अशोक मिश्र
मोहल्ले अपने जिले के अपररूप होते हैं और जिले अपने राज्य के। राज्यों में पूरे देश का बिंब उभरता है। आज दिल्ली की जो हालत है, उसे देखकर मुझे अपने बचपन का वह मोहल्ला याद आता है, जहां सभी औरतें रहती तो एक साथ हिल मिलकर। किसी के सिर में जरा सा दर्द हुआ, तो मोहल्ले की लगभग सभी औरतें सेवा में हाजिर। कोई बाम लाकर दे रहा है, लो जिज्जी..थोड़ा सा मल लो..अभी थोड़ी देर में सिरदर्द ऐसे गायब हो जाएगा, जैसे दर्द मुआ कभी रहा ही नहीं हो। कोई महकउवा (महकने वाला) तेल लिए हाजिर। रामू की अम्मा..बड़ा ठंडा तेल है, लाओ सिर की मालिश कर देती हूं, दर्द अभी छूमंतर हो जाएगा। और खबरदार..जो आज तिनका भी तोड़ा, रामदुलारी से कह दूंगी, सारा घर का काम कर देगी और खाना बनाकर सबको खिला भी देगी। अगर खुदा न खास्ता..वहां रामदुलारी अगर मौजूद हुई, तो उसकी पीठ पर दो धौल जमाती हुई उसकी मां कहती थी, कुलच्छनी कहीं की..देख नहीं रही कि चाची के घर के बरतन-भांडे जूठे पड़े हैं। चल जल्दी से बरतन साफ कर खाना बना दे। यह हाल पूरे मोहल्ले की औरतों का था। सुख-दुख में ऐसे साथ कि जैसे एक ही पेट से पैदा हुई बहनें हों।
लेकिन जिस दिन किसी भी दो औरतों की किसी भी बात को लेकर आपस में बिगड़ जाती थी, उस दिन हम बच्चों को मनोरंजन का एक साधन भी मिल जाता था। वैसे इससे हम बच्चों का सामान्य ज्ञान भी बढ़ता था, हम सब में संबंधों को लेकर एक समझ विकसित होती थी। दोनों पक्ष की औरतें एक दूसरे के वैध और अवैध संबंधों का खुलासा करती हुई सात पुश्त तक का सिजरा पेश कर देती थीं। दिल्ली में आजकल यही हो रहा है। सभी राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे का सिजरा खोलकर बैठी हैं। छोटी-छोटी बातों को बतंगड़ बनाया जा रहा है, जैसे इसी पुनीत कार्य के लिए जनता ने उन्हें चुनकर संसद और विधानसभा में भेजा है। एक पार्टी दूसरी पार्टी पर आरोप लगाती है कि तुम्हारे इतने सांसदों-विधायकों की डिग्रियां फर्जी हैं, तो दूसरी झट से आरोप लगाने वाली पार्टी का कच्चा-चिटठा पेश कर देती है। देश-प्रदेश की जनता भकुआई हुई यह तमाशा देखने को मजबूर है।
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