Wednesday, July 30, 2025

किसान पुत्रों ने लड़ना छोड़ दिया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

एकता में बल होता है, यह हमारे धर्मग्रंथों और पंचतंत्र की कहानियों में बहुत बार दोहराया जा चुका है। यह सही है कि एकता में बहुत बल होता है, लेकिन इंसान अपनी कमजोरियों और स्वार्थ की वजह से एक नहीं रह पाता है। जब दो समाज, दो देश या दो भाइयों-बहनों के हित टकराते हैं, तो एकता टूट जाती है। व्यक्ति वैसे तो कभी नहीं चाहता है कि वह अपने परिजनों से अलग रहे,लेकिन परिस्थितियां उसे मजबूर कर देती हैं कि वह अपने ही सगे-संबंधियों के खिलाफ हो जाए। 

चलिए, वह कहानी भी कह देते हैं जिसमें कहा गया है कि एकता में बल है। बात बहुत पुरानी है। एक गांव में किसान रहता था। उसके पांच पुत्र थे। सभी पुत्र मेहनती और पिता के प्रति आज्ञाकारी थे, लेकिन वह आपस में लड़ते रहते थे। उनका पिता कई बार उन्हें समझा बुझा चुका था कि आपस में लड़ने से कोई फायदा नहीं है। यदि तुम सब एक साथ मिलजुलकर रहोगे, तो फायदे में रहोगे। 

लेकिन किसान के पांच पुत्र पिता की बात एक कान से सुनते और दूसरे कान से निकाल देते थे। हारकर एक दिन किसान ने अपने पांचों पुत्रों को बुलाया और कहा कि सामने रखा, लकड़ी का गट्ठर तोड़ दो। पांचों पुत्र बलशाली थे, लेकिन वह लकड़ी के गट्ठर को तोड़ नहीं पाए। तब किसान ने अपने पुत्रों से एक-एक लकड़ी को तोड़ने के लिए कहा। सभी पुत्रों ने उन लकड़ियों को बड़ी आसानी से तोड़ दिया।

तब किसान ने अपने पुत्रों को समझाया कि यदि तुम लोग आपस में मिलजुलकर नहीं रहे, तो दूसरे लोग तुम्हारी कमजोरियों का फायदा उठाकर तुम्हें हानि पहुंचा सकते हैं, लेकिन यदि मिलजुलकर रहे, तो कोई भी तुम्हारा बाल बांका नहीं कर पाएगा। यह बात लड़कों की समझ में आ गई और उस दिन से लड़ना छोड़ दिया।

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