अशोक मिश्र
नथईपुरवा गांव में लुंगाड़ा ब्रिगेड (फालतू किस्म के आवारा लड़के) परचून की दुकान के सामने बैठी बतकूचन कर रही थी। उनमें से एक के हाथ में उसी दिन का अखबार था। वह अटक-अटक कर अखबार की हेडलाइंस पढ़ता जा रहा था, 'परधानमंतरी ने डिजि..टल इनडिया का किया उद..घाटन..। बोले, अब देश भर के गांव हो जाएंगे डिजि..टल।Ó इतना पढ़कर उसने शुतुरमुर्ग की तरह अपनी गर्दन चारों ओर घुमाई और कुछ गर्व भरे शब्दों में पूछा, 'सुकुल काका..कुछ समझ में आया डिजि..टल का मतलब? अगर गांवों में सब कुछ डिजि..टल हो गया, तो मजा आ जाएगा।Ó
चतुरानन सुकुल ने नकारात्मक लहजे में सिर हिलाते हुए कहा, 'ई परधानमंतरी हैं न...एकदम मौका ही नहीं देते जरा भी सांस लेने का। अभी कुछ दिन पहले किए गए योग से कमर सीधी भी नहीं हुई थी कि पीठ पर लाद दिए हैं डिजिटल-फिजिटल इंडिया। अभी अच्छे दिन आना तो बाकी ही है। एक भी काम ढंग का हुआ नहीं और दूसरे का सपना दिखाने लगते हैं।Ó
'काका...आप भी न, एकदम गंवई-गंवार ही रहेंगे जिंदगी भर। अरे बड़े सपने देखिए..बड़े। सपने देखने में धेला भर का खर्च आए, तो बताइएगा। आपको क्या पता डिजि..टल होने के मतलब। अब गांव में सब कुछ डिजि...टल हो जाएगा। सब कुछ..माने सब कुछ। आपको खुर्रा-खांसी हुई, यहीं बैठे-बैठे कंपूटर से अस्पताल को अपनी हारी-बीमारी के बारे में बताइए, घंटा-आधा घंटा में दवाई आपके घर पहुंच जाएगी। न चार कोस पैदल चलने की झंझट, न अस्पताल में लाइन लगाने का टंटा।Ó लुंगाड़ा ब्रिगेड के एक वरिष्ठ सदस्य सुखई ज्ञान बघार रहे थे। वे अपनी सुविधा के अनुसार कठिन या लंबे शब्दों को दो भागों में बांटकर उच्चारण करने के आदी थे। तभी चतुरानन सुकुल ने बात काटते हुए कहा, 'कल तो यही बात परधानमंत्री जी टीबिया (टीवी) पर कह रहे थे कि अब तो किसानन का ट्यूबवेल चलाने के लिए खेत पर भी नहीं जाना पड़ेगा। अपने घर में बैठे-बैठे कंपूटर का बटन दबाओ, उधर ट्यूबवेल अपने-आप चालू हो जाएगा। खेत सींच जाने पर ट्यूबवेल अपने आप बंद भी हो जाएगा। भैंस चराने, गोबर उठाने से लेकर खेत में खाद डालने तक का काम अब सब डिजिटल हो जाएगा।Ó
अब बारी थी लुंगाड़ा ब्रिगेड के उन युवकों के मुंह ताकने की, जो अपने को सबसे बड़ा ज्ञानी समझते थे। वे मुंह बाए चतुरानन सुकुल का मुंह ताक रहे थे और सुकुल धारा प्रवाह बोलते जा रहे थे, 'जानते हो..अब भैंस, गाय, बकरी से लेकर दूसरे जानवर तक डिजिटल हो जाएंगे। जैसे ही गाय, बकरी या भैंस को गोबर करने का समय हुआ, कंपूटर का बटन दबाओ, आपके घर के बाहर या भीतर बंधे पशु खटाखट खूंटे से अलग हटकर गोबर करने लगेंगे। दूध देने का टाइम हुआ, तो उनके थन के नीचे बस बाल्टी रख दो, वे दूध देने लगेंगी। मजाल है कि दूध की एक बूंद भी बाल्टी या लोटे से बाहर निकल जाए? जैसे ही बाल्टी भरी, उनके दूध की धार तुरंत बंद। यहां कंपूटर का बटन 'लपलपÓ करके जलने लगेगा। जैसे ही कंपूटर का बटन लपलप करे, तुम जान जाओ कि कोई गड़बड़ है।Ó
'हां..काका.. अब तो बस मजे ही मजे हैं। अच्छा काका..गाय, भैंस, बकरी ही डिजिटल हो पाएंगी और कोई और भी...?Ó सुखई ने चुहुल के अंदाज में चतुरानन सुकुल को छेड़ा।
हाजिर जवाब चतुरानन सुकुल ने नहले पर दहला जड़ा, 'हां..हां..क्यों नहीं, तुम्हारी मौसी, मामी और महतारी भी डिजिटल हो जाएंगी।Ó गांव के रिश्ते से भौजाई लगने वाली सुखई की मां से सुकुल ने मजाक किया। चतुरानन सुकुल की बात सुनते ही वहां उपस्थित सारे लोग हंस पड़े। खिसियाए सुखई ने वहां से हट लेने में ही भलाई समझी। और फिर धीरे-धीरे यह मंडली बिखर गई किसी नई जगह मजमा जमाने की नीयत से, जहां चतुरानन सुकुल जैसे लोग उनकी गप गोष्ठी में विघ्न न डाल सकें।
