-अशोक मिश्र
कार्तिक पूर्णिमा की रात नदियों, खासकर गंगा में लाखों की संख्या में तैरते दीप, गूंजते आरती के स्वर, विभिन्न वाद्य यंत्र, जो मनोहारी दृश्य उपस्थित करते हैं, उसे शब्दों में बयां कर पाना शायद किसी के वश की बात नहीं है। देव दीपावली की रात नदियों के किनारे अदृश्य रूप से उपस्थित होने वाले देवता भी आनंदित हो उठते हैं। नदियों में दीपदान का अर्थ भी यही है कि हम अपने अंतरमन में कहीं छिपे बैठे तम को दूर करते हुए अपने भीतर और बाहर प्रकाश फैलाने और प्रकृति के अभिन्न अंग नदियों, पहाड़ों, पोखरों, वन, खेतों और पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षा का संकल्प लें। वैसे तो मनुष्य और प्रकृति का संबंध अटूट है। प्रकृति को देव मानने की हमारी सनातन परंपरा प्रकृति के संरक्षण की ओर ले जाती है। हमारे यहां नदियों, पेड़ों, पत्थरों, नक्षत्रों, चांद-सूरज को देव मानने की परंपरा और पूजा पद्धति दुनिया के अन्य देशों में हो भले ही, लेकिन ऐसा जुड़ाव शायद ही कहीं देखने को मिलता हो। कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाने वाली देव दीपावली वस्तुत: प्रकृति के संरक्षण का ही पर्व है।
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पतित पावनी कही जाने वाली गंगा और यमुना का ही जब यह हाल है, तो बाकी नदियों के विषय में कुछ कहना ही व्यर्थ है। गंगा नदी के किनारे बसने वाले शहरों की अनुमानित संख्या 116 से भी कहीं ज्यादा है, कस्बों और गांवों की बात करें, तो यह संख्या हजारों में पहुंचती है। इन गांवों, कस्बों, शहरों में बसने वाले लोग किसी न किसी रूप में पतित पावनी गंगा को दूषित करने के अपराधी हैं। हालत इतनी बदतर है कि घाघरा, राप्ती, बेतवा, बेतवा, केन, शहजाद, सजनाम, जामुनी, बढ़ार, बंडई, मंदाकिनी एवं नारायन जैसी अनेक छोटी-बड़ी नदियां खुद पानी मांग रही हैं। प्रदूषित नदियों का पानी मानव क्या, पशुओं और जीवों के उपयोग के लायक नहीं रह गया है। प्रदूषण और जल में घुले आक्सीजन की मात्रा दिनोंदिन कम होते जाने की वजह से कई सौ किस्म की मछलियां, जलीय जीव-जंतु आज या तो विलुप्त होने के कगार हैं, या विलुप्त हो गए हैं। ऐसे में देव दीपावली जैसा पावन पर्व यह संदेश लेकर आया है कि हमें नदियों में दीपदान करने से ज्यादा उन्हें सुरक्षित, संरक्षित और जीवनदायिनी बनाने में योगदान देना चाहिए। शायद यही वह अवसर है, जब हम अपनी नदियों को प्रदूषण मुक्त करने का संकल्प लेकर देवताओं और देव जातियों के साथ देव दीपावली मना सकते हैं, उसकी सार्थकता सिद्ध कर सकते हैं।
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