अशोक मिश्र
मेरे काफी पुराने मित्र हैं मुसद्दीलाल। मेरे लंगोटिया यार की तरह। हालांकि वे उम्र में मुझसे लगभग पंद्रह साल से ज्यादा बड़े हैं। मेरी दाढ़ी अभी खिचड़ी होनी शुरू हुई है और उनके गिने-चुने काले बाल विदाई मांग रहे हैं। (बात चलने पर बालों पर हाथ फेरते हुए कहते हैं कि बाल तो बचपन में ही धूप में सफेद हो गए थे, उन दिनों जेठ की भरी दुपहरिया में पतंग जो उड़ा करता था।) हम दोनों में काफी पटती है। जब भी मुसद्दी लाल को लगता है कि आज पत्नी से पिट जाएंगे, तो वे भागकर हमारे घर आ जाते हैं। मैं भी ऐसी स्थिति से बचने के लिए उनके घर की शरण लेता हूं। जब भी किसी पार्टी या महफिल में उन्हें जोश चढ़ता है, तो वे बड़े गर्व के साथ यह कहने में संकोच नहीं करते हैं कि मैं रसिक हूं, लेकिन अय्यास नहीं। रसिक होना, न तो बुरा है, न कानून जुर्म। रसिकता तो मुझे विरासत में मिली है। मेरे बाबा ने तो बाकायदा अपना नाम ही रख लिया था, ढकेलूराम 'रसिकÓ। पिता जी संस्कृतनिष्ठ थे, तो उनका तख्लुस रसज्ञ था।
कल चौराहे पर मुझे मुसद्दीलाल मिल गए। उनका मुंह काफी सूजा हुआ था। मुझे देखकर पहले तो उन्होंने इस तरह कन्नी काटने की कोशिश की, मानो उन्होंने मुझे देखा ही नहीं है। मैं जब उनके ठीक सामने जाकर अड़ गया, तो मुझे देखते ही कराह उठे। अपनी दायीं हथेली को बायें गाल पर ले जाकर धीरे से गाल को सहलाया। मैंने बहुत गंभीर होने का अभिनय करते हुए पूछा, 'क्या हुआ भाई साहब! कहीं चोट-वोट लग गई है क्या?Ó मेरी बात को नजरअंदाज करते हुए बोले, 'यार! मोदी जी ने वायदा किया था कि उनकी सरकार आई, तो तीन महीने के अंदर अच्छे दिन आ जाएंगे? क्या अच्छे दिन आ गए, जब टमाटर अभी तक चालीस रुपये किलो पर ही अटका हुआ है।Ó मैंने जवाब देते हुए दोबारा पूछने का दुस्साहस किया, 'अच्छे-वच्छे दिन तो भूल ही जाइए। यह बताइए, आपको हुआ क्या है? आपका मुंह क्यों सूजा हुआ है? कहीं गिर-विर पड़े थे क्या?Ó मुसद्दी लाल ने अपने बायें हाथ में पकड़ा थैला दायें हाथ में लेते हुए कहा, 'यह बताओ, आज आफिस गए थे। सुना है कि फल मंडी के पास बहुत बड़ा जाम लगा था। कोई हीरोइन शहर में आई थी, जो उसी तरफ से गुजरने वाली थी। सो, सुबह से ही जाम लगा था।Ó मैंने खीझते हुए कहा, 'आज मैं फल मंडी की ओर से आफिस नहीं गया था। इसलिए मुझे पता नहीं कि हीरोइन के आने से फल मंडी में जाम लगा था या नहीं। लेकिन मेरी बात को टालिए नहीं। साफ-साफ बताइए, आपको क्या हुआ है? कहीं चोट लगी है? किसी से झगड़ा हुआ है? किसी ने मारा-पीटा है? आप जब तक मुझे अपने चेहरे पर लगी चोटों का हिसाब नहीं दे देंगे, मैं आपके सामने से नहीं हटूंगा। यह मेरी नई किस्म की गांधीगीरी समझ सकते हैं।Ó
