-अशोक मिश्र
हालांकि गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने सूरत पुलिस के एंटी टेरर मॉक ड्रिल में नकली आतंकियों को नमाजी टोपी पहनाए जाने के मामले में माफी मांग ली है। मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने माना कि अभ्यास में लोगों को एक खास धर्म के अनुयायियों की टोपी पहने हुए आतंकवादी पेश करना एक भूल है। वहीं, गुजरात बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चे के प्रमुख समेत कई वर्गों ने उसकी आलोचना की थी और मुख्यमंत्री ने कहा था कि धर्म को आतंकवाद से जोडऩा गलत है।
यह छद्म अभ्यास सूरत पुलिस ने ओलपाड के नजदीक डाभरी इलाके में किया था। लेकिन यह गुजरात पुलिस की मानसिकता को जाहिर करने के लिए काफी है। गुजरात के ही नर्मदा जिले के केवाडिय़ा क्षेत्र में हुए एक अन्य मॉक ड्रिल (छद्म अभ्यास) का वीडियो सामने आया है जिसमें एक धर्म विशेष की वेशभूषा धारण किए दो छद्म आतंकियों को पुलिस कर्मचारियों ने पकड़ रखा है और वे चिल्लाकर कह रहे हैं कि तुम चाहे मेरी जान ले लो। इस्लाम जिंदाबाद। इन दोनों छद्म अभ्यासों में एक धर्म विशेष को ही दिखाया गया, उन्हें नमाजी टोपी पहनाई गई, छद्म आतंकियों के मुंह से इस्लाम जिंदाबाद कहलवाया गया। अगर हम थोड़ी देर के लिए इस मात्र संयोग ही मान लें, तो भी यह संयोग तब खतरनाक संकेत की ओर इशारा करते हैं, जब देश में कथित धर्म परिवर्तन और घर वापसी के मुद्दे को लेकर मामला गर्म है। संसद से लेकर सड़क तक गर्माया हुआ है। संघ और उससे अनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद, धर्म जागरण समिति जैसे संगठन बार-बार यह घोषणा कर रहे हैं कि अमुक जिले में इतने मुसलमानों, इतने ईसाइयों की घरवापसी कराई जाएगी। संघ और उसके सहयोगी दलों का दावा है कि सन २०२० तक इस देश के सारे नागरिक हिंदू हो जाएंगे। यही नहीं, कुछ मुस्लिम और ईसाई संगठन भी धर्म परिवर्तन की कोशिश करते बाज नहीं आ रहे है। आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं कि फलां जगह पर लोगों को ईसाई हो जाने पर अमुक सुविधाएं दिए जाने का आश्वासन दिया गया, तो अमुक जगह पर मुस्लिम संगठन ने हिंदुओं को मुसलमान बनाने का प्रयास किया। जबरदस्ती या लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने को किसी भी दशा में उचित नहीं कहा जा सकता है।
गौरतलब है कि गुजरात में ७ से ९ जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस और ११ से १३ जनवरी तक वाइब्रेंट गुजरात निवेशक आयोजित किए जाने हैं। इन आयोजनों की सुरक्षा के मद्देनजर गुजरात पुलिस जगह-जगह मॉक ड्रिल करके सुरक्षा में होने वाली खामियों की पड़ताल कर रही है। मॉक ड्रिल के दौरान ठीक वैसा ही अभ्यास किया जा रहा, जैसा सचमुच आंतकी हमला होने के दौरान पुलिस करती है। ऐसे मॉक ड्रिल विभिन्न अवसरों पर लगभग प्रत्येक राज्य की पुलिस करती है, ऐसा छद्म अभ्यास किसी न किसी राज्य में हर महीने होता रहता है। मुद्दे की बात तो यह है कि गुजरात पुलिस ने अब तक सामने आए दोनों मामलों में एक ही धर्म विशेष के आतंकवादियों को ही क्यों दिखाया? क्या गुजरात पुलिस यह मानती है कि आतंकी सिर्फ नमाजी टोपी पहनने वाले ही होते हैं। वह भी तब जब प्रधानमंत्री और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी दुनिया के सामने यह घोषित कर चुके हैं कि मुसलमान भी उतने ही देशभक्त हैं, जितने कि इस देश के हिंदू। क्या गुजरात पुलिस अपने ही राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री की बातों से इत्तफाक नहीं रखती? हो सकता है कि यह मानवीय चूक हो, जैसा कि मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल और गुजरात के अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने माना है और मामले की जांच कराने की बात भी कही है, लेकिन यह चूक एक धर्म विशेष को आहत करने के लिए काफी है। यह उनकी देशभक्ति पर संदेह करना है, जो किसी भी दशा में उचित नहीं है। यह इत्तफाक होते हुए भी निंदनीय है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे किसी भी धर्म के लोगों में असंतोष पैदा करे।
