अशोक मिश्र
प्लेटो यूनान के महान दार्शनिकों में गिने जाते हैं। प्लेटो का जन्म ईसा पूर्व 428-27 में एथेंस के एजिना द्वीप हुआ था। प्लेटो के गुरु यूनान के दार्शनिक जगत में उथल-पुथल मचा देने वाले सुकरात थे जिन्हें राज्य द्रोह में जहर का प्याला पीने पर मजबूर करके मृत्यु दंड दिया गया था।
अरस्तू इनका प्रिय शिष्य था जो बाद में सिकंदर का गुरु हुआ था। यूनान में एक अकादमी स्थापित करके प्लेटो ने अपने दर्शन का प्रचार किया जिसे बाद में प्लेटोवाद की संज्ञा दी गई। एक बार की बात है। यूनान में कोई उत्सव मनाया जा रहा था। उस उत्सव में यूनान के सम्राट, उनके दरबारी और अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। उत्सव में शामिल होने के लिए प्लेटो को भी न्यौता दिया गया था क्योंकि प्लेटो यूनान के सबसे प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वहां पहुंचे प्लेटो ने देखा कि जो भी व्यक्ति वहां आता था, वह अपने साथ एक पशु को लेकर आता।
वह देवता की प्रतिमा के सामने उस पशु की बलि चढ़ाता था। बलि देने पर पशु का शरीर काफी देर तक तड़पता रहता था। बलि देने पर वहां मौजूद लोग हर्षनाद करते थे। खिलखिलाकर हसंते थे। यह देखकर प्लेटो काफी दुखी हो गए। जब उनकी बारी आई तो उन्होंने वहां की मिट्टी को उठाया और उसमें पानी मिलाकर मिट्टी को पशु की आकृति प्रदान कर दी।
फिर उसी मिट्टी के पशु को देवता के आगे बलि दे दी। यह देखकर वहां मौजूद पुजारियों को बहुत बुरा लगा। उसने जब प्लेटो से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मिट्टी के देवता को मिट्टी के जानवर की बलि देना ही ठीक है। तब पुजारी ने पूछा, जिन्होंने बलि दी है, वे क्या मूर्ख हैं। प्लेटों ने कहा कि कोई देवता पशुओं की बलि से कैसे प्रसन्न हो सकता है। जानवरों की जान लेने से कोई देवता प्रसन्न नहीं होता।
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