मेरी धमकी शायद असर कर गई थी। वे एक बार फिर अपने हाथ को गाल तक ले गए और उसको सहलाते हुए कराह उठे। फिर चारों तरफ देखते हुए बोले, 'यार! क्या बताऊं। 'किस आफ लवÓ के चक्कर में चेहरे का भूगोल बदल गया। यह सब उस नालायक हरीशवा के चलते हुआ है। अगर कहीं मिल गया, तो लोढ़े से उसका मुंह कूंच दूंगा। साला गद्दार..।Ó मैंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, 'अमां यार! तुम लंतरानी ही हांकोगे या कुछ बकोगे भी। हुआ क्या, मामला पूरा बताओ।Ó मुसद्दीलाल ने गहरी सांस ली और बोले, 'परसों आफिस में हरीश आया और बोला कि हमारे मोहल्ले में रुढि़वादियों का विरोध करने के लिए किस ऑफ लव का आयोजन किया गया है। आपको (यानी मुझे) भाग लेना है।Ó मैंने लाख हीलाहवाली की। कई तरह की बातें रखीं। लेकिन वह नहीं माना। मुझे आफिस टाइम के बाद घसीटकर अपने मोहल्ले में ले गया। और फिर वहीं वह हो गया जिसकी कल्पना भी नहीं की थी।Ó अब मेरी समझ में कुछ-कुछ आने लगा था। मैंने पूछा, 'तो जिसको किस करने वाले थे या किया था, उसका कोई भाई, पति या पिता आ गया था क्या?Ó मेरे सवाल पर मुसद्दी लाल एक बार फिर कराह उठे, 'नहीं..साले हरीशवा ने मेरी पत्नी को इसके बारे में बता दिया था।Ó मुसद्दीलाल की बात सुनते ही मैं ठहाका लगाकर हंस पड़ा, 'बज्जर (वज्र) पड़े ऐसे किस ऑफ लव पर।Ó इसके बाद हम दोनों चुपचाप घर लौट आए।
मेरे काफी पुराने मित्र हैं मुसद्दीलाल। मेरे लंगोटिया यार की तरह। हालांकि वे उम्र में मुझसे लगभग पंद्रह साल से ज्यादा बड़े हैं। मेरी दाढ़ी अभी खिचड़ी होनी शुरू हुई है और उनके गिने-चुने काले बाल विदाई मांग रहे हैं। (बात चलने पर बालों पर हाथ फेरते हुए कहते हैं कि बाल तो बचपन में ही धूप में सफेद हो गए थे, उन दिनों जेठ की भरी दुपहरिया में पतंग जो उड़ा करता था।) हम दोनों में काफी पटती है। जब भी मुसद्दी लाल को लगता है कि आज पत्नी से पिट जाएंगे, तो वे भागकर हमारे घर आ जाते हैं। मैं भी ऐसी स्थिति से बचने के लिए उनके घर की शरण लेता हूं। जब भी किसी पार्टी या महफिल में उन्हें जोश चढ़ता है, तो वे बड़े गर्व के साथ यह कहने में संकोच नहीं करते हैं कि मैं रसिक हूं, लेकिन अय्यास नहीं। रसिक होना, न तो बुरा है, न कानून जुर्म। रसिकता तो मुझे विरासत में मिली है। मेरे बाबा ने तो बाकायदा अपना नाम ही रख लिया था, ढकेलूराम 'रसिकÓ। पिता जी संस्कृतनिष्ठ थे, तो उनका तख्लुस रसज्ञ था।
