Sunday, July 13, 2025

जीवन का मूल्य आंकने वाले की समझ पर निर्भर

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अगर किसी के जीवन का मोेल तय किया जाए, तो जिस व्यक्ति के जीवन का मूल्य तय किया जा रहा है, उसके साथ नाइंसाफी ही होगी। मूल्य तय करने वाला अपनी समझ के हिसाब से मूल्य तय करेगा, वह कम या ज्यादा हो सकता है। वास्तविक मूल्य तो होगा ही नहीं। एक समय की बात है। महात्मा बुद्ध किसी जगह प्रवचन दे रहे थे। काफी संख्या में लोग तथागत की बात ध्यान से सुन रहे थे। 

प्रवचन खत्म होने के बाद एक व्यक्ति गौतम बुद्ध के पास पहुंचा और बोला, भंते! मैं अपने जीवन का मूल्य जानना चाहता हूं। मेरे जीवन का मूल्य क्या है? यह सुनकर महात्मा बुद्ध ने एक पत्थर निकाल कर उस व्यक्ति को देते हुए कहा कि इसे लेकर बाजार में जाओ और इसका मूल्य पता करो। शर्त यही है कि इस पत्थर को बेचना नहीं है। वह आदमी उस पत्थर को लेकर एक फलवाले के पास गया। 

फलवाले ने कहा कि इसके बदले में मैं तुम्हें एक दर्जन संतरे दे सकता हूं। इसके बाद वह आदमी एक सब्जी विक्रेता के पास पहुंचा। विक्रेता ने पत्थर को घुमा फिरा कर देखा और बोला, इसके बदले में मैं तुम्हें एक बारी आलू दे दूंगा। तुम इस पत्थर को यहीं छोड़ जाओ। वह आदमी उस पत्थर को लेकर सुनार के पास पहुंचा। पत्थर को देखने के बाद सुनार ने कहा कि मैं पचास लाख रुपये तुम्हें दे सकता हूं। 

जब उस व्यक्ति ने पत्थर वापस मांगा, तो सुनार ने उस पत्थर की कीमत दो करोड़ रुपये लगाई। पत्थर लेकर अब वह व्यक्ति जौहरी के पास पहुंचा, तो जौहरी ने देखते हुए कहा कि यह तो अनमोल है। यह तुम्हें कहां से मिला? उस व्यक्ति ने लौटकर सारी बात बुद्ध को बताई, तो उन्होंने कहा कि ठीक इसी तरह हर आदमी अपनी-अपनी समझ के हिसाब से जीवन का मूल्य तय करेगा। जीवन का मूल्य तय करने वाले व्यक्ति की समझ पर निर्भर करता है।

No comments:

Post a Comment