Wednesday, September 17, 2025

परिवार पर बोझ बनकर रह जाता है हादसे में दिव्यांग हुआ व्यक्ति

अशोक मिश्र

पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने अनूप सिंह के मामले जो फैसला सुनाया है, वह न केवल सराहनीय है, वरन भविष्य में ऐसे ही कई मामलों की नजर भी बनेगा। दरअसल, मामला केवल अनूप सिंह का ही नहीं है, ऐसे न जाने कितने मामले देश और प्रदेश में है जिनके फैसले मानवीय आधार पर नहीं होते रहे हैं और शायद भविष्य में भी हों। अनूप सिंह का मामला 2014 का है। 5 जनवरी 2014 को अनूप सिंह एक सड़क हादसे का शिकार हुए। काफी इलाज कराया गया, लेकिन हादसे की वजह से उनका बायां पैर घुटने के पास से काटना पड़ा। 

बाद में जब अनूप सिंह अस्पताल से निकले, तो उन्होंने अपनी दिव्यांगता और हादसे के लिए इंश्योरेंस कंपनी पर मुकदमा दर्ज कराया। हिसार एमएसीटी ने फरवरी 2016 को निर्देश दिया कि कंपनी अनूप सिंह को 14.7 लाख रुपये सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान करे। इंश्योरेंस कंपनी ने अनूप सिंह की दिव्यांगता को 60 प्रतिशत बताते हुए फैसले को मानने से इंकार किया और हाईकोर्ट में अपील की। उधर, अनूप सिंह ने भी क्रॉस आब्जेक्शन अपील करते हुए मुआवजे की राशि बढ़ाने की अपील की। 

हाईकोर्ट ने मुआवजे की राशि को बढ़ाते हुए 24 लाख 51 हजार नौ सौ कर दिया। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि दिव्यांगता का आकलन शरीर नुकसान के साथ-साथ उसके जीवन पर पड़ने वाले असर के आधार पर होना चाहिए। अब अनूप सिंह का मामला लें। वह जब हादसे का शिकार हुए थे, तब वह सीआरपीएफ भर्ती परीक्षा पास कर चुके थे और इंटरव्यू आदि के बाद शायद सीआरपीएफ में नौकरी भी पा जाते। लेकिन हादसे के बाद न केवल वह किसी भी तरह की नौकरी के अयोग्य हो गए, बल्कि वह खेती-किसानी या मजदूरी के लायक भी नहीं रह गए। 

एक हादसे ने न केवल उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया, बल्कि भावी जीवन की राह भी दुश्वार कर दी। वह जहां परिवार का सहारा बनने जा रहे थे,वहीं अब वह परिवार पर ही बोझ बनकर रह गए। यह केवल अनूप सिंह की ही कहानी नहीं है। हर साल देश और प्रदेश में हादसे का शिकार होने वाले हजारों लोगों की यही कहानी है। हादसे का शिकार होने के बाद काफी लोगों का जीवन नरक के समान हो जाता है। अगर अविवाहित हैं, तो विवाह की संभानवाएं भी खत्म हो जाती है। 

विवाह हो गया है, तो पत्नी और बच्चों का जीवन त्रासद हो जाता है। दिव्यांग हुए लोग परिवार पर बोझ बनकर रह जाते हैं। जो व्यक्ति कल तक अपने परिवार की धुरी था, वही हादसे के बाद किसी काम लायक नहीं रह जाता है। ऐसी स्थिति में हाईकोर्ट ने जीवन पर पड़ने वाले असर को भी मुआवजे का आधार बनाया है, तो वह सराहनीय है।

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