कल चौराहे पर मुझे मुसद्दीलाल मिल गए। उनका मुंह काफी सूजा हुआ था। मुझे देखकर पहले तो उन्होंने इस तरह कन्नी काटने की कोशिश की, मानो उन्होंने मुझे देखा ही नहीं है। मैं जब उनके ठीक सामने जाकर अड़ गया, तो मुझे देखते ही कराह उठे। अपनी दायीं हथेली को बायें गाल पर ले जाकर धीरे से गाल को सहलाया। मैंने बहुत गंभीर होने का अभिनय करते हुए पूछा, 'क्या हुआ भाई साहब! कहीं चोट-वोट लग गई है क्या?Ó मेरी बात को नजरअंदाज करते हुए बोले, 'यार! मोदी जी ने वायदा किया था कि उनकी सरकार आई, तो तीन महीने के अंदर अच्छे दिन आ जाएंगे? क्या अच्छे दिन आ गए, जब टमाटर अभी तक चालीस रुपये किलो पर ही अटका हुआ है।Ó मैंने जवाब देते हुए दोबारा पूछने का दुस्साहस किया, 'अच्छे-वच्छे दिन तो भूल ही जाइए। यह बताइए, आपको हुआ क्या है? आपका मुंह क्यों सूजा हुआ है? कहीं गिर-विर पड़े थे क्या?Ó मुसद्दी लाल ने अपने बायें हाथ में पकड़ा थैला दायें हाथ में लेते हुए कहा, 'यह बताओ, आज आफिस गए थे। सुना है कि फल मंडी के पास बहुत बड़ा जाम लगा था। कोई हीरोइन शहर में आई थी, जो उसी तरफ से गुजरने वाली थी। सो, सुबह से ही जाम लगा था।Ó मैंने खीझते हुए कहा, 'आज मैं फल मंडी की ओर से आफिस नहीं गया था। इसलिए मुझे पता नहीं कि हीरोइन के आने से फल मंडी में जाम लगा था या नहीं। लेकिन मेरी बात को टालिए नहीं। साफ-साफ बताइए, आपको क्या हुआ है? कहीं चोट लगी है? किसी से झगड़ा हुआ है? किसी ने मारा-पीटा है? आप जब तक मुझे अपने चेहरे पर लगी चोटों का हिसाब नहीं दे देंगे, मैं आपके सामने से नहीं हटूंगा। यह मेरी नई किस्म की गांधीगीरी समझ सकते हैं।Ó
मेरी धमकी शायद असर कर गई थी। वे एक बार फिर अपने हाथ को गाल तक ले गए और उसको सहलाते हुए कराह उठे। फिर चारों तरफ देखते हुए बोले, 'यार! क्या बताऊं। 'किस आफ लवÓ के चक्कर में चेहरे का भूगोल बदल गया। यह सब उस नालायक हरीशवा के चलते हुआ है। अगर कहीं मिल गया, तो लोढ़े से उसका मुंह कूंच दूंगा। साला गद्दार..।Ó मैंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, 'अमां यार! तुम लंतरानी ही हांकोगे या कुछ बकोगे भी। हुआ क्या, मामला पूरा बताओ।Ó मुसद्दीलाल ने गहरी सांस ली और बोले, 'परसों आफिस में हरीश आया और बोला कि हमारे मोहल्ले में रुढि़वादियों का विरोध करने के लिए किस ऑफ लव का आयोजन किया गया है। आपको (यानी मुझे) भाग लेना है।Ó मैंने लाख हीलाहवाली की। कई तरह की बातें रखीं। लेकिन वह नहीं माना। मुझे आफिस टाइम के बाद घसीटकर अपने मोहल्ले में ले गया। और फिर वहीं वह हो गया जिसकी कल्पना भी नहीं की थी।Ó अब मेरी समझ में कुछ-कुछ आने लगा था। मैंने पूछा, 'तो जिसको किस करने वाले थे या किया था, उसका कोई भाई, पति या पिता आ गया था क्या?Ó मेरे सवाल पर मुसद्दी लाल एक बार फिर कराह उठे, 'नहीं..साले हरीशवा ने मेरी पत्नी को इसके बारे में बता दिया था।Ó मुसद्दीलाल की बात सुनते ही मैं ठहाका लगाकर हंस पड़ा, 'बज्जर (वज्र) पड़े ऐसे किस ऑफ लव पर।Ó इसके बाद हम दोनों चुपचाप घर लौट आए।
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