हरियाणा और पंजाब के बीच पानी को लेकर एक बार फिर तकरार के आसार पैदा हो रहे हैं। गर्मी के मौसम में पंजाब सरकार से अतिरिक्त पानी देने की मांग करने वाली हरियाणा सरकार ने पंजाब सरकार और भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड को पत्र लिखकर कहा है कि पंजाब की ओर से छोड़े जा रहे पानी की मात्रा कम की जाए। हरियाणा में भारी बारिश के चलते पानी की मांग कम हो गई है। इसकी वजह से ढाई हजार क्यूसेक पानी नहरों में कम किया जाए। पंजाब के ज्यादा पानी छोड़ने से हरियाणा के कई जिलों में जलभराव हो गया है। खेतों में पानी भर जाने से फसलें बरबाद हो रही हैं। बाढ़ की वजह से खेतों की मिट्टी बह रही है।
यह कैसी विडंबना है कि अप्रैल महीने में हरियाणा सरकार पंजाब पर कम पानी छोड़ने का आरोप लगा रही थी। दरअसल, पर्वतीय राज्यों में पिछले काफी दिनों से हो रही भारी बारिश की वजह से दोनों राज्यों में बाढ़ का संकट पैदा हो गया है। पर्वतीय राज्यों के साथ-साथ पंजाब और हरियाणा में भी भारी बारिश हो रही है। इसकी वजह से पंजाब के ही नौ जिले बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। इनमें फाजिल्का, फिरोजपुर, कपूरथला, पठानकोट, तरनतारन, होशियारपुर, मोगा, गुरदासपुर और बरनाला शामिल है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार बाढ़ से अभी तक कुल 1312 गांव प्रभावित हुए हैं। ऐसा ही हाल हरियाणा का भी है। यमुनानगर, फरीदाबाद, हिसार, फतेहाबाद, जींद, सोनीपत और नारनौल जैसे जिले बाढ़ जैसी हालात से गुजर रहे हैं। इन जिलों में भारी बारिश और पंजाब द्वारा छोड़े गए पानी ने लोगों के सामने भीषण समस्या खड़ी कर दी है। इन जिलों में अच्छी खासी संख्या में गांव टापू जैसे हो गए हैं। लोगों को बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा है। खेतों में पानी भर जाने की वजह से फसलें बरबाद हो रही हैं।
बाढ़ के प्रवाह में खेत की मिट्टी कटाव का सामना कर रही है। ज्यादा दिन जलभराव रहने की वजह से विभिन्न प्रकार की मौसमी बीमारियों के फैलने का अंदेशा भी है। बड़ी संख्या में मच्छरजनित रोगों से पीड़ित लोग अस्पताल पहुंच रहे हैं। यदि खेतों में भरा हुआ पानी जल्दी से नहीं निकाला गया, अगले महीने से होने से गेहूं आदि की बुआई भी प्रभावित हो सकती है। मिट्टी के ज्यादा गीले रहने से गेहूं की बुआई नहीं की जा सकती है। ऐसी स्थिति में दोहरी मार का सामना करना पड़ सकता है। एक तो वर्तमान बाढ़ और भारी बारिश की वजह से धान आदि की फसल बरबाद हो रही है, दूसरी खेत में ज्यादा नमी रहने से गेहूं की फसल भी नहीं बोई जा सकेगी। ऐसी स्थिति में किसान तो बरबाद हो जाएगा। प्रदेश सरकार का मुआवजा उनकी परेशानी को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
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