अशोक मिश्र
सपने देखना और उसे पूरा करना, दोनों अलग-अलग बातें हैं। सपना देखने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन सपना देखने के बाद उस सपने को पूरा करने का प्रयास न करना, बुरा है। पंद्रह अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद एक सपना देखा और देशवासियों को भी दिखाया। वह सपना है सांसद आदर्श ग्राम योजना का। पहले आप अपने देश के गांवों की मन ही मन कल्पना कीजिए। क्या तस्वीर उभरती है? गंदगी से पटी पड़ी नालियां, जगह-जगह लगे गोबर और कूड़े के ढेर, कच्ची और पानी भरी सडक़ें, किसी गांव में बिजली के खंभे तो हैं, लेकिन बिजली नदारद (लगभग पचास फीसदी गांवों में तो बिजली है ही नहीं), नंगे-अधनंगे बच्चे, दूषित वातावरण में रहने को मजबूर लोग। कुछ कमी-बेसी के साथ पूरे देश के अधिकतर गांवों की यही तस्वीर है। अब आप सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत विकसित किए जाने वाले गांवों की भी लगे हाथ कल्पना कर लीजिए। चमचमाती सडक़ें, दूधिया रोशनी से नहाई गलियां, शहरों जैसी बिजली-पानी, स्कूल, अस्पताल और सामुदायिक केंद्रों से युक्त गांव। हर हाथ को रोजगार, मोटरसाइकिलों पर फर्राटा भरते युवा। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों का आदर्श ग्राम कुछ ऐसा ही है। मोदी की आदर्श ग्राम योजना इतनी लुभावनी है कि कांग्रेसी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरुर और असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई जैसे लोगों को भी उसकी प्रशंसा में कसीदे काढऩे पड़ रहे हैं। मोदी की कुछ योजनाओं की प्रशंसा करना, तो शशि थरुर पर भारी भी पड़ चुका है। इसके बावजूद खुद भाजपा सांसदों ने उतनी रुचि नहीं दिखाई, जितनी कि उनसे अपेक्षा की जाती थी।
सांसद आदर्श ग्राम योजना के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के जिस गांव पुंसरी का उल्लेख किया, वह भी कुछ साल पहले देश के आम गांवों जैसा ही था। वह तो भला हो कि पुंसरी गांव के युवा सरपंच हिमांशु पटेल का जिन्होंने गांव की कायापलट कर दी। कहते हैं कि पुंसरी गांव अब शहरों से भी होड़ लेने लगा है सुविधाओं के मामले में। पुंसरी गांव सुविधाओं के लिहाज से काफी आगे है। गुजरात की राजधानी गांधीनगर से मात्र 35 किमी दूर बसे साबरकांठा जिले में बसे गांव पुंसरी में स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए ही बसें नहीं हैं, बल्कि गांव के पशुपालकों के लिए भी पंचायत बस सेवा है। गांव में सीसी रोड, चार रुपये में 20 लीटर मिनरल वाटर प्राप्त करने की सुविधा के साथ-साथ कम्युनिटी रेडियो स्टेशन भी है जिस पर ग्रामीणों को जागरूक करने वाले प्रोग्राम प्रसारित किए जाते हैं। इको फ्रेंडली इलेक्ट्रिसिटी की व्यवस्था की जा रही है। 1200 घरों वाले गांव में 250 घरों को बिजली देने की योजना पर काम हो रहा है। हर घर में शौचालय की व्यवस्था है। सवाल यह है कि जिन गांवों का चुनाव करके सांसद देंगे, क्या उन गांवों को हिमांशु पटेल जैसा सरपंच हासिल है या हो सकेगा? पिछले कई दशकों से सांसदों को सांसद निधि के नाम पर अरबों रुपये दिए गए, इन रुपयों में से कितने प्रतिशत का उपयोग गांवों के विकास में किया गया? क्या सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत चुने गए गांवों की तस्वीर बदलेगी? क्या हर सांसद अपने संसदीय क्षेत्र में 2016 तक एक गांव और 2019 तक तीन गांवों को चुनने और उसका विकास कराने में उतनी दिलचस्पी लेगा, जितने की उम्मीद की जा रही है। ऐसे ही बहुत सारे प्रश्र हैं जिनका जवाब मिलना अभी शेष है।