हालांकि गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने सूरत पुलिस के एंटी टेरर मॉक ड्रिल में नकली आतंकियों को नमाजी टोपी पहनाए जाने के मामले में माफी मांग ली है। मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने माना कि अभ्यास में लोगों को एक खास धर्म के अनुयायियों की टोपी पहने हुए आतंकवादी पेश करना एक भूल है। वहीं, गुजरात बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चे के प्रमुख समेत कई वर्गों ने उसकी आलोचना की थी और मुख्यमंत्री ने कहा था कि धर्म को आतंकवाद से जोडऩा गलत है।
यह छद्म अभ्यास सूरत पुलिस ने ओलपाड के नजदीक डाभरी इलाके में किया था। लेकिन यह गुजरात पुलिस की मानसिकता को जाहिर करने के लिए काफी है। गुजरात के ही नर्मदा जिले के केवाडिय़ा क्षेत्र में हुए एक अन्य मॉक ड्रिल (छद्म अभ्यास) का वीडियो सामने आया है जिसमें एक धर्म विशेष की वेशभूषा धारण किए दो छद्म आतंकियों को पुलिस कर्मचारियों ने पकड़ रखा है और वे चिल्लाकर कह रहे हैं कि तुम चाहे मेरी जान ले लो। इस्लाम जिंदाबाद। इन दोनों छद्म अभ्यासों में एक धर्म विशेष को ही दिखाया गया, उन्हें नमाजी टोपी पहनाई गई, छद्म आतंकियों के मुंह से इस्लाम जिंदाबाद कहलवाया गया। अगर हम थोड़ी देर के लिए इस मात्र संयोग ही मान लें, तो भी यह संयोग तब खतरनाक संकेत की ओर इशारा करते हैं, जब देश में कथित धर्म परिवर्तन और घर वापसी के मुद्दे को लेकर मामला गर्म है। संसद से लेकर सड़क तक गर्माया हुआ है। संघ और उससे अनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद, धर्म जागरण समिति जैसे संगठन बार-बार यह घोषणा कर रहे हैं कि अमुक जिले में इतने मुसलमानों, इतने ईसाइयों की घरवापसी कराई जाएगी। संघ और उसके सहयोगी दलों का दावा है कि सन २०२० तक इस देश के सारे नागरिक हिंदू हो जाएंगे। यही नहीं, कुछ मुस्लिम और ईसाई संगठन भी धर्म परिवर्तन की कोशिश करते बाज नहीं आ रहे है। आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं कि फलां जगह पर लोगों को ईसाई हो जाने पर अमुक सुविधाएं दिए जाने का आश्वासन दिया गया, तो अमुक जगह पर मुस्लिम संगठन ने हिंदुओं को मुसलमान बनाने का प्रयास किया। जबरदस्ती या लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने को किसी भी दशा में उचित नहीं कहा जा सकता है।
गौरतलब है कि गुजरात में ७ से ९ जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस और ११ से १३ जनवरी तक वाइब्रेंट गुजरात निवेशक आयोजित किए जाने हैं। इन आयोजनों की सुरक्षा के मद्देनजर गुजरात पुलिस जगह-जगह मॉक ड्रिल करके सुरक्षा में होने वाली खामियों की पड़ताल कर रही है। मॉक ड्रिल के दौरान ठीक वैसा ही अभ्यास किया जा रहा, जैसा सचमुच आंतकी हमला होने के दौरान पुलिस करती है। ऐसे मॉक ड्रिल विभिन्न अवसरों पर लगभग प्रत्येक राज्य की पुलिस करती है, ऐसा छद्म अभ्यास किसी न किसी राज्य में हर महीने होता रहता है। मुद्दे की बात तो यह है कि गुजरात पुलिस ने अब तक सामने आए दोनों मामलों में एक ही धर्म विशेष के आतंकवादियों को ही क्यों दिखाया? क्या गुजरात पुलिस यह मानती है कि आतंकी सिर्फ नमाजी टोपी पहनने वाले ही होते हैं। वह भी तब जब प्रधानमंत्री और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी दुनिया के सामने यह घोषित कर चुके हैं कि मुसलमान भी उतने ही देशभक्त हैं, जितने कि इस देश के हिंदू। क्या गुजरात पुलिस अपने ही राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री की बातों से इत्तफाक नहीं रखती? हो सकता है कि यह मानवीय चूक हो, जैसा कि मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल और गुजरात के अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने माना है और मामले की जांच कराने की बात भी कही है, लेकिन यह चूक एक धर्म विशेष को आहत करने के लिए काफी है। यह उनकी देशभक्ति पर संदेह करना है, जो किसी भी दशा में उचित नहीं है। यह इत्तफाक होते हुए भी निंदनीय है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे किसी भी धर्म के लोगों में असंतोष पैदा करे।
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