Friday, July 25, 2025

अरावली में अवैध खनन और अफसरों की लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

अशोक मिश्र

सुप्रीमकोर्ट अरावली की पहाड़ियों में हो रहे अवैध खनन को लेकर काफी सख्त हो गया है। उसने अरावली पहाड़ियों पर हो रहे अवैध खनन के दोषियों को दंडित न करने और अधिकारियों की लापरवाह कार्य प्रणाली को लेकर कड़ी फटकार भी लगाई है। दरअसल, सुप्रीमकोर्ट की यह टिप्पणी बसाई मेवो गांव के लोगों की ओर से दायर की गई याचिका की सुनवाई के दौरान आई। 

नूंह में वन और कृषि भूमि पर ही डेढ़ किमी लंबी एक सड़क बनाई गई है जिससे अरावली पहाड़ियों पर अवैध खनन किए गए पत्थरों को राजस्थान पहुंचाया जा रहा है। सड़क का निर्माण ही अवैध खनन को आसानी से दूसरे राज्यों तक पहुंचाने के लिए किया गया है। इस सड़क का निर्माण अक्टूबर 2024 में शुरू हुआ था और अप्रैल 2025 में पूरा हो गया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीमकोर्ट ने हरियाणा के मुख्य सचिव को चेतावनी दी है कि जल्दी से जल्दी नूंह में सड़क निर्माण के साथ-साथ अवैध खनन के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करके कोर्ट में हलफनामा दायर करे। 

यदि इस मामले में किसी किस्म की लापरवाही बरती जाती है, तो कानून के तहत दंडात्मक कार्रवाई का आदेश दिया जा सकता है। सच तो यह है कि अरावली क्षेत्र में गैर जरूरी गतिविधियों की वजह से वन्य जीवों के प्राकृतिक गलियारों में खलल पड़ता है। जिस क्षेत्र में डेढ़ किमी लंबी सड़क बनाई गई है, वह तेंदुओं के निवास और आवागमन का मार्ग रहा है। अरावली क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। अरावली क्षेत्र में देशी वृक्ष प्रजातियां जैसे खैर, ढोक, रोहिड़ा, ढूडी, खेजड़ी, हिंगोट, कैर तथा कुछ लुप्तप्राय वृक्ष प्रजातियां जैसे गुग्गुल, जाल और सालर पाई जाती हैं। 

अवैध रूप से पेड़ पौधों की कटान करने वाले लकड़ी माफिया की निगाह इन पर रही है। वह इन अमूल्य पेड़-पौधों की तस्करी करके अरावली क्षेत्र को खोखला करते रहे हैं। अरावली क्षेत्र कितना समृद्ध रहा है, इसका पता इस बात से चलता है कि यहां पर कई लुप्तप्राय और संकटग्रस्त वन्यजीव प्रजातियों जैसे दुर्लभ रस्टी स्पॉटेड बिल्ली, तेंदुआ, धारीदार लकड़बग्घा, भारतीय छोटी सिवेट, बंगाल मॉनिटर छिपकली, उल्लू और चील का निवास स्थान भी है। यही नहीं, पुरातत्व विभाग को अरावली क्षेत्र में मानव सभ्यता के विकास के प्रमाण मिले हैं, जो पाषाण युग से लेकर तांबे और लौह युग तक फैले हुए हैं। 

अरावली क्षेत्र में पहले भी मानव जीवन के प्रमाण मिलते रहे हैं। आनंदपुर गांव में भी कुछ साल पहले मानव सभ्यता के प्रमाण मिले थे। अब मांगर और कोट गांव में भी ऐसे प्रमाण मिले हैं। जिससे यह साबित होता है कि लाखों साल पहले मानव सभ्यता यहां निवास करती थी। ऐसे महत्वपूर्ण स्थल को बचाना, हम सबका दायित्व है।

No comments:

Post a Comment