Saturday, July 26, 2025

बनना है तो गामा नहीं, मालवीय जी जैसा बनो

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

गामा पहलवान को मरे हुए पैंसठ साल हो गए हैं। लेकिन आज भी उनके नाम से लोग परिचित जरूर हैं। ब्रिटिश शासनकाल के दौर में दुनियाभर में अपनी पहलवानी का डंका बजाने वाले गामा का नाम गुलाम मोहम्मद बख्श था। उनका जन्म 22 मई 1878 को अमृतसर में हुआ था। कहा जाता है कि पहलवानी में उन्हें दुनिया का कोई भी पहलवान हरा नहीं पाया था। 

उन्होंने अमेरिका के सबसे प्रसिद्ध पहलवान  विश्व-चैंपियन स्टैनिस्लॉस जैविस्को को हराया था। गामा से हारने से पहले उसे भी कोई नहीं हरा पाया था। एशिया, यूरोप और अमेरिका में अपनी पहलवानी का झंडा गाड़ने वाले गामा पहलवान भारत-पाक विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे। 23 मई 1960 में उनकी लाहौर में मृत्यु हो गई थी।  उनके बारे में एक किस्सा बहुत मशहूर है। 

हुआ यह कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना करने वाले पंडित महामना मदन मोहन मालवीय ने उन्हें सम्मानित करने के लिए एक समारोह का आयोजन किया। इस अवसर पर शहर और दूसरे शहरों के सम्मानित नागरिकों के साथ-साथ विश्वविद्यालय के छात्र उपस्थित थे। मालवीय जी ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि सभी छात्रों को पहलवान गामा की तरह बनना चाहिए। गामा की तरह बलवान और मजबूत बनकर ही तुम देश सेवा कर सकते हो। 

सम्मान समारोह के बाद दो शब्द बोलने के लिए गामा को बुलाया गया। उन्होंने कहा कि मैं मालवीय जी की बात को काटने का साहस तो नहीं कर सकता हूं। लेकिन इतना अनुरोध करता हूं कि यदि बनना ही है तो मालवीय जी जैसा बनो। मैं लोगों को नीचे गिराता हूं, पटकता हूं। यह अच्छी बात नहीं है। वहीं मालवीय जी नीचे गिरे हुए लोगों को ऊपर उठाते हैं। किसी को नीचे से ऊपर उठाना ज्यादा बहादुरी का काम है।

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