अशोक मिश्र
महर्षि मुद्गल प्राचीन पांचाल (वर्तमान पंजाब) राज्य के राजा भम्यरसवा के पुत्र थे। मुद्गल कुल पांच भाई थे। जब उनके पिता ने बुढ़ापे में अपने पुत्रों को राज्य कार्यभार सौंपा, तो इन पांचों भाइयों के राज्य को ही पांचाल कहा गया। विश्वामित्र के बाद राजर्षि से ब्रह्मर्षि की पदवी पाने वाले मुद्गल की अगली पीढ़ियां ब्राह्मण मानी गई।
कहते हैं कि राजर्षि मुद्गल के वंश में आगे चलकर द्रुपद का जन्म हुआ था जिनकी पुत्री द्रौपदी थी। राजा मुद्गल का विवाह राजा नल और दमयंती की पुत्री नलयनी इंद्रसेना से हुआ था। कहा जाता है कि राजा मुद्गल को बाद में कुष्ठ रोग हो गया था। रोग के दौरान उनकी पत्नी नलयनी इंद्रसेना में खूब सेवा की थी। मुद्गल के बारे में एक बात यह भी प्रसिद्ध है कि वह राजा होते हुए भी गुरुकुल के कुल गुरु भी थे।
एक समय की बात है। उनके आश्रम में दो ही शिष्य थे। दोनों तीक्ष्ण बुद्धि वाले और गुरु के आज्ञाकारी थे। महर्षि मुद्गल भी समान रूप से दोनों को मानते थे। धीरे-धीरे वह समय भी नजदीक आता गया, जब दोनों शिष्य शिक्षा पूरी करने वाले थे। दोनों शिष्यों में धीरे-धीरे अहंकार आता गया। वह दोनों अपने को दूसरे से श्रेष्ठ मानने लगे। इसका नतीजा यह हुआ कि दोनों एक दूसरे से ईर्ष्या रखने लगे। एक दिन ऋषि मुद्गल नदी से स्नान करके लौटे तो देखा कि आश्रम की सफाई नहीं हुई है। उनके दोनों शिष्य सो रहे हैं।
उन्होंने दोनों को जगाया और सफाई न होने का कारण पूछा, तो एक शिष्य ने कहा कि मैं पूर्ण विद्वान हूं। यह छोटा काम मेरे लायक नहीं है। दूसरे शिष्य ने कहा कि मैं भी अपने विषय का विशेषज्ञ हूं, मैं यह काम क्यों करूं? यह सुनकर ऋषि ने झाड़ू उठाया और बोले, यह छोटा काम तो मेरे लायक है। इतना कहकर वह सफाई करने लगे। यह देखकर दोनों शिष्य्य बहुत शर्मिंदा हुए। दोनों ने माफी मांगी और उनका अहंकार धुल गया।
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