अशोक मिश्र
अपने दोस्तों के साथ मटरगश्ती करने के बाद रात नौ बजे घर पहुंचते ही दरवाजे पर से ही मैंने हांक लगाई, ‘अरे घरैतिन! यार जरा एक गिलास गुनगुना पानी दे जाना।’ एक ही हांक पर दौड़ी चली आने वाली घरैतिन की जब आवाज ही नहीं सुनाई दी, मैं चौंक गया। कमरे में जाकर देखा कि एक बड़ी-सी मेज के सामने रखी कुर्सी पर घरैतिन बैठी हुई हैं। उनके दाईं ओर बेटी एक काला कोट पहने बैठी हुई है। इकलौते पुत्र ने पुलिसिया बेंत (रूल) की ही तरह बेलन थाम रखा था। मेज पर कुछ कागज-पत्तर रखे हुए थे। मैंने हंसने का प्रयास करते हुए कहा, ‘यार! यह सब क्या है? किसी नाटक का रिहर्सल कर रहे हो तुम लोग?’ घरैतिन गंभीर आवाज में बोलीं, ‘मिस्टर अशोक! इस समय मैं ‘घरेलू लोकपाल’ के अध्यक्ष की भूमिका में हूं। वैसे तो अब तक इस घर में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, गृहमंत्री और विदेश मंत्री की सारी शक्तियां मुझमें ही निहित रही हैं। आज से लोकपाल की भी समस्त शक्तियां मुझे हासिल हो गई हैं। मिस्टर मिश्रा! आप पर आर्थिक भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया है। आप पर आरोप है कि आप आपनी तनख्वाह का एक हिस्सा कहीं और खर्च कर रहे हैं। आपको इस आरोप के बारे में कुछ कहना हो, तो आप थोड़ी देर बाद चार्ज शीट पेश होने के बाद रख सकते हैं।’घरैतिन, बेटी और बेटे के तेवर बता रहे थे कि मामला गंभीर है। किसी ने या तो इनके कान भरे हैं या फिर ये कूढ़मगज लोग फालतू मुझ जैसे शरीफ व्यक्ति पर शक कर रहे हैं। मैं कुछ कहता कि इससे पहले घरैतिन एक बार फिर बोल पड़ीं, ‘मिस्टर मिश्रा! एक बात आपको बता दूं, बेटा इस समय सीबीआई की भूमिका में है। वही आपके खिलाफ लगाए गए आरोपों की सूची मुझे अभी थोड़ी देर में सौंपेगा। उसके बाद आप पर जो भी आरोप आयद होंगे, उन पर बेटी लोकपाल की ओर से आपके से जिरह करेगी। जब तक घरेलू लोकपाल अस्तित्व में रहेगा, आप इस समयावधि में बेटे, बेटी और मुझ पर धौंस नहीं जमा सकेंगे। आपको प्यास या चाय की तलब लगने पर दस मिनट की छूट दी जाएगी, ताकि आप चाय बना सकें। अगर आप दूसरों को भी चाय, पानी या दूसरी खाने-पीने की वस्तुएं आॅफर करते हैं, तो वह उत्कोच (रिश्वत) नहीं माना जाएगा। दूसरी बात यह है कि लोकपाल की कार्रवाई के दौरान आपको सिर्फ लगाए गए आरोपों का जवाब देना है। संबंधों की दुहाई देकर आप बचने का प्रयास नहीं कर सकते हैं।’ इतना कहकर घरैतिन ने फुंकनी से मेज को तीन बार ठकठकाया और फिर बेटे को कार्रवाई आगे बढ़ाने का इशारा किया। मैंने झल्लाते हुए कहा, ‘अरे यार! तब तक मैं बैठ भी सकता हूं या नहीं। इसी तरह कब तक खड़ा रहूंगा।’ घरैतिन ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘जब तक आपके मामले का निस्तारण नहीं हो जाता आपको इस तरह काल्पनिक कठघरे में खड़ा रहना पड़ेगा। पांव दुखने पर घोड़े की तरह इधर-उधर झटकने की छूट आपको रहेगी।’
