अशोक मिश्र
जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। यही जीवन है। कभी जीवन में खुशियां होती हैं, तो कभी दुख के पहाड़ भी टूटते हैं। कभी धूप होती है, तो कभी छांव। जो व्यक्ति सुख-दुख में समान रूप से व्यवहार करता है, वही जीवन को समझ सकता है। यही जीवन का सार भी है। जैसे उगता और अस्त होता हुआ सूरज एक समान दिखता है, ठीक उसी तरह की जीवन हमें व्यतीत करना चाहिए।
इस बात की शिक्षा एक राजा ने अपने तीन पुत्रों की अच्छी तरह से दी। राजा बहुत प्रजापालक था। वह अपनी प्रजा का विशेष ध्यान रखता था। वह अपने जीवन काल में एक अच्छा राजा साबित हुआ था। लेकिन अब उसकी उम्र ढलती जा रही थी। वह चाहता था कि उसके तीनों पुत्र एक योग्य राजा बनें। वह किसी एक को राज्य की जिम्मेदारी देकर अपने दायित्व से मुक्त हो जाना चाहता था, लेकिन सबकी परीक्ष भी लेना चाहता था।
उसने एक दिन अपने पुत्रों को बुलाया और कहा कि तुम तीनों जाओ और नाशपाती का एक-एक पेड़ लेकर आओ। हमारे राज्य में एक भी नाशपाती का पेड़ नहीं है। लेकिन एक शर्त यह है कि तुम तीनों अलग-अलग समय में जाओगे और जो कुछ भी देखा-सुना होगा, वह एक साथ आकर बताना होगा। तुम तीनों चार-चार महीने के लिए जाओगे।
पहले बड़ा गया, उसके लौटने के बाद मंझला बेटा गया और सबसे अंत में छोटा बेटा गया। उसके लौटने पर तीनों पुत्र राजा के पास गए। बड़ा बेटा बोला कि नाशपाती में न तो कोई पत्ता होता है और न ही फल। तभी मंझला बेटा बोला, पत्ते तो होते हैं, लेकिन फल नहीं होते हैं। तभी छोटे बेटा बोल पड़ा, नाशपाती खूब हराभरा होता है और उस पर फल भी लगते हैं। तब राजा ने कहा कि तुम तीनों को अलग-अलग मौसम में भेजकर यही समझाना था कि जीवन एक समान नहीं होता है।
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