Thursday, July 24, 2025

ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रही चावल की खेती

 अशोक मिश्र

ग्लोबल वार्मिंग और चावल में कोई गहरा संबंध है क्या? जी हां, ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में दस प्रतिशत हिस्सेदारी चावल की खेती की होती है। तो फिर क्या, चावल की खेती बंद कर दी जाए? गेहूं, मक्का, आलू आदि को मुख्य भोजन के रूप में स्वीकार किया जाए? कहना आसान है, लेकिन वास्तविकता कुछ और है। दुनिया की लगभग चार अरब आबादी का मुख्य भोजन चावल ही है। अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) के महानिदेशक डॉ. इवान पिंटो का कहना है कि दुनिया की कुल आबादी में 50 से 56 प्रतिशत हिस्सा, मुख्य भोजन के लिए चावल पर निर्भर है।

दरअसल, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के लोगों के लिए चावल मुख्य भोजन ही नहीं, उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक परंपरा का एक अहम हिस्सा है। हमारे ही देश की एक बहुत बड़ी आबादी का मुख्य भोजन चावल ही है। दक्षिण भारत की अर्थव्यवस्था और खान-पान में चावल और मछली को यदि निकाल दिया जाए, तो भोजन के रूप में कुछ नहीं बचेगा। हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चावल की खपत कम है क्योंकि इन इलाकों में चावल का उत्पादन कम ही होता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा जैसे राज्यों में चावल भोजन का मुख्य आधार है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में तो चावल की फसल तैयार होने के बाद किसान अपनी जरूरत भर का धान रखकर बाकी बचा हुआ अनाज अपनी अन्य जरूरतों की पूर्ति के लिए बेच देता है। तब तक उसकेघर में रखा हुआ गेहूं खर्च हो चुका होता है। ऐसी स्थिति में गांव की एक बहुत बड़ी आबादी दोनों जून चावल ही खाती है। यही हाल गेहूं की फसल तैयार होने पर होता है। गरीब किसान बाजार से गेहूं या चावल खरीदने की स्थिति में नहीं होता है।

तो फिर चावल की खेती में दिक्कत क्या है? दिक्कत है। चावल की खेती में सबसे ज्यादा पानी की खपत होती है। इससे भूगर्भ जल में कमी आती है। कहा जाता है कि एक किलो चावल की पैदावार के लिए तीन हजार से पांच हजार लीटर पानी की खपत होती है। एक कुंटल चावल उगाने के लिए कितना पानी चाहिए, इसका अनुमान लगा सकते हैं। इतने पानी का उपयोग तो एक पखवाड़े तक एक छोटा मोटा मोहल्ला कर सकता है। चावल उत्पादन में अत्यधिक खर्च होने वाला पानी तो एक समस्या है ही, इसके साथ जुड़ी हैं ग्रीन हाउस गैसें।

जब अच्छी उपज लेने के लिए चावल के खेत में पानी भर दिया जाता है, तो इस पानी और चावल के पौधे की जड़ों में जमा होने वाले जीवाणु मीथेन गैस का बहुत बड़ी मात्रा में उत्पादन करते हैं। मीथेन गैस ग्रीन हाउस गैसों में प्रमुख स्थान रखती है जिसकी वजह से ग्लोबल वार्मिंग होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए मीथेन गैस अकेले तीस प्रतिशत की हिस्सेदार है। चावल के खेत में अच्छी फसल लेने के लिए कई बार पानी भरना पड़ता है। इसमें से ज्यादातर पानी तो वाष्प बनकर उड़ जाता है। केवल कुछ ही प्रतिशत पानी का उपयोग फसल उत्पादन में होता है।

तो फिर उपाय क्या है? उपाय यह है कि ऐसी फसलों को चुनाव किया जाए जिसमें पानी की खपत कम होती हो। एक उपाय यह है कि खेत के नीचे छेद वाले पाइप बिछा दिए जाएं और जब जरूरत हो, तो इन पाइपों के माध्यम से सिर्फधान के पौधों की जड़ों तक पानी पहुंचाया जाए। इस विधि से कुछ देशों में धान की खेती भी होने लगी है। स्पेन की चावल कंपनी टिल्डा  के प्रबंध निदेशक जीन-फिलिप लाबोर्दे बताते हैं कि इस विधि से हमने 27 प्रतिशत पानी, 28 प्रतिशत बिजली और 25 प्रतिशत उर्वरक की खपत घटा ली है। इतना ही नहीं, फसल उत्पादन में सात प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई। इसके साथ ही चावल की ऐसी प्रजाति विकसित करनी होगी जिसमें पानी की खपत कम हो।

No comments:

Post a Comment