Tuesday, March 10, 2015

एक पाती आतंकियों के नाम

अशोक मिश्र
आज सुबह होली के बाद उस्ताद गुनाहगार को बधाई देने पहुंचा, तो वे कुछ लिख रहे थे। मैंने चरण स्पर्श के बाद मजाकिया लहजे में पूछ ही लिया, 'उस्ताद! यह क्या? भाभी जी को प्रेम पत्र लिख रहे हैं? अब बुढ़ापे में!... पूरी जवानी बीत गई, यह तन-मन को मादक कर देने वाली होली बीत गई, अब आप सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने वाली कहावत क्यों चरितार्थ कर रहे हैं?Ó मेरी बात सुनते ही गुनाहगार की भवें तन गईं, 'अबे बूढ़ा होगा तू, तेरा बारह साल का बच्चा, तेरी बीवी..तेरा पूरा खानदान..मैं तो जवान था, जवान हूं और जवान रहूंगा। जहां तक लिखने की बात है, तो हां..यह सही है कि खत लिख रहा हूं, लेकिन मालकिन को नहीं.. अपने और पड़ोसी देश के आतंकियों को।Ó आपको बता दूं, उस्ताद गुनाहगार अपनी पत्नी को बड़े प्यार से मालकिन कहकर बुलाते हैं। उस्ताद की बात सुनते ही मैं चौंक गया। मैंने अकबकाते हुए कहा, 'अमा..उस्ताद..यह क्या गजब कर रहे हो? किसी को पता चला, तो सीधा राष्ट्रद्रोह का मुकदमा..और दस-बीस साल के लिए जेल के अंदर.... क्यों बुढ़ौती में अपनी छीछालेदर कराने पर तुले हुए हो?Ó
मेरी बात सुनकर उस्ताद गुनाहगार ने चश्मे के लेंस से मुझे निहारा और कलम रख दिया। बोले, 'जब अपने प्यारे राष्ट्रीय चचा 'मुमोÓ अपने प्यारे राष्ट्रवादी भाई 'नमोÓ से गलबहियां डालने के बाद पाकिस्तानी आतंकवादियों को थैंकू बोल सकते हैं, तो मैं उन्हें पत्र क्यों नहीं लिख सकता? जब वे राष्ट्रभक्त हैं, तो मैं राष्ट्रद्रोही कैसे हो जाऊंगा?Ó उस्ताद गुनाहगार की बात सुनकर मैं बेचैन हो गया,'पर आपको यह थैंकू...मेरा मतलब है कि थैंक्यू बोलने की जरूरत क्या है? आप चुपचाप पाकेटमारी कीजिए और चैन की वंशी बजाइए। आपको इस पचड़े में पडि़ए ही नहीं।  आप जानते नहीं..बड़े लोग आतंकियों को थैंकू बोलें, तो सियासत...हम आप जैसे लोग आतंकियों को थैंकू बोलेंगे, तो वह राष्ट्रद्रोह होगा। आप बात को बूझते क्यों नहीं हैं।Ó उस्ताद मुजरिम को भी बेचारगी भरी आवाज में बोले, 'यार! ये आतंकी भी तो आदमी होते हैं। बेचारों ने कितना पैसा खर्च किया होगा गोला-बारूद, बम-पिस्तौल खरीदने में।  अपने मुमो चचा के चक्कर में उनका वह सब धरा का धरा रह गया। बेचारों का कितना नुकसान हुआ होगा। बम-पटाखे फोड़-फाड़ लेते तो उन्हें संतोष हो जाता कि चलो, जितना गोला-बारूद खरीदा था काम आ गया। अब बेचारे रखे-रखे कुढ़ रहे होंगे। ऐसे में उन्हें सांत्वना तो देना बनता है न! उनके भी बाल बच्चे हैं कि नहीं..बेचारे वे भी बेरोजगार बैठे होंगे। होली में दीपावली मनाने की उनकी तमन्ना अपने चचा मुमो के चलते रह गई।Ó मुझे उस्ताद की बात सुनकर गुस्सा आ गया, मैंने उन्हें होली की रस्मी बधाई दी और घर चला आया। बाद में सुना कि उन्होंने वह खत पोस्ट कर दिया है। अब वह खत आतंकियों तक पहुंचा या नहीं, मैं नहीं जानता। अगर किसी को मालूम हो, मीडिया में खबर आई हो, मुझे भी आप लोग बताइएगा।

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