बेटे ने हाथ में पकड़े बेलन को अपनी बायीं हथेली पर धीरे-धीरे मारते हुए कहा, ‘पापा..ओह सॉरी! मिस्टर मिश्रा, आप पर आरोप है कि आप अपनी पूरी तनख्वाह घर पर नहीं देते हैं। पिछले तीन साल से आप एक निश्चित रकम ही घरेलू खर्च के लिए देते हैं। आपको यह मालूम होना चाहिए कि पिछले तीन साल में महंगाई कहां से कहां पहुंच गई है। लोकपाल को पक्का पता है कि आपकी तनख्वाह तीन साल में कम से कम बीस फीसदी बढ़ी है। ऐसे में यह रकम आप घर में जमा न करके किसी महिला/पुरुष पर खर्च करते रहे हैं।’ बेटे की बात सुनते ही मैं चीख पड़ा, ‘तुम सब लोग प्रकारांतर से मुझे चरित्रहीन साबित करना चाहते हो? मैं एक बात इस लोकपाल के समक्ष साफ कर दूं। मैं चरित्रहीन नहीं हूं। हां, ‘चरित्ररिक्त’हो सकता हूं।’ मेरी बात सुनते ही मेरे दायी ओर खड़ी बेटी जोर से चिल्लाई, ‘लोकपाल मैम! आरोपी शब्दजाल में फंसाकर हमें गुमराह करना चाहता है। यह हिंदी के कठिन शब्दों का उपयोग कर लोकपाल के शिकंजे से बचना चाहता है। आरोपी को यह आदेश दिया जाए कि वह पहले ‘चरित्ररिक्त’ शब्द की व्याख्या करे।’ मैंने लोकपाल बनी घरैतिन के सामने सिर झुकाते हुए कहा, ‘देखिए, चरित्रहीन शब्द का अर्थ है कि जो चरित्र से हीन हो, दूसरी स्त्रियों या पुरुषों से विवाहेत्तर संबंध रखता हो। किसी भी समाज में चरित्रहीन होना शर्मनाक है। घृणास्पद है, लेकिन ‘चरित्ररिक्त’ होने का तात्पर्य यह है कि ऐसा व्यक्ति जिसका कोई चरित्र ही न हो। न अच्छा, न बुरा। एकदम चरित्र से शून्य। इस देश की बहुसंख्यक आबादी चरित्ररिक्त है।
न अच्छी है, न बुरी। सिर्फ जिए जा रही है। पूछो क्यों, तो इसका कोई जवाब उसके पास नहीं है। जहां तक आर्थिक भ्रष्टाचार का सवाल है, मैं यह साबित कर सकता हूं कि पिछले तीन साल से मेरी तनख्वाह ही नहीं बढ़ी है। ऐसे में मैं क्या कर सकता हूं। अगर घरेलू लोकपाल मेरे संस्थान के मुखिया को तनख्वाह बढ़ाने का आदेश दे, तो संभव है कि इस आर्थिक तंगी का कोई नतीजा निकले। मैं अपनी बात तो साबित कर सकता हूं।’ इसके बाद मैंने घरैतिन को तीन साल की सैलरी स्लिप लाकर दी। कुछ देर तक उन्होंने उसका गहन अध्ययन किया और बोलीं, ‘आरोपी पर आर्थिक भ्रष्टाचार का आरोप साबित नहीं हुआ। इसलिए मुन्नू के पापा को बाइज्जत बरी किया जाता है।’ यह सुनने के बाद मैंने इस भयंकर ठंडक में भी माथे पर चुहचुहा आए पसीने को पोंछते हुए सोचा, ‘जब घरेलू लोकपाल इतना खतरनाक है, तो फिर वास्तविक लोकपाल कैसा होगा? खुदा बचाए ऐसे लोकपाल से।’