प्रधानमंत्री अकसर यह बात कहते हैं, व्यापार मेरे खून में है। दरअसल, सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत आगामी कुछ वर्षों तक 2500 गांवों का विकास हो या न हो, लेकिन अब देश के गांवों तक देशी-विदेशी बनियों की पहुंच जरूर हो जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के जरिये कुछ कंपनियों को गांव तक पहुंचने और वहां बाजार तलाशने का इशारा जरूर कर दिया है। कारपोरेट सेक्टर ने प्रधानमंत्री मोदी की सांसद आदर्श ग्राम योजना को जरूर लपक लिया है। देश के सात लाख गांवों में अब हीरो, सुजुकी, होंडा, आईटीसी, हिंदुस्तान लीवर, कोलगेट, पामोलिव, पेप्सी, कोका, डाबर, एलजी, सैमसंग जैसी कंपनियों को बाजार दिखाई देने लगा है। वे अपनी योजनाओं का विस्तार गांव में करने की योजना पर अमल करने को उत्सुक दिखाई देने लगी हैं। अब गांवों में मोटरसाइकिलों, कारों, टीवी सेट्स और सौंदर्य प्रसाधन से जुड़ी वस्तुओं की भरमार होने वाली है। साबुन, टूथपेस्ट, शैंपू जैसे उत्पादों की पहुंच पहले से ही गांवों में हो चुकी थी। गांव के लोग अब नीम, बबूल या गिलोय की दातून नहीं, बल्कि टूथपेस्ट से अपने दांत साफ करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा भूमिका है, उन युवाओं की जो या तो शहर में रह आए हैं या शहरों में जाकर पढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खून सचमुच व्यापार है। उन्होंने अभी हाल ही में कहा है कि सरकार व्यापार नहीं कर सकती है, लेकिन व्यापार में सहायता जरूर कर सकती है। गांवों में बाजार की संभावनाओं की ओर इशारा मोदी ने कर दिया है। अब देखना है कि .ये व्यापारी गांवों की तस्वीर कितनी बदल पाते हैं? या फिर गांवों के लोग इन व्यापारियों को वैसे ही विदा कर देते हैं कि जैसे श्रीकृष्ण का संदेश लेकर गोकुल गए उद्धव को वापस भेजते समय गोपियों ने कहा था कि 'आयो घोष बड़ो व्यापारी। लादि खेप गुन ज्ञान-जोग की ब्रज में आन उतारी।Ó इसकी संभावना इसलिए है क्योंकि गांवों में बाजार तो है, लेकिन गांववालों की क्रयशक्ति कैसे बढ़ेगी, वे इन उत्पादों को खरीदने का पैसा कहां से लाएंगे, इसकी कोई व्यवस्था भी तो सरकार करे।
सपने देखना और उसे पूरा करना, दोनों अलग-अलग बातें हैं। सपना देखने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन सपना देखने के बाद उस सपने को पूरा करने का प्रयास न करना, बुरा है। पंद्रह अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद एक सपना देखा और देशवासियों को भी दिखाया। वह सपना है सांसद आदर्श ग्राम योजना का। पहले आप अपने देश के गांवों की मन ही मन कल्पना कीजिए। क्या तस्वीर उभरती है? गंदगी से पटी पड़ी नालियां, जगह-जगह लगे गोबर और कूड़े के ढेर, कच्ची और पानी भरी सडक़ें, किसी गांव में बिजली के खंभे तो हैं, लेकिन बिजली नदारद (लगभग पचास फीसदी गांवों में तो बिजली है ही नहीं), नंगे-अधनंगे बच्चे, दूषित वातावरण में रहने को मजबूर लोग। कुछ कमी-बेसी के साथ पूरे देश के अधिकतर गांवों की यही तस्वीर है। अब आप सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत विकसित किए जाने वाले गांवों की भी लगे हाथ कल्पना कर लीजिए। चमचमाती सडक़ें, दूधिया रोशनी से नहाई गलियां, शहरों जैसी बिजली-पानी, स्कूल, अस्पताल और सामुदायिक केंद्रों से युक्त गांव। हर हाथ को रोजगार, मोटरसाइकिलों पर फर्राटा भरते युवा। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों का आदर्श ग्राम कुछ ऐसा ही है। मोदी की आदर्श ग्राम योजना इतनी लुभावनी है कि कांग्रेसी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरुर और असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई जैसे लोगों को भी उसकी प्रशंसा में कसीदे काढऩे पड़ रहे हैं। मोदी की कुछ योजनाओं की प्रशंसा करना, तो शशि थरुर पर भारी भी पड़ चुका है। इसके बावजूद खुद भाजपा सांसदों ने उतनी रुचि नहीं दिखाई, जितनी कि उनसे अपेक्षा की जाती थी।
