करते थे। पाइथागोरस के बारे में एक कथा कही जाती है। कहा जाता है कि वह बचपन में लकड़हारे का काम करते थे। उस समय तक वह शायद अनाथ हो चुके थे। वह जंगल में लकड़ियां काटते थे और उसे ले जाकर बाजार में बेच दिया करते थे। इससे जो आय होती थी, उससे वह अपना काम चलाते थे।
एक दिन जब वह लकड़ियों का गट्ठर सिर पर रखे बाजार की ओर जा रहे थे, तब उन्हें एक व्यक्ति मिला। उस व्यक्ति ने देखा कि बालक ने लकड़ियों को बहुत ही कलात्मक ढंग से बांध रखी है। उस व्यक्ति ने कहा कि लकड़ियों का यह गट्ठर तुमने बांधा है? पाइथागोरस ने जवाब दिया कि हां. इसे मैंने ही बांधा है। उस आदमी ने कहा कि क्या तुम इसे दोबारा बांध सकते हो?
पाइथागोरस ने कहा हां। इतना कहकर उन्होंने गट्ठर खोला और उसे दोबारा उसी तरह कलात्मक ढंग से बांध दिया। उस आदमी ने कहा कि क्या तुम मेरे साथ चलोगे। मैं तुम्हारे खाने-पीने और पढ़ने का खर्च मैं दूंगा। पाइथागोरस उस आदमी के साथ चल दिए। पढ़-लिखकर पाइथागोरस एक महान गणितज्ञ और दार्शनिक बने। जिस आदमी ने उन्हें इस काबिल बनाया वह महान तत्वज्ञानी डेमोक्रीट्स थे जिनका मानना था कि परमाणु अविभाज्य है। उन्हें परमाणु सिद्धांत के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है।
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