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Tuesday, September 9, 2025

प्राचीन स्मारकों को बचाने का हर संभव प्रयास करे सरकार

अशोक मिश्र

जो संतान अपने पुरखों की विरासत को सहेज नहीं पाती हैं, उन्हें समाज में नालायक समझा जाता है। हरियाणा प्राचीनकाल में सिंधु घाटी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। इसके अवशेष भी समय-समय पर मिले हैं। इतना ही नहीं, यहां पर बौद्ध सभ्यता के भी अवशेष बहुतायत में पाए जाते हैं।सैनी सरकार ने बौद्ध सर्किट बनाने का सराहनीय फैसला लिया है। सैनी सरकारी की बौद्ध सर्किट में चनेटी, आदिबद्री, ब्रह्मसरोवर, असंध, अग्रोहा जैसे तमाम स्थलों को शामिल करने की योजना है। 

लेकिन हरियाणा के पुरातत्व विभाग की लापरवाही की वजह से कई ऐसे पुरातात्वित स्थल हैं जो अपना अस्तित्व खोने की कगार पर पहुंच चुके हैं। इनमें से यमुनानगर का प्राचीन सुघ टीला एक है। प्राचीन सुघ टीले के आसपास हो रहा अवैध कब्जा इसके अस्तित्व पर खतरे की तरह मंडरा रहा है। इतिहासकार बताते हैं कि सुघ टीला प्राचीन श्रूघना नगरी का बेहद अहम हिस्सा रहा है। यह बात प्राचीन इतिहास में भी दर्ज है। सुघ टीले का संबंध महात्मा बुद्ध से भी बताया जाता है। 

यमुनानगर का सुघ टीला अमादलपुर दयालगढ़ गांव में स्थित है। इतिहास की पुस्तकें बताती हैं कि मौर्य काल में सुघ टीला और उसके आसपास का क्षेत्र बौद्ध धर्म का बहुत बड़ा केंद्र था। यहां बौद्ध धर्म से जुड़े बड़े-बड़े विद्वान आया करते थे। धर्म चर्चाएं किया करते थे। बौद्ध धर्मावलंबियों के एक बड़े केंद्र के रूप में यह इलाका विख्यात था। हरियाणा के कई इलाके बौद्ध धर्मावलंबियों से जुड़े हुए हैं। सन 1862 में ब्रिटिश पुरातत्वविद अक्लेक्जेंडर कनिंघम और 19वीं सदी के हरियाणा गजेटियर में यह बात दर्ज है कि प्रदेश में 39 सती स्मारक पाए जाते थे, लेकिन अफसोस की बात यह है कि उनमें से केवल पांच स्मारक ही आज मिलते हैं। 

बाकी स्मारक समय की मार न झेल पाने और देखभाल न होने की वजह से अपना अस्तित्व गंवा बैठे। यदि इन स्मारकों को सुरक्षित रखा जाता तो आज पर्यटन स्थल के रूप में हरियाणा और भी समृद्ध होता। जहां तक सुघ टीले की बात है। इसके आसपास अवैध खेती, खनन और अतिक्रमण ने टीले को बरबाद करना शुरू कर दिया है। इसके पास में ही एक कब्रिस्तान बना हुआ है। 

स्थानीय निवासियों, पुरातत्वविदों और इतिहासकारों का कहना है कि कब्रिस्तान सुघ टीले के संरक्षित दायरे में ही बना हुआ है। लेकिन हरियाणा के पुरातत्व विभाग का इससे विपरीत बयान है। वह कब्रिस्तान को संरक्षित क्षेत्र से बाहर बता रहा है। पुरातत्व विभाग की बात का सारे लोग विरोध कर रहे हैं। हालांकि यह मामला अब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और प्रदेश सरकार तक पहुंच चुका है। उम्मीद है कि सुघ टीले को बचाने का हर संभव प्रयास किया जाएगा।