सांसद आदर्श ग्राम योजना के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के जिस गांव पुंसरी का उल्लेख किया, वह भी कुछ साल पहले देश के आम गांवों जैसा ही था। वह तो भला हो कि पुंसरी गांव के युवा सरपंच हिमांशु पटेल का जिन्होंने गांव की कायापलट कर दी। कहते हैं कि पुंसरी गांव अब शहरों से भी होड़ लेने लगा है सुविधाओं के मामले में। पुंसरी गांव सुविधाओं के लिहाज से काफी आगे है। गुजरात की राजधानी गांधीनगर से मात्र 35 किमी दूर बसे साबरकांठा जिले में बसे गांव पुंसरी में स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए ही बसें नहीं हैं, बल्कि गांव के पशुपालकों के लिए भी पंचायत बस सेवा है। गांव में सीसी रोड, चार रुपये में 20 लीटर मिनरल वाटर प्राप्त करने की सुविधा के साथ-साथ कम्युनिटी रेडियो स्टेशन भी है जिस पर ग्रामीणों को जागरूक करने वाले प्रोग्राम प्रसारित किए जाते हैं। इको फ्रेंडली इलेक्ट्रिसिटी की व्यवस्था की जा रही है। 1200 घरों वाले गांव में 250 घरों को बिजली देने की योजना पर काम हो रहा है। हर घर में शौचालय की व्यवस्था है। सवाल यह है कि जिन गांवों का चुनाव करके सांसद देंगे, क्या उन गांवों को हिमांशु पटेल जैसा सरपंच हासिल है या हो सकेगा? पिछले कई दशकों से सांसदों को सांसद निधि के नाम पर अरबों रुपये दिए गए, इन रुपयों में से कितने प्रतिशत का उपयोग गांवों के विकास में किया गया? क्या सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत चुने गए गांवों की तस्वीर बदलेगी? क्या हर सांसद अपने संसदीय क्षेत्र में 2016 तक एक गांव और 2019 तक तीन गांवों को चुनने और उसका विकास कराने में उतनी दिलचस्पी लेगा, जितने की उम्मीद की जा रही है। ऐसे ही बहुत सारे प्रश्र हैं जिनका जवाब मिलना अभी शेष है।
प्रधानमंत्री अकसर यह बात कहते हैं, व्यापार मेरे खून में है। दरअसल, सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत आगामी कुछ वर्षों तक 2500 गांवों का विकास हो या न हो, लेकिन अब देश के गांवों तक देशी-विदेशी बनियों की पहुंच जरूर हो जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के जरिये कुछ कंपनियों को गांव तक पहुंचने और वहां बाजार तलाशने का इशारा जरूर कर दिया है। कारपोरेट सेक्टर ने प्रधानमंत्री मोदी की सांसद आदर्श ग्राम योजना को जरूर लपक लिया है। देश के सात लाख गांवों में अब हीरो, सुजुकी, होंडा, आईटीसी, हिंदुस्तान लीवर, कोलगेट, पामोलिव, पेप्सी, कोका, डाबर, एलजी, सैमसंग जैसी कंपनियों को बाजार दिखाई देने लगा है। वे अपनी योजनाओं का विस्तार गांव में करने की योजना पर अमल करने को उत्सुक दिखाई देने लगी हैं। अब गांवों में मोटरसाइकिलों, कारों, टीवी सेट्स और सौंदर्य प्रसाधन से जुड़ी वस्तुओं की भरमार होने वाली है। साबुन, टूथपेस्ट, शैंपू जैसे उत्पादों की पहुंच पहले से ही गांवों में हो चुकी थी। गांव के लोग अब नीम, बबूल या गिलोय की दातून नहीं, बल्कि टूथपेस्ट से अपने दांत साफ करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा भूमिका है, उन युवाओं की जो या तो शहर में रह आए हैं या शहरों में जाकर पढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खून सचमुच व्यापार है। उन्होंने अभी हाल ही में कहा है कि सरकार व्यापार नहीं कर सकती है, लेकिन व्यापार में सहायता जरूर कर सकती है। गांवों में बाजार की संभावनाओं की ओर इशारा मोदी ने कर दिया है। अब देखना है कि .ये व्यापारी गांवों की तस्वीर कितनी बदल पाते हैं? या फिर गांवों के लोग इन व्यापारियों को वैसे ही विदा कर देते हैं कि जैसे श्रीकृष्ण का संदेश लेकर गोकुल गए उद्धव को वापस भेजते समय गोपियों ने कहा था कि 'आयो घोष बड़ो व्यापारी। लादि खेप गुन ज्ञान-जोग की ब्रज में आन उतारी।Ó इसकी संभावना इसलिए है क्योंकि गांवों में बाजार तो है, लेकिन गांववालों की क्रयशक्ति कैसे बढ़ेगी, वे इन उत्पादों को खरीदने का पैसा कहां से लाएंगे, इसकी कोई व्यवस्था भी तो सरकार करे।
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