अपने दोस्तों के साथ मटरगश्ती करने के बाद रात नौ बजे घर पहुंचते ही दरवाजे पर से ही मैंने हांक लगाई, ‘अरे घरैतिन! यार जरा एक गिलास गुनगुना पानी दे जाना।’ एक ही हांक पर दौड़ी चली आने वाली घरैतिन की जब आवाज ही नहीं सुनाई दी, मैं चौंक गया। कमरे में जाकर देखा कि एक बड़ी-सी मेज के सामने रखी कुर्सी पर घरैतिन बैठी हुई हैं। उनके दाईं ओर बेटी एक काला कोट पहने बैठी हुई है। इकलौते पुत्र ने पुलिसिया बेंत (रूल) की ही तरह बेलन थाम रखा था। मेज पर कुछ कागज-पत्तर रखे हुए थे। मैंने हंसने का प्रयास करते हुए कहा, ‘यार! यह सब क्या है? किसी नाटक का रिहर्सल कर रहे हो तुम लोग?’ घरैतिन गंभीर आवाज में बोलीं, ‘मिस्टर अशोक! इस समय मैं ‘घरेलू लोकपाल’ के अध्यक्ष की भूमिका में हूं। वैसे तो अब तक इस घर में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, गृहमंत्री और विदेश मंत्री की सारी शक्तियां मुझमें ही निहित रही हैं। आज से लोकपाल की भी समस्त शक्तियां मुझे हासिल हो गई हैं। मिस्टर मिश्रा! आप पर आर्थिक भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया है। आप पर आरोप है कि आप आपनी तनख्वाह का एक हिस्सा कहीं और खर्च कर रहे हैं। आपको इस आरोप के बारे में कुछ कहना हो, तो आप थोड़ी देर बाद चार्ज शीट पेश होने के बाद रख सकते हैं।’घरैतिन, बेटी और बेटे के तेवर बता रहे थे कि मामला गंभीर है। किसी ने या तो इनके कान भरे हैं या फिर ये कूढ़मगज लोग फालतू मुझ जैसे शरीफ व्यक्ति पर शक कर रहे हैं। मैं कुछ कहता कि इससे पहले घरैतिन एक बार फिर बोल पड़ीं, ‘मिस्टर मिश्रा! एक बात आपको बता दूं, बेटा इस समय सीबीआई की भूमिका में है। वही आपके खिलाफ लगाए गए आरोपों की सूची मुझे अभी थोड़ी देर में सौंपेगा। उसके बाद आप पर जो भी आरोप आयद होंगे, उन पर बेटी लोकपाल की ओर से आपके से जिरह करेगी। जब तक घरेलू लोकपाल अस्तित्व में रहेगा, आप इस समयावधि में बेटे, बेटी और मुझ पर धौंस नहीं जमा सकेंगे। आपको प्यास या चाय की तलब लगने पर दस मिनट की छूट दी जाएगी, ताकि आप चाय बना सकें। अगर आप दूसरों को भी चाय, पानी या दूसरी खाने-पीने की वस्तुएं आॅफर करते हैं, तो वह उत्कोच (रिश्वत) नहीं माना जाएगा। दूसरी बात यह है कि लोकपाल की कार्रवाई के दौरान आपको सिर्फ लगाए गए आरोपों का जवाब देना है। संबंधों की दुहाई देकर आप बचने का प्रयास नहीं कर सकते हैं।’ इतना कहकर घरैतिन ने फुंकनी से मेज को तीन बार ठकठकाया और फिर बेटे को कार्रवाई आगे बढ़ाने का इशारा किया। मैंने झल्लाते हुए कहा, ‘अरे यार! तब तक मैं बैठ भी सकता हूं या नहीं। इसी तरह कब तक खड़ा रहूंगा।’ घरैतिन ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘जब तक आपके मामले का निस्तारण नहीं हो जाता आपको इस तरह काल्पनिक कठघरे में खड़ा रहना पड़ेगा। पांव दुखने पर घोड़े की तरह इधर-उधर झटकने की छूट आपको रहेगी।’
बेटे ने हाथ में पकड़े बेलन को अपनी बायीं हथेली पर धीरे-धीरे मारते हुए कहा, ‘पापा..ओह सॉरी! मिस्टर मिश्रा, आप पर आरोप है कि आप अपनी पूरी तनख्वाह घर पर नहीं देते हैं। पिछले तीन साल से आप एक निश्चित रकम ही घरेलू खर्च के लिए देते हैं। आपको यह मालूम होना चाहिए कि पिछले तीन साल में महंगाई कहां से कहां पहुंच गई है। लोकपाल को पक्का पता है कि आपकी तनख्वाह तीन साल में कम से कम बीस फीसदी बढ़ी है। ऐसे में यह रकम आप घर में जमा न करके किसी महिला/पुरुष पर खर्च करते रहे हैं।’ बेटे की बात सुनते ही मैं चीख पड़ा, ‘तुम सब लोग प्रकारांतर से मुझे चरित्रहीन साबित करना चाहते हो? मैं एक बात इस लोकपाल के समक्ष साफ कर दूं। मैं चरित्रहीन नहीं हूं। हां, ‘चरित्ररिक्त’हो सकता हूं।’ मेरी बात सुनते ही मेरे दायी ओर खड़ी बेटी जोर से चिल्लाई, ‘लोकपाल मैम! आरोपी शब्दजाल में फंसाकर हमें गुमराह करना चाहता है। यह हिंदी के कठिन शब्दों का उपयोग कर लोकपाल के शिकंजे से बचना चाहता है। आरोपी को यह आदेश दिया जाए कि वह पहले ‘चरित्ररिक्त’ शब्द की व्याख्या करे।’ मैंने लोकपाल बनी घरैतिन के सामने सिर झुकाते हुए कहा, ‘देखिए, चरित्रहीन शब्द का अर्थ है कि जो चरित्र से हीन हो, दूसरी स्त्रियों या पुरुषों से विवाहेत्तर संबंध रखता हो। किसी भी समाज में चरित्रहीन होना शर्मनाक है। घृणास्पद है, लेकिन ‘चरित्ररिक्त’ होने का तात्पर्य यह है कि ऐसा व्यक्ति जिसका कोई चरित्र ही न हो। न अच्छा, न बुरा। एकदम चरित्र से शून्य। इस देश की बहुसंख्यक आबादी चरित्ररिक्त है।
न अच्छी है, न बुरी। सिर्फ जिए जा रही है। पूछो क्यों, तो इसका कोई जवाब उसके पास नहीं है। जहां तक आर्थिक भ्रष्टाचार का सवाल है, मैं यह साबित कर सकता हूं कि पिछले तीन साल से मेरी तनख्वाह ही नहीं बढ़ी है। ऐसे में मैं क्या कर सकता हूं। अगर घरेलू लोकपाल मेरे संस्थान के मुखिया को तनख्वाह बढ़ाने का आदेश दे, तो संभव है कि इस आर्थिक तंगी का कोई नतीजा निकले। मैं अपनी बात तो साबित कर सकता हूं।’ इसके बाद मैंने घरैतिन को तीन साल की सैलरी स्लिप लाकर दी। कुछ देर तक उन्होंने उसका गहन अध्ययन किया और बोलीं, ‘आरोपी पर आर्थिक भ्रष्टाचार का आरोप साबित नहीं हुआ। इसलिए मुन्नू के पापा को बाइज्जत बरी किया जाता है।’ यह सुनने के बाद मैंने इस भयंकर ठंडक में भी माथे पर चुहचुहा आए पसीने को पोंछते हुए सोचा, ‘जब घरेलू लोकपाल इतना खतरनाक है, तो फिर वास्तविक लोकपाल कैसा होगा? खुदा बचाए ऐसे लोकपाल से।’
वास्तविक लोकपाल कम से कम घरेलू लोकपाल से ज्यादा खतरनाक तो नहीं ही होगा। उसमे शिकायतकर्ता ,जाँच एजेंसी आदि की आवश्यकता होगी। घरेलू लोकपाल में इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती। स्वत:संज्ञान लेकर आरोप तय करके फैसला सुना दिया जाता है और अपील की कोई गुंजाईश नहीं
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