बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
अशरफ अली शाह एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनका जन्म 1920 में ओरछा रियासत में हुआ था। उन्होंने झंडा आंदोलन और बेगारी के खिलाफ चलने वाले आंदोलन में भाग लिया था। वह एक संत जैसा जीवन बिताते थे। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की वजह से अंग्रेजी हुकूमत ने उन पर काफी जुल्म ढाए थे। सन 1940 के आसपास चलने वाले क्रांतिकारी आंदोलनों में उन्होंने भाग लिया था।
इसकी वजह से कई बार गिरफ्तार भी किए गए। ज्यादातर समय उन्होंने भूमिगत रहकर क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाया। अशरफ अली शाह को जेल में इतनी अधिक यातनाएँ दी गई कि इनके गले की हड्डी टूट गयी थी एवं आँखों से कम दिखाई देने लगा था। फिर भी ये न तो डरे ना ही कभी झुके। ओरछा रियासत ने भी 1943 में उन्हें निष्कासित कर दिया था। वह हर किसी की मदद करते रहते थे। एक बार की बात है। वह सहारनपुर से लखनऊ जा रहे थे। उनके साथ कुछ सामान था और कई शिष्य भी उनके साथ थे।
संयोग से उस रेलगाड़ी का गार्ड उनको पहचानता था। उसने कहा कि आपको सामान तुलवाकर उसका भाड़ा जमा करने की जरूरत नहीं है। मैं बरेली तक जाऊंगा। इसके बाद जो दूसरा गार्ड आएगा, मैं उससे कह दूंगा तो वह आपके सामान को सुरक्षित लखनऊ तक पहुंचा देगा। जबकि शाह ने अपने शिष्यों से कह रखा था कि वह सामान तुलवाकर उसका भाड़ा जमाकर दें।
गार्ड की बात सुनकर शाह बोले कि मेरी यात्रा बहुत लंबी है। फिलहाल तो यह यात्रा लखनऊ तक है, लेकिन जीवन की यात्रा समाप्त होने के बाद मेरे इन गुनाहों को स्वीकार करने के लिए तुम तो साथ नहीं होगा। इस गुनाह की भरपाई तो मुझे ही करनी होगी। यह सुनकर गार्ड लज्जित हो गया। शाह ने सामान का भाड़ा जमा किया और लखनऊ तक यात्रा की।
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