बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
ब्रिटिश शासन काल में राजा राम मोहन राय के बाद अगर किसी ने विधवा विवाह, नारी शिक्षा की सबसे ज्यादा वकालत की थी, तो वह थे ईश्वरचंद्र विद्यासागर। वैसे उनका पूरा नाम था ईश्वर चंद्र बन्द्योपाध्याय। बंगाल के संस्कृत कालेज ने उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी थी। बाद में विद्यासागर इसी स्कूल में अध्यापक हो गए थे। विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था।
नौ साल की उम्र में वह अपने पिता ठाकुरदास बन्द्योपाध्याय के साथ मेदिनीपुर से पैदल चलकर कलकत्ता के संस्कृत कालेज पढ़ने पहुंचे थे। जब वह संस्कृत कालेज में अध्यापक थे, तब की एक बड़ी मजेदार घटना है। एक दिन हुआ यह कि उन्हें किसी काम से प्रेसीडेंसी कालेज के प्राचार्य जेम्स केर मिलने जाना हुआ। केर को हिंदुस्तानियों से घृणा थी।
वह हिंदुस्तान के लोगों को अपमानित करने का अवसर खोजा करते थे। जब विद्यासागर उनसे मिलने पहुंचे, तो वह मेज पर अपने जूते सहित पैर फैलाए हुए बैठे थे। उन्होंने विद्यासागर के अभिवादन का जवाब भी नहीं दिया। यह रवैया देखकर विद्यासागर अपमान का घूंट पीकर रह गए। संयोग से कुछ दिनों बाद आचार्य केर किसी काम से विद्यासागर से मिलने संस्कृत कालेज पहुंचे। केर को देखते ही विद्यासागर ने चप्पल पहनकर अपने पैर मेज पर रख लिया। यह देखकर केर बहुत क्रोधित हुए।
उन्होंने इसकी शिकायत शिक्षा परिषद के सचिव से कर दी। सचिव तो विद्यासागर का स्वभाव जानता था, लेकिन केर के सामने ही उसने विद्यासागर से कारण पूछा। विद्यासागर ने कहा कि हम लोग तो यूरोपियंस की नकल करते हैं। हमने सोचा कि अंग्रेज इसी तरह लोगों का स्वागत करते हैं। और फिर उन्होंने पूरी घटना सुनाई। यह सुनकर केर बहुत शर्मिंदा हुए।
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