बोधिवृक्ष
अशोक मिश्रसंस्कृत में रचे गए योगवासिष्ठ महारामायण में एक राजा का जिक्र आता है। उस राजा का नाम है शिखिघ्वज। वैसे कुछ लोग योगवासिष्ठ को वाल्मीकि की रचना मानते हैं, लेकिन वास्तव में यह महर्षि वशिष्ठ की रचना है जिसका संग्रह वाल्मीकि ने किया था।
शिखिध्वज मालव के राजा थे और उनका विवाह सौराष्ट्र की राजकुमारी चूडाला से हुआ था जो अपने समय की सबसे सुंदर और विदुषी मानी जाती थी। कहा जाता है कि चूडाला को ब्रह्मज्ञान प्राप्त हो गया था। उसने बाद में अपने पति शिखिध्वज को भी यह ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया था। शिखिध्वज के बारे में एक बड़ा रोचक घटना है।
मिली जानकारी के अनुसार, मिथिला के राजा कुशध्वज ने अपने पुत्र शिखिध्वज को एक संत को सौंपते हुए कहा कि आप इसे पांच साल में शिक्षा देकर एक योग्य राजा बनने के लायक बना दें। वह संत शिखिध्वज को अपने साथ लेकर चला गया। इस बीच राजा कुशध्वज ने अपने पुत्र से मिलने की इच्छा जाहिर की, लेकिन संत ने उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। पांच साल बाद एक दिन वह संत शिखिध्वज को लेकर राजदरबार में हाजिर हुआ। शिखिध्वज ने एक साधारण सा कपड़ा पहन रखा था। उसके सिर पर एक गठरी रखी हुई थी। अपने पुत्र का यह हाल देखकर राजा कुशध्वज हैरान रह गया।
उसने संत से कहा कि मैंने आपको अपना पुत्र भिखारी बनाने के लिए नहीं सौंपा था। संत ने देखा कि उसके शिष्य ने राजा को अभिवादन नहीं किया है, तो उसने एक छड़ी उसके पीठ पर जड़ दी। राजकुमार चीख उठा। संत ने कहा कि जो राजकुमार मान-अपमान, अच्छा-बुरा ऊंच-नीच का ज्ञान नहीं रखेगा, वह अच्छा राजा कैसे बनेगा। यह सुनकर कुशध्वज चुप रह गए। बाद में शिखिध्वज महान राजा हुआ।
काश मोदी जी और अमित शाह जी ब्लॉग पढ़ते |
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