नथईपुरवा गांव में लुंगाड़ा ब्रिगेड (फालतू किस्म के आवारा लड़के) परचून की दुकान के सामने बैठी बतकूचन कर रही थी। उनमें से एक के हाथ में उसी दिन का अखबार था। वह अटक-अटक कर अखबार की हेडलाइंस पढ़ता जा रहा था, 'परधानमंतरी ने डिजि..टल इनडिया का किया उद..घाटन..। बोले, अब देश भर के गांव हो जाएंगे डिजि..टल।Ó इतना पढ़कर उसने शुतुरमुर्ग की तरह अपनी गर्दन चारों ओर घुमाई और कुछ गर्व भरे शब्दों में पूछा, 'सुकुल काका..कुछ समझ में आया डिजि..टल का मतलब? अगर गांवों में सब कुछ डिजि..टल हो गया, तो मजा आ जाएगा।Ó
चतुरानन सुकुल ने नकारात्मक लहजे में सिर हिलाते हुए कहा, 'ई परधानमंतरी हैं न...एकदम मौका ही नहीं देते जरा भी सांस लेने का। अभी कुछ दिन पहले किए गए योग से कमर सीधी भी नहीं हुई थी कि पीठ पर लाद दिए हैं डिजिटल-फिजिटल इंडिया। अभी अच्छे दिन आना तो बाकी ही है। एक भी काम ढंग का हुआ नहीं और दूसरे का सपना दिखाने लगते हैं।Ó
'काका...आप भी न, एकदम गंवई-गंवार ही रहेंगे जिंदगी भर। अरे बड़े सपने देखिए..बड़े। सपने देखने में धेला भर का खर्च आए, तो बताइएगा। आपको क्या पता डिजि..टल होने के मतलब। अब गांव में सब कुछ डिजि...टल हो जाएगा। सब कुछ..माने सब कुछ। आपको खुर्रा-खांसी हुई, यहीं बैठे-बैठे कंपूटर से अस्पताल को अपनी हारी-बीमारी के बारे में बताइए, घंटा-आधा घंटा में दवाई आपके घर पहुंच जाएगी। न चार कोस पैदल चलने की झंझट, न अस्पताल में लाइन लगाने का टंटा।Ó लुंगाड़ा ब्रिगेड के एक वरिष्ठ सदस्य सुखई ज्ञान बघार रहे थे। वे अपनी सुविधा के अनुसार कठिन या लंबे शब्दों को दो भागों में बांटकर उच्चारण करने के आदी थे। तभी चतुरानन सुकुल ने बात काटते हुए कहा, 'कल तो यही बात परधानमंत्री जी टीबिया (टीवी) पर कह रहे थे कि अब तो किसानन का ट्यूबवेल चलाने के लिए खेत पर भी नहीं जाना पड़ेगा। अपने घर में बैठे-बैठे कंपूटर का बटन दबाओ, उधर ट्यूबवेल अपने-आप चालू हो जाएगा। खेत सींच जाने पर ट्यूबवेल अपने आप बंद भी हो जाएगा। भैंस चराने, गोबर उठाने से लेकर खेत में खाद डालने तक का काम अब सब डिजिटल हो जाएगा।Ó
अब बारी थी लुंगाड़ा ब्रिगेड के उन युवकों के मुंह ताकने की, जो अपने को सबसे बड़ा ज्ञानी समझते थे। वे मुंह बाए चतुरानन सुकुल का मुंह ताक रहे थे और सुकुल धारा प्रवाह बोलते जा रहे थे, 'जानते हो..अब भैंस, गाय, बकरी से लेकर दूसरे जानवर तक डिजिटल हो जाएंगे। जैसे ही गाय, बकरी या भैंस को गोबर करने का समय हुआ, कंपूटर का बटन दबाओ, आपके घर के बाहर या भीतर बंधे पशु खटाखट खूंटे से अलग हटकर गोबर करने लगेंगे। दूध देने का टाइम हुआ, तो उनके थन के नीचे बस बाल्टी रख दो, वे दूध देने लगेंगी। मजाल है कि दूध की एक बूंद भी बाल्टी या लोटे से बाहर निकल जाए? जैसे ही बाल्टी भरी, उनके दूध की धार तुरंत बंद। यहां कंपूटर का बटन 'लपलपÓ करके जलने लगेगा। जैसे ही कंपूटर का बटन लपलप करे, तुम जान जाओ कि कोई गड़बड़ है।Ó
'हां..काका.. अब तो बस मजे ही मजे हैं। अच्छा काका..गाय, भैंस, बकरी ही डिजिटल हो पाएंगी और कोई और भी...?Ó सुखई ने चुहुल के अंदाज में चतुरानन सुकुल को छेड़ा।
हाजिर जवाब चतुरानन सुकुल ने नहले पर दहला जड़ा, 'हां..हां..क्यों नहीं, तुम्हारी मौसी, मामी और महतारी भी डिजिटल हो जाएंगी।Ó गांव के रिश्ते से भौजाई लगने वाली सुखई की मां से सुकुल ने मजाक किया। चतुरानन सुकुल की बात सुनते ही वहां उपस्थित सारे लोग हंस पड़े। खिसियाए सुखई ने वहां से हट लेने में ही भलाई समझी। और फिर धीरे-धीरे यह मंडली बिखर गई किसी नई जगह मजमा जमाने की नीयत से, जहां चतुरानन सुकुल जैसे लोग उनकी गप गोष्ठी में विघ्न न डाल